बर्मिंघम
यह लगातार दूसरी बार था जब पीवी सिंधु कॉमनवेल्थ खेलों की महिला सिंगल्स बैडमिंटन फाइनल में पहुंचीं थीं। पिछली बार भले ही वह हमवतन साइना नेहवाल से हार गईं थीं, लेकिन इस बार सिंधु ने अपने उस सिल्वर मेडल को सुनहरे रंग में बदल दिया है। खिताबी मुकाबले में मिचेल ली को 21-15 और 21-13 के सीधे गेम से मात दी। सिंधु के लिए यह फाइनल इतना आसान भी नहीं था क्योंकि इसी कनाडाई शटलर ने पिछले दो मुकाबलों में उन्हें हार दी थी। मगर बड़े स्टेज का दबाव संभालना ही 27 वर्षीय सिंधु की असल पहचान है।
CWG खेलों का तीसरा मेडल
पीवी सिंधु ने इससे पहले 2014 ग्लासगो (स्कॉटलैंड) और 2018 गोल्डकोस्ट (ऑस्ट्रेलिया) में विमिंस सिंगल्स में क्रमश: ब्रॉन्ज और सिल्वर जीता था। 2018 यानी पिछले कॉमनवेल्थ खेलों में तो वह भारत की साइना नेहवाल से ही हारीं थीं। मगर अब न सिर्फ उन्होंने खेलों के इतिहास का तीसरा मेडल जीता बल्कि पहला स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया। इस तरह वह CWG में गोल्ड जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला तो ओवरऑल (मेंस-वीमेंस) पांचवीं भारतीय बनीं हैं।
सिंधु ने ऐसे जीता अपना पहला गोल्ड
पीवी सिंधु ने पहले गेम में आक्रामक शुरुआत की और 3-1 की बढ़त ले ली। हालांकि, मिचेल ली ने वापसी करते हुए स्कोर 4-4 की बराबरी पर ला दिया। इसके बाद दोनों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली। सिंधु के बाएं पैर में लगी चोट का असर दिख रहा था, जिसका फायदा मिचेल ली नेट के शॉट्स खेलकर उठा रही थीं। यह बात सिंधु समझ चुकी थीं तो उन्होंने नेट के गैप को भरने की कोशिश की, जिसका फायदा हुआ। ओलिंपिक मेडलिस्ट ने पहले गेम की फॉर्म दूसरे में भी बरकरार रखी। सिंधु के ड्रॉप आज कमाल कर रहे थे। दर्द में होने के बावजूद वह हार नहीं मान रही थीं। उन्होंने बढ़त बनाए रखी और दूसरा गेम 21-13 से जीतते हुए गोल्ड अपने नाम कर लिया।
तकनीक ही सिंधु की सबसे बड़ी ताकत
हैदराबाद से आने वालीं सिंधु अपने बेहतर तकनीकी खेल की बदौलत ही एक के बाद एक बाधाएं पार करती गईं। सिंगापुर की यिओ जिया मिन को 49 मिनट चले मुकाबले में 21-19, 21-17 से हराया। सिंधु के बाएं पैर में हालांकि पट्टी बंधी थी, जिससे उन्हें मूवमेंट में थोड़ी परेशानी हो रही थी। बावजूद इसके उन्होंने अपनी किसी भी प्रतिद्वंद्वी को हावी होने नहीं दिया।