मैनपुरी
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण मैनपुरी लोकसभा में हुए उपचुनाव का परिणाम उलटफेर के भंवरजाल में फंसा नजर आ रहा है। हालांकि दोनों दलों के नेता अपनी-अपनी जीत का दावा काफी मजबूती से कर रहे हैं। इनमें सपा नेता तो लाखों वोटों से विजयी होने का दावा ठोक रहे हैं लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट नतीजों में काफी कश्मकश होने की आशंका जता रहे हैं।
साल 2019 लोकसभा चुनाव की तुलना में करीब तीन फीसद मतदान कम होने से जीत का पलड़ा किस ओर झुकेगा यह कहना मुश्किल है। नेताजी मुलायम सिंह यादव साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन होने के बावजूद करीब 94 हजार मतों से जीत हासिल कर पाए थे। यह तब हुआ था, जब उन्होंने इसे लेकर अपना आखिरी चुनाव होने की मंच से मार्मिक अपील की थी। नेताजी के निधन के बाद होने वाले उपचुनाव में सहानुभूति के चलते सपा की जीत का अनुमान लगाया जा रहा था। इसी कारण सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को उम्मीदवार घोषित किया लेकिन भाजपा ने चाचा शिवपाल सिंह के नाराज होने फायदा उठाते हुए उनके करीबी रहे दो बार के सांसद रघुराज सिंह शाक्य को उम्मीदवार घोषित करके सपा के समीकरण को बिगाड़ दिया।
इसके चलते सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव से गिले-शिकवे दूर करके अपना पलड़ा भारी कर लिया। भाजपा के नेताओं ने भी इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया। जातीय समीकरण भाजपा के पक्ष में थे तो नेताजी का इस क्षेत्र की जनता से भावनात्मक रिश्ता सपा के पक्ष में नजर आया। मतदान के दौरान अधिकांश मतदाताओं की चुप्पी काफी रहस्यमयी बनी रही। साल 2019 इस क्षेत्र में करीब 57 फीसद तो 2022 के उपचुनाव में करीब 54 फीसद मतदान हुआ जो तीन फीसद कम रहा।
जसवंत नगर तथा करहल सपा के लिए तो मैनपुरी और भोगांव भाजपा के लिए मजबूत नजर आ रहे हैं जबकि किशनी में दोनों दल अपनी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। इससे उपचुनाव का परिणाम उलट पलट के भंवरजाल में फंसा नजर आ रहा है।