नई दिल्ली
राहुल गांधी से काफी पहले फिरोज गांधी हुआ करते थे। संसद की एक हालिया बहस में बीजेपी ने जवाहरलाल नेहरू का नाम लेकर कांग्रेस पर हमला बोला। कहा कि अगर नेहरू इतने ही महान नेता थे तो गांधी परिवार अब उनके नाम का इस्तेमाल क्यों नहीं करता। अब क्यों वे खुद को ‘गांधी’ कहलवाते हैं। जवाब सीधा है: राहुल और प्रियंका को अपने दादा फिरोज गांधी का नाम मिला है। फिरोज उनकी दादी इंदिरा गांधी के पति थे। इसे विडंबना ही कहेंगे कि फिरोज किसी राजनीतिक खानदान से नहीं आते थे। वह एक सेल्फ-मेड लेकिन गजब के सांसद थे। आज भले ही उनके परिवार पर वंशवाद के आरोप लगते हों, लुटयंस के ‘नामदार’ के रूप में पहचाने जाते हों, लेकिन फिरोज खुद में एक इलाहाबादी ‘कामदार’ थे। एक पारसी जो धाराप्रवाह हिंदुस्तानी बोलता था और इलाहाबादी बोलियां भी। रायबरेली की जनता ने फिरोज गांधी को दो बार- 1952 और 1957 में रेकॉर्ड वोटों से जिताकर संसद भेजा। इंदिरा को रायबरेली की सीट अपने पिता से विरासत में नहीं मिली (वे फूलपुर से निर्वाचित होते रहे), बल्कि अपने पति से मिली।
जन्म से मुस्लिम थे फिरोज, इसका कोई सबूत नहीं
फिरोज का जन्म 1912 में बॉम्बे में हुआ। उनके पिता जहांगीर फरीदून गांधी और मां रत्तीमाई थे। इस पारसी परिवार की दक्षिण गुजरात में जड़ें बड़ी गहरी थीं। ऐसा कहते हैं कि फिरोज का जन्म एक मुस्लिम के रूप में हुआ, हालांकि इससे जुड़ा कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि एक बर्थ सर्टिफिकेट में फिरोज के नाम की स्पेलिंग में Ghandy लिखा। Gandhy असल में पारसी समुदाय के बीच Gandhi का अंग्रेजीकृत रूप है। ब्रिटिश काल में इन दोनों के इस्तेमाल का एक ही मतलब हुआ करता था।
फिरोज अपना नाम Gandhi लिखते थे। हालांकि उनके परिवार के कुछ लोग जैसे कि उनकी बहन तहमीना ने Gandhy सरनेम यूज किया। 1930s के अखबारों में फिरोज के लिए Gandhi का इस्तेमाल हुआ। यह जताना कि आज के गांधियों ने महात्मा गांधी से रिश्ता जोड़ने के लिए फिरोज का सरनेम अपनाया, उस तथ्य की अनदेखी करना है कि गुजरात में गांधी बेहद आम उपनाम है। ‘गांधी’ नाम वाले कई गुजराती परिवार हैं जिनका महात्मा से कोई लेना-देना नहीं है।
फिरोज का राजनीतिक सफर भले ही छोटा था मगर शानदार रहा। उन्होंने अपने ससुर से कभी कोई मदद नहीं ली। उन दोनों के बीच का रिश्ता जरा मुश्किल था, अक्सर अनबन रहती थी। परिवार के लोगों ने कहा है कि नेहरू के प्रति फिरोज का व्यवहार शालीन नहीं था।
संसद में ससुर को घेरने वाले फिरोज
फिरोज को कमला नेहरू और जवाहरलाल से बहुत लगाव था, इसी वजह से वे स्वतंत्रता संग्राम में कूदे। हालांकि, जब फिरोज के इंदिरा से शादी करने की बात आई तो नेहरू ने इतना विरोध किया कि महात्मा को दखल देना पड़ा। एक बार दोनों की शादी हो जाने के बाद नेहरू ने फिरोज की मदद करने की कोशिश की। उन्हें नैशनल हेरल्ड का डायरेक्टर बना दिया मगर फिरोज का असली रूप दिखा संसद में। लोकसभा में फिरोज ने अपने ससुर की सरकार को कई बार कठघरे में खड़ा किया।
फिरोज उस वक्त लाइमलाइट में आए जब उन्होंने यह खुलासा किया कि कैसे LIC ने कांग्रेस के बड़े दानकर्ता हरिदास मूंदड़ा को कर्ज देकर मदद की। ‘मूंदड़ा स्कैंडल’ से संसद हिल गई। नेहरू के करीबी और वित्त मंत्री रहे टीटी कृष्णामाचारी को इस्तीफा देना पड़ा। अपने दामाद के खुलासे के चलते नेहरू को जांच आयोग बैठाना पड़ा।
इंदिरा और नेहरू से मतभेद
फिरोज जब तक सांसद रहे, नेहरू सरकार पर हमले करते रहे। 1956 में उन्होंने संसद में एक बिल पेश किया जिससे पत्रकारों को संसदीय कार्यवाही की रिपोर्टिंग की इजाजत मिली। 1959 में जब नेहरू सरकार ने केरल की EMS सरकार को बर्खास्त किया तब फिरोज अपनी पत्नी (इंदिरा उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष थीं) और ससुर से लड़ बैठे थे। उन्होंने इंदिरा को फासीवादी करार दिया था। इंदिरा ने उस वक्त अपनी दोस्त डोरथी नोरमन को लिखा था, ‘ऐसा लगता है कि फिरोज को मेरे होने से ही दिक्कत है।’
आज की परिवारवादी राजनीति से इतर, फिरोज का वीआईपी कल्चर से कोई लेना-देना नहीं था। पत्नी और ससुर के वीआईपी होने का उनपर कोई फर्क नहीं पड़ा। 1960 में 48 साल की उम्र में फिरोज का निधन हो गया। उनके अंतिम संस्कार में उमड़ी भीड़ देखकर हैरान नेहरू ने कहा था, ‘मुझे नहीं पता था कि फिरोज इतना लोकप्रिय था।’
तो फिरोज गांधी सिर्फ एक मशहूर उपनाम वाले शख्स भर नहीं थे। उनके भीतर कई प्रतिभाएं थीं। बीजेपी को नेहरू-गांधी परिवार पर निशाना साधने के लिए फिरोज से इतर कोई चेहरा तलाशना होगा। फिरोज लोकतांत्रिक व्यवहार के प्रतीक हैं। वह ऐसे दामाद थे जिन्होंने अपने ताकतवर ससुर को बार-बार चुनौती दी। फिरोज ऐसे व्यक्ति थे जो ‘परिवार राज’ के सख्त खिलाफ थे।
सागरिका घोष