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‘नोटबंदी गैरकानूनी थी’, 4 जजों से अलग रही जस्टिस नागरत्ना की राय, जानिए क्या-क्या कहा?

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नई दिल्ली

नई साल के दूसरे दिन केंद्र सरकार को बड़ी जीत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में केंद्र द्वारा किए गए नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है. 2016 में केंद्र सरकार ने 500 और 1000 रुपए के नोट बंद कर दिए थे. जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 4:1 के बहुमत से नोटबंदी के पक्ष में फैसला सुनाया. बेंच ने कहा कि आर्थिक फैसलों को बदला नहीं जा सकता. वहीं, जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय बाकी जजों से अलग रही. उन्होंने नोटबंदी के फैसले को गलत और गैरकानूनी बताते हुए कहा कि इसके लिए कानून बनना चाहिए था. आईए जानते हैं कि नागरत्ना ने अपने फैसले में क्या-क्या कहा?

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि मैं 26(2) के तहत शक्ति के इस्तेमाल के संबंध में मेरे तर्क और निष्कर्ष अलग हैं. उन्होंने कहा कि बहुमत का फैसला है कि RBI अधिनियम में केंद्र सरकार द्वारा विमुद्रीकरण की शुरुआत की परिकल्पना नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि धारा 26(2) के अनुसार नोटबंदी का प्रस्ताव आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड से आना चाहिए. अगर केंद्र सरकार द्वारा विमुद्रीकरण की पहल की जाती है, तो पहले ऐसी शक्ति को लिस्ट 1 की एंट्री 36 से प्राप्त की जानी है जो मुद्रा, सिक्का, कानूनी निविदा और विदेशी मुद्रा की बात करती है. जब विमुद्रीकरण का प्रस्ताव केंद्र सरकार से आता है, तो यह धारा 26 (2) आरबीआई अधिनियम के तहत नहीं है.

‘कानून के तहत होनी चाहिए थी नोटबंदी’
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि 500 रुपये और 1,000 रुपये की श्रृंखला के नोटों को चलन से बाहर एक कानून के माध्यम से किया जाना था न कि एक अधिसूचना के माध्यम से. उन्होंने कहा कि संसद में चर्चा के बाद सहमति से इस पर कानून बनाने की चर्चा थी. उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कानून पर संसद में चर्चा होनी चाहिए थे. देश के लिए इतने अहम मुद्दे पर संसद को अलग नहीं छोड़ा जा सकता है. उन्होंने कहा कि आरबीआई और केंद्र ने जो जवाब दाखिल किए हैं, उनमें अंतर्निहित विरोधाभास है. उन्होंने कहा कि नोटबंदी की पूरी कवायद 24 घंटे में की गई. जबकि गंभीर आर्थिक प्रभाव वाले केंद्र के इस प्रस्ताव को विशेषज्ञ समिति के समक्ष रखा जाना चाहिए था.

उन्होंने कहा कि RBI ने स्वतंत्र रूप से इस पर फैसला नहीं किया और इस मामल में केवल उनकी राय मांगी गई. इसे सिफारिश नहीं कहा जा सकता. हालांकि, बीवी नागरत्ना के अलावा बेंच के सभी जजों ने माना है कि नोटबंदी की प्रक्रिया सही थी. सरकार और आरबीआई ने विचार विमर्श के बाद इस पर फैसला किया है.

केंद्र के फैसले के खिलाफ दाखिल कई गई थीं 58 याचिकाएं
केंद्र सरकार ने 8 नवंबर 2016 को अचानक देश में नोटबंदी लागू की दी. इसके तहत 1000 और 500 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था. इस फैसले के बाद पूरे देश को नोट बदलवाने के लिए लाइनों में लगना पड़ा था. नोटबंदी के फैसले के खिलाफ 58 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने पांच दिन की बहस के बाद 7 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. बेंच में जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन, और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना शामिल थे.

याचिकाकर्ताओं का दावा था कि सरकार द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में भारी खामियां थीं और इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए. इस प्रक्रिया ने इस देश के कानून के शासन का मजाक बना दिया. केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर ही सरकार नोटबंदी कर सकती है. लेकिन यहां प्रक्रिया को ही उलट दिया गया. केंद्र ने फैसला लेने के दौरान अहम दस्तावेजों को रोक दिया, जिसमें सरकार द्वारा आरबीआई को 7 नवंबर को लिखा गया पत्र और आरबीआई बोर्ड की बैठक के मिनट्स शामिल हैं.

पढ़िए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने क्या-क्या कहा।

1. रिजर्व बैंक ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, उससे सिर्फ राय मांगी गई जिसे केंद्रीय बैंक की सिफारिश नहीं कहा जा सकता: न्यायमूर्ति नागरत्ना
2. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 के नोटों को बंद करने का फैसला गलत और गैरकानूनी था।
3. न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला के नोट कानून बनाकर ही रद्द किए जा सकते थे, अधिसूचना के जरिए नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आठ नवंबर 2016 को जारी अधिसूचना वैध और प्रक्रिया के तहत थी। आरबीआई और सरकार के बीच परामर्श में कोई खामी नहीं थी। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने नोटबंदी पर कहा कि यह प्रासंगिक नहीं है कि इसके उद्देश्य हासिल हुए या नहीं। इस तरह से नोटबंदी के खिलाफ याचिकाएं खारिज कर दी गईं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुरूपता के आधार पर नोटबंदी को खारिज नहीं किया जा सकता है। 52 दिन का जो समय लिया गया, वो गैर-वाजिब नहीं था।न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि केंद्र सरकार के फैसले में खामी नहीं हो सकती क्योंकि रिज़र्व बैंक और सरकार के बीच इस मुद्दे पर पहले विचार-विमर्श हुआ था। कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक नीति से जुड़े मामलों में बड़ा संयम बरतने की जरूरत है।

इससे पहले, 2016 में की गई नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के सुप्रीम कोर्ट के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जब ‘बीते वक्त में लौट कर’ कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है। शीर्ष अदालत ने केंद्र के नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई की है।

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