ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक का सफर तय करने वाले चौधरी हरमोहन सिंह यादव की आज 10वीं पुण्यतिथि है। PM नरेंद्र मोदी पुण्यतिथि पर गोष्ठी में शिरकत करेंगे, जिससे यह परिवार अचानक फिर से सुर्खियों में आ गया है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के गाढ़े वक्त के साथी रहे हरमोहन सिंह यादव और उनका पूरा परिवार समाजवादी पार्टी के लिए खास रहा है। इससे पहले इस परिवार के हर व्यक्तिगत-सार्वजनिक आयोजन में मुलायम परिवार हिस्सा लेता रहा है, लेकिन इस बार खास मेहमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इसे सियासत के बदलते समीकरण के तौर पर भी देखा जा रहा है।
क्यों अहम है चौधरी हरिमोहन यादव का परिवार
चौधरी हरमोहन सिंह यादव सपा के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं। तीन बार एमएलसी रहे हरमोहन को सपा ने दो बार राज्यसभा भी भेजा था। जब मुलायम सिंह यादव पहली बार सीएम बने तो हरमोहन का इतना रसूख था कि लोग उन्हें ‘मिनी सीएम’ कहते थे। संगठन और सरकार के फैसलों की जमीन अक्सर उनकी कोठी पर तैयार होती थी। वह लंबे समय तक यादव अखिल भारतीय यादव महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। अपने समाज में इस परिवार का काफी सम्मान है।
गांव की प्रधानी से शुरू राजनीतिक सफर
1921 में मेहरबान सिंह का पुरवा गांव में चौधरी धनीराम के घर में जन्मे हरमोहन सिंह यादव ने 31 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया और वह 1952 में ग्राम प्रधान बने। नगर पालिका और जिला सहकारी बैंक की राजनीति में भी रहे। उन्होंने 1970 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य और विधायक के अलावा विभिन्न पदों पर कार्य किया। वह 1991 में पहली बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए और उन्होंने कई संसदीय समितियों के सदस्य के रूप में कार्य किया। उन्हें 1997 में राज्यसभा के सदस्य के रूप में दूसरी बार नामित किया गया।
चौधरी चरण सिंह और लोहिया के साथी रहे हरमोहन
हरमोहन सिंह यादव ने ‘अखिल भारतीय यादव महासभा’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी सेवाएं दीं। उनके चौधरी चरण सिंह और राम मनोहर लोहिया के साथ घनिष्ठ संबंध थे। उन्होंने आपातकाल का विरोध किया और किसानों के अधिकारों के लिए प्रदर्शन करने पर जेल भी गए। वह समाजवादी पार्टी के एक अहम नेता थे और मुलायम सिंह यादव के साथ उनके बहुत करीबी संबंध थे। चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद, हरमोहन यादव ने ही यादव महासभा के नेता के रूप में मुलायम सिंह यादव का नाम प्रस्तावित किया था।
मुलायम के पहले चुनाव से ही कर रहे मदद
मुलायम सिंह यादव ने जब 60 के दशक में पहला चुनाव लड़ा था तो यादव महासभा के जरिए हरिमोहन के भाई रामगोपाल ने उनकी काफी मदद की थी। इस चुनाव से दोनों परिवारों के रिश्ते प्रगाढ़ हो गए। रामगोपाल 1977 में बिल्हौर लोकसभा सीट से सांसद भी रहे थे। रामगोपाल के निधन के बाद हरमोहन सिंह ने यादव महासभा के संचालन का जिम्मा संभाला था। अंतिम समय तक वह इसे बखूबी चलाते रहे। मुलायम सिंह यादव अक्सर कानपुर के मेहरबान सिंह का पुरवा में हरमोहन सिंह से मिलने आते थे। 2012 में चौधरी हरमोहन के निधन के बाद भी ये रिश्ता चला। 2016 में सुखराम समाजवादी पार्टी से राज्यसभा पहुंचे।
सिख विरोधी दंगों में वीरता के लिए शौर्य चक्र
1984 के सिख विरोधी दंगों से छह साल पहले, हरमोहन सिंह यादव और उनका परिवार एक नए स्थान पर रहने गए थे, जहां अधिकतर आबादी सिख थी। 1984 के दंगों के दौरान यादव अपने बेटे सुखराम के साथ रतनलाल नगर में घर पर थे। उसी दौरान स्थानीय सिख उनके घर शरण मांगने गए और यादव परिवार ने उन्हें हमलावरों के तितर-बितर होने या उनकी गिरफ्तारी होने तक हमले से बचाने के लिए शरण दी। तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने सिखों के जीवन की रक्षा करने के लिए यादव को 1991 में सैन्य सम्मान शौर्य चक्र से सम्मानित किया था।
क्या अखिलेश से नाराज हैं बेटे सुखराम यादव!
हरमोहन के बेटे चौधरी सुखराम सिंह यादव की गिनती भी मुलायम के करीबी चेहरों में होती रही है। 2004 से 2010 तक सुखराम यूपी विधान परिषद के सभापति रहे। वहीं, इस महीने की 4 जुलाई तक सपा से राज्यसभा सांसद थे। सुखराम अखिल भारतीय यादव महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। सुखराम सिंह यादव की अखिलेश से नाराज बताए जा रहे हैं। हालात यह है कि दोनों परिवारों में पुराना रिश्ता टूटने की कगार पर है। बताया जा रहा है कि अखिलेश की तरफ से समय और तवज्जो नहीं मिलने से नाराजगी है। उन्होंने अप्रैल में सीएम योगी से मुलाकात भी की थी। बीते साल सुखराम के बेटे मोहित बीजेपी में चले गए।
सपा के प्रति निष्ठावान हैं सुखराम के भाई जगराम
हालांकि जानकार यह भी कहते हैं कि सुखराम के भाई जगराम कानपुर की सरसौल सीट से विधायक रहे। सुखराम और उनके बेटे भले ही बीजेपी के लिए झुकाव दिखाएं। लेकिन उनके भाई जगराम समाजवादी पार्टी के प्रति निष्ठावान बने हुए हैं। अब इस परिवार में सेंधमारी करके बीजेपी की कोशिश समाजवादी गढ़ में सेंधमारी की है।