बीजिंग
चीन ने एलएसी के नजदीक भारत-अमेरिका संयुक्त सैन्य अभ्यास पर कड़ी आपत्ति जताई है। चीनी रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि चीन-भारत सीमा मुद्दे पर चीन तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप का कड़ा विरोध करता है। बयान में यह भी कहा गया है कि अमेरिका नहीं चाहता है कि एशिया में शांति और स्थिरता बनी है। इस कारण वह पूर्व से लेकर पश्चिम तक सैन्य तनातनी को बढ़ाने की कोशिश में जुटा है। भारत और अमेरिका ने हाल के महीनों में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में संयुक्त सैन्य अभ्यास को अंजाम दिया है। इसमें वज्र प्रहार नाम की एक्सरसाइज में दोनों देशों की स्पेशल फोर्सेज के कमांडो शामिल हुए थे।
भारत-अमेरिका सैन्य अभ्यास से चिढ़ा है चीन
चीन पहले भी एलएली के नजदीक भारत-अमेरिका सैन्य अभ्यास का विरोध कर चुका है। चीन का दावा है कि भारत का यह कदम 1993 और 1996 में किए गए सीमा समझौते का स्पष्ट उल्लंघन है। जबकि, चीन ही वह देश है, जिसने सबसे पहले इस समझौते को तोड़ते हुए जून 2020 में गलवान में भारतीय सेना पर हमला किया था। इस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे, जबकि चीन के भी 40 से ज्यादा सैनिक हताहत हुए थे। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच सीमा पर सैन्य तनातनी जारी है।
चीन ने भारत पर लगाए थे समझौते को तोड़ने के आरोप
चीन ने ग्लोबल टाइम्स के जरिए निशाना साधते हुए आरोप लगाया था कि भारत द्विपक्षीय समझौते की अवहेलना कर रहा है। इतना ही नहीं, चीन ने यहां तक दावा किया था कि भारत ने एलएसी को पार किया है। जबकि, सच्चाई यह है कि चीन ने भारत के 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर अवैध कब्जा कर रखा है। चीन की नजर भारत के अरुणाचल प्रदेश पर है, जिसे वह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है। यही कारण है कि चीन अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ करवाता रहता है।
चीन ने एलएसी पर कई इलाकों में किया अतिक्रमण
चीन और भारत ने 1993 और 1996 में सीमा मुद्दे पर दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए। 1993 में हस्ताक्षरित सीमा समझौते में दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और स्थिरता बनाने पर सहमति बनी थी। इसके बावजूद चीन ने पिछले 20 वर्षों में न केवल डोकलाम में, बल्कि पैंगोंग झील क्षेत्र और गलवान घाटी में भी अतिक्रमण किया है। जिसेक बाद भारतीय सेना की कड़ी कार्रवाई से चीन के होश उड़ गए।