पटना
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के पटना दौरे की खबर ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं के बाजार को गरम कर दिया है। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि के चंद्रशेखर राव का यह दौरा पूरी तरह से राजनीतिक है और वह 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर यहां पहुंच रहे हैं। इस दौर पर के चंद्रशेखर राव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव से मुलाकात करेंगे। के चंद्रशेखर राव के पटना दौरे को लेकर कहा जा रहा है कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करने के मिशन में जुटे हैं। हालांकि के चंद्रशेखर राव के पटना दौरे को लेकर पॉलिटिक्ल पंडितों के मन में थोड़ा बहुत कंफ्यूजन की स्थिति है। सवाल उठ रहे हैं कि तेलंगाना के सीएम 2024 में अपने नेतृत्व को मजबूती देने के लिए बिहार आ रहे हैं नीतीश कुमार को चेहरा बनाने के फैसले पर विचार विमर्श करने पहुंच रहे हैं। इस सवाल का जवाब शायद दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद मीडिया से बातचीत के बाद निकल पाए। उससे पहले दूसरे सवालों पर एक नजर डलते हैं।
के चंद्रशेखर राव के पटना दौरे का मकसद क्या है?
जेडीयू प्रवक्ता अंजुम आरा का कहना है कि महागठबंधन की सरकार बनने के साथ ही सीएम नीतीश कुमार ने कहा है कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए तमाम विपक्षी पार्टियों को एक साथ लाने का प्रयास करेंगे। एक निजी टीवी चैनल से बातचीते में उन्होंने तभी कहा था कि नई सरकार में मंत्रिमंडल विस्तार से लेकर तमाम कार्यों से निपटने के बाद देशभर के विपक्षी दलों के नेताओं को एकजुट करने की कोशिश शुरू करेंगे। इस वक्त देश में जो हालात हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए नीतीश कुमार इस तरह के प्रयास करेंगे। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि के चंद्रशेखर राव का पटना दौरा इसी से संबद्ध है।
टीएमसी के नेता शाकिर अली का कहना है कि देश के जिन-जिन नेताओं को बीजेपी ने चोट पहुंचाई है। खासकर उन नेताओं को जो कभी एनडीए का हिस्सा रहे। ऐसे नेताओं और दलों को 2024 के चुनाव में एकजुट होने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव से के चंद्रशेखर राव में नजदीकी की वजह?
इस मुलाकात की खबर के बाद सवाल उठ रहे हैं तेलंगाना सीएम के चंद्रशेखर राव क्या सीएम नीतीश कुमार को 2024 के लोकसभा चुनाव में नेता मानेंगे। इस सवाल का जवाब जानने के लिए कुछ महीने पहले जाने की जरूरत है। राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार चुनने की बात चल रही थी। उसी दौरान तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव की ओर से मीडिया में खबरें आई थी कि वह चाहते थे कि विपक्षी दल नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएं। उन्होंने इसके लिए तमाम विपक्षी दलों से समर्थन देने की भी अपील की थी। हालांकि यह बयान धरातल पर नहीं उतर पाया। साथ ही उस वक्त नीतीश कुमार एनडीए के घटक दल थे और उन्होंने मीडिया में आकर स्पष्ट कर दिया था कि राष्ट्रपति बनने की उनकी कोई इच्छा नहीं है।
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बिहार के सीएम नीतीश कुमार और तेलंगाना के मुख्यमंत्री दोनों के करीबी माने जाते रहे हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के लिए काम किया था। चुनाव रिजल्ट आने के बाद प्रशांत ने नीतीश की पार्टी जेडीयू में अहम पद भी संभाला था। हालांकि बाद में कुछ वजह से नीतीश ने प्रशांत को पार्टी से निकाल दिया था। राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार दिल्ली में जब आंख का चेकअप कराने पहुंचे थे तो उन्होंने प्रशांत किशोर से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद नीतीश ने कहा था कि प्रशांत के साथ उनका व्यक्तिगत रिश्ता पुराना है। माना जाता है कि प्रशांत उस वक्त के चंद्रशेखर राव के दूत बनकर नीतीश से मिले थे। हालांकि उसके कुछ रोज बाद ही प्रशांत ने बिहार में स्वराज यात्रा शुरू कर दी, जिसमें वह लालू और नीतीश दोनों के राज पर बराबरी से हमला करते दिख रहे हैं।
वहीं इससे पहले तेजस्वी यादव जब नेता प्रतिपक्ष थे, तब वह अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ केसीआर से मुलाकात करने के लिए हैदराबाद आए थे। ऐसे में जब केसीआर पटना जाएंगे और नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के साथ लंच की टेबल बैठेंगे तो संभव है कि पुरानी प्लानिंग पर भी बातें हो सकती है।
KCR को क्यों है नीतीश-तेजस्वी की जरूरत?
के चंद्रशेखर राव दो टर्म से तेलंगाना में सरकार चला रहे हैं। लेकिन लोकसभा सीटों के लिहाज से देखें तो वह चाहकर भी अपने बूते खास ताकत नहीं दिखा सकते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना की 17 सीटों में केसीआर की पार्टी को 9 मिले थे। वहीं एनडीए के घटक दल के रूप में जेडीयू ने राज्य की 40 सीटों में 16 पर जीत दर्ज की थी। लोकसभा सीटों के हिसाब से देखें तो केसीआर अपने बूते केंद्र की राजनीति में ज्यादा असर नहीं छोड़ सकते हैं। ऐसे में केसीआर अपनी केंद्र राजनीति को धार देने के लिए ऐसे साझेदार की तलाश कर रहे हैं जिसकी ताकत लोकसभा चुनाव रिजल्ट में असर डालती हो। शायद इसी वजह से केसीआर पटना में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से मुलाकात कर रहे हैं। बिहार में छह दलों के समर्थन से बनी महागठबंधन की सरकार दोबारा बनने के बाद पॉलिटिकल पंडित एक बार फिर से 2024 में 2015 के बिहार विधानसभा रिजल्ट दोहराने का अनुमान लगा रहे हैं। अगर पॉलिटिक्ल पंडितों का अनुमान सही निकलता है तो बिहार की 40 लोकसभा सीटें केंद्र की सरकार बनाने में अलग असर छोड़ सकती है। इसी को भांपते हुए शायद केसीआर ने पटना में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से मुलाकात का प्लान बनाया है।
नीतीश के चहरे क्यों दांव लगाने की हो रही है कोशिश
नीतीश कुमार के चेहरे को केंद्र की राजनीति में आगे करने के पीछे कई अलग-अलग दलों के अपने-अपने फायदे हैं। सबसे पहले बिहार सरकार में सहयोगी आरजेडी के नजरिए से देखें तो तेजस्वी यादव हर कीमत पर चाहते हैं कि नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में जाएं ताकि उनके मुख्यमंत्री बनने का सपना साकार हो पाए। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद भी आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने नीतीश को केंद्र की राजनीति में भेजने की बात कही थी। अब दोबारा महागठबंधन की सरकार बनने के बाद तेजस्वी यादव खुलकर नीतीश कुमार को पीएम कैंडिडेट बनाने की बात करते रहे हैं।
वहीं केसीआर या अन्य विपक्षी दलों के नजरिए से देखें तो नीतीश कुमार साफ-सुथरी छवि के नेता रहे हैं। एनडीए के घटक दल रहते हुए उन्होंने अपनी एक अलग इमेज बनाए रखी है। एनडीए में रहते हुए भी अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर नीतीश ने जिस बेबाकी से अपनी बात रखी है उससे वह खुद के सेक्युलर होने की छवि बनाए हुए हैं। पीएम मोदी के विकास पुरुष के एजेंडे पर भी नीतीश कुमार लगातार राष्ट्रीय मीडिया में बिहार जैसे पिछड़े राज्य में विकास को रफ्तार देने के लिए जाने जाते हैं। इन तमाम मुद्दों के चलते केसीआर समेत कुछ राजनीतिक दलों को नीतीश कुमार के चहरे से कोई गुरेज नहीं दिखता है।
PM मोदी के सामने नीतीश कहां हैं?
नीतीश कुमार के चेहरे को पीएम मोदी के सामने तुलना के रूप में पेश किया जाना आसान है। पीएम मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कैंपेन की शुरुआत खुद को चाय बेचने वाले का बेटा के रूप में की थी। वहीं नीतीश कुमार को वैद्य जी के बेटे के रूप प्रस्तुत किया जा सकता है। पीएम मोदी की ही तरह नीतीश कुमार भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी जहां गुजरात के विकास मॉडल को दिखाकर 2014 के लोकसभा चुनाव में उतरे थे, वहीं नीतीश कुमार आर्थिक रूप से कमजोर जैसे बिहार में सामाजिक समरसता के साथ विकास को गति देने के मॉडल को पेश कर सकते हैं। नीतीश 2014 के लोकसभा चुनाव में ही खुद बोले थे कि उनका राजनीतिक अनुभव पीएम मोदी से ज्यादा है।