मुंबई
महाराष्ट्र में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) पर लगी पाबंदी हटने वाली है। इस संबंध में जल्द ही राज्य मंत्रिमंडल फैसला लेगा। अगर ऐसा होता है तो महाराष्ट्र में विरोधी दलों के प्रमुख नेताओं की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। वैसे 2014 के बाद 9 गैर बीजेपी शासित राज्य महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, झारखंड, केरल, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, मेघालय और मिजोरम ने सीबीआई की सीधी जांच पर प्रतिबंध लगा दिया था। पश्चिम बंगाल में एक मामले में कोलकाता पुलिस आयुक्त के आवास पर उनसे पूछताछ करने गए सीबीआई (CBI) अधिकारियों को राज्य पुलिस ने घर से बाहर निकाल दिया था। दिल्ली के मंत्री मनीष सीसोदिया पर कार्रवाई कर सीबीआई फिर से चर्चा में आ गयी है।
सीबीआई के निशाने पर शिवसेना और एनसीपी के नेता
मुंबई में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले के वक्त राज्य की महाविकास अघाड़ी सरकार की परेशानियां बढ़ गई थीं। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पुत्र व पिछली सरकार में पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे बड़ी चर्चा में थे। एजेंसी की जांच प्रणाली को लेकर उद्धव ठाकरे बेहद ही खफा थे। दूसरे राज्यों का अध्ययन करने के बाद ठाकरे सरकार ने 21 अक्टूबर, 2021 को राज्य में जांच के लिए सीबीआई पर पाबंदी लगा दी थी, मतलब बगैर राज्य सरकार की अनुमति के सीबीआई किसी मामले की जांच नहीं कर सकती।
बताया जा रहा है कि राज्य शिंदे-फडणवीस सरकार इस प्रतिबंध हटा देगी। इससे विरोधी दल की परेशानी बढ़ सकती है।अगर राज्य में सीबीआई सक्रिय होती है तो उनके निशाने पर पहले से ही शिवसेना और एनसीपी के कई सारे नेता हैं।
सीबीआई पर लगी पाबंदी तो ईडी सक्रिय हुई
ठाकरे सरकार ने जब सीबीआई पर पाबंदी लगा दी तो केंद्र की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) सक्रिय हो गई। उद्धव ठाकरे के रहते ईडी ने शिवसेना नेता अनिल परब, संजय राउत, भावना गवली, प्रताप सरनाईक, यामिनी जाधव, यशवंत जाधव के साथ एनसीपी नेता नवाब मलिक, अनिल देशमुख के खिलाफ जांच शुरू की थी। इनमें मलिक, देशमुख व राउत को जेल भी जाना पड़ा, जबकि ईडी के रडार पर आए शिवसेना नेताओं में परब को छोड़ बाकी बीजेपी के पाले में आ गए हैं।
कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे का तोता कहा था
सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप देश में हमेशा लगाया जाता रहा है। उन राज्यों में सीबीआई ज्यादा सक्रिय रही है, जहां पर केंद्र और राज्य की सरकार अलग-अलग राजनीतिक दलों की हों। इसे लेकर कोर्ट समय-समय पर सीबीआई को चेतावनी भी देता रहा है। 2013 में एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा था। सन 2021 में मद्रास हाईकोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि केंद्र सरकार को सीबीआई को मुक्त करना चाहिए, जो एक पिंजरे में बंद तोते जैसी है।
2014 के बाद ज्यादातर मामले सीबीआई के पास
केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद ( सन 2014) विरोधी दल शासित राज्यों में बहुत सारे मामले सीबीआई के पास जाने लगे। विरोधियों ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर कई बार आरोप लगाया कि वह सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सीबीआई केंद्र सरकार की महज एक कठपुतली बनकर गई है। उसके बाद विपक्षी दलों ने भी आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए सीबीआई को अपने-अपने राज्यों में जांच की इजाजत देने से इनकार कर दिया था।