‘द केरल स्टोरी’ के टैक्स फ्री टिकट, लेकिन क्या ये है ‘पॉलिटिक्स फ्री’?

द कश्मीर फाइल्स. द केरल स्टोरी, मैरी कॉम, तारे ज़मीं पर और कुर्बानी में क्या चीज कॉमन है? ये सवाल आपको हैरान कर सकता है. जहां एक तरफ ‘द कश्मीर फाइल्स’ 1990 में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं से डील करती है, ‘तारे ज़मीं पर’ सभी के लिए समान शिक्षा के बारे में है. वहीं, 1980 के दशक में बनी ‘कुर्बानी’ एक एक्शन थ्रिलर है. जवाब ये है कि ऊपर जितनी फिल्मों का नाम लिया गया है, इन सभी को किसी न किसी राज्य ने टैक्स-फ्री घोषित किया था.

फिल्में सिर्फ फिल्में नहीं होतीं. वो हमें हंसाती हैं, एक्साइटमेंट बढ़ाती हैं, कुछ हमें गुस्सा दिलाती हैं और कुछ रुलाती हैं. लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि फिल्में, बहुत सहजता से जनता तक मैसेज भी पहुंचाती हैं.

‘द केरल स्टोरी’ जैसी फिल्मों से कुछ लोगों को क्यों परेशानी, समझें
शाहरुख खान स्टारर ‘चक दे इंडिया’ का ही उदाहरण लीजिए. ये फिल्म सिर्फ कमतर आंकी जा रहीं महिलाओं के हॉकी वर्ल्ड कप जीतने की ही कहानी नहीं है. इस स्पोर्ट्स ड्रामा में वुमन एम्पावरमेंट (महिला सशक्तिकरण) और राष्ट्रीय एकता का संदेश भी दिया गया था, और ये देशभक्ति की एक नई परिभाषा भी देती है.

फिल्में एक ताकतवर ‘टूल’ भी होती हैं. इन्हें हथियार भी बनाया जा सकता है. और किसी फिल्म को टैक्स-फ्री किया जाना, इस नजर से भी देखा जाता है कि सरकार इसकी थीम को प्रमोट कर रही है. किसी फिल्म को टैक्स-फ्री किया जाना एक पॉलिटिकल मैसेज भी देता ही है. लेकिन पॉलिटिक्स पर चर्चा करने से पहले, टैक्स-फ्री स्टेटस और इसके इकोनॉमिक्स को देख लेते हैं. एक फिल्म को टैक्स-फ्री किया कब जाता है? जब किसी राज्य में एक फिल्म टैक्स-फ्री होती है तो फिल्ममेकर्स और दर्शकों को इससे क्या फायदा होता है? पहले इसे समझने की कोशिश करते हैं.

कब टैक्स-फ्री होती हैं फिल्म?
किसी फिल्म को टैक्स में छूट देने का कोई तयशुदा क्राइटेरिया नहीं है. राज्य सरकारें हर फिल्म के हिसाब से तय करती हैं कि वो इसके लिए टैक्स से होने वाली कमाई छोड़ सकती हैं या नहीं. ये फैसला फिल्म में दिखाए गए टॉपिक की रेलिवेंस पर बेस्ड होता है.

टैक्स-फ्री होने के लिए एक फिल्म में क्या होना चाहिए, इस सवाल के जवाब में ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श कहते हैं, ‘ये पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार क्या महसूस कर रही है. ये हर फिल्म पर डिपेंड करता है… किसी फिल्म की थीम (प्रमोट करने लायक हो सकती है), किसी का अवेयरनेस फैक्टर.’

जब एक फिल्म किसी महत्वपूर्ण और इंस्पायर करने वाले टॉपिक पर होती है, तो कभी-कभी राज्य सरकारें उन्हें टैक्स से छूट दे देती हैं, ताकि वो ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंच सकें. जैसे, ‘महिलाओं को शौच के लिए मिलने वाली प्राइवेसी का मुद्दा उठाती ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ (2017) को, उत्तर प्रदेश सरकार ने टैक्स-फ्री घोषित कर दिया था. फिल्म की यूनीक थीम, केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत अभियान से भी मैच करती थी.

अक्षय कुमार की एक और फिल्म ‘पैड मैन’ को राजस्थान सरकार ने टैक्स-फ्री किया था. ये फिल्म, बेहद कम कीमत में सेनेटरी पैड बनाने का तरीका खोजने वाले अरुणाचलम मुरुगनाथन की लाइफ पर बना बायोग्राफिकल ड्रामा थी. फिल्म में मेन्स्त्रुअल हाइजीन का मुद्दा उठाया गया था, जिसके लिए सरकार भी मुहीम चला रही थी.

फिल्ममेकर्स ‘टैक्स-फ्री’ स्टेटस को सरकार से दिया प्रोत्साहन मानते हैं और इसे फिल्म की इमेज और पब्लिसिटी के लिए एक बूस्ट समझते हैं, भले फिल्म की कमाई को इससे कोई फायदा न हो. किसी फिल्म का टैक्स-फ्री होना जनता का लिए क्यों फायदेमंद होता है, ये बताते हुए आदर्श कहते हैं, ‘टिकट के दाम कम होना, जनता के लिए फायदेमंद होता है. टिकट का कम दाम, लोगों को थिएटर्स तक लाने के लिए एक प्रोत्साहन है, इससे फुटफॉल बढ़ता है. अगर फिल्म दर्शकों को लुभाती है, तो ये राज्य सरकारों के लिए अच्छा होता है. लेकिन एक्टर्स को इससे कोई फायदा नहीं होता.’

GST के बाद क्या बदला?
2017 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) यानी जी.एस.टी के आने होने से पहले, राज्य सरकारें एंटरटेनमेंट टैक्स लगाती थीं, जो हर राज्य के हिसाब से अलग होता था, महाराष्ट्र-उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ज्यादा था. जब फिल्म को टैक्स-फ्री स्टेटस दिया जाता था, तो ये एंटरटेनमेंट टैक्स माफ हो जाता था, इससे दर्शकों के लिए टिकट के दाम बहुत कम हो जाते थे.

जी.एस.टी लागू होने के बाद, शुरुआत में फिल्म टिकट पर 28% टैक्स रेट लगाया गया था. हालांकि, बाद में दो अलग अलग टैक्स स्लैब लाए गए: 100 रुपये से कम कीमत के टिकट पर 12% जी.एस.टी, और 100 रुपये से ज्यादा के टिकट पर 18% जी.एस.टी. इस टैक्स से मिलने वाले रेवेन्यू में राज्य और केंद्र सरकार बराबर की हिस्सेदार होती हैं.

अब अगर एक राज्य किसी फिल्म को ‘टैक्स-फ्री’ घोषित करता है, तो वो एंटरटेनमेंट टैक्स का आधा हिस्सा ही माफ करता है, जो टिकट के रेट के हिसाब से 9% या 6% हो सकता है. सिनेमा हॉल मालिकों के अनुसार, जी.एस.टी लागू होने से पहले किसी फिल्म के टैक्स-फ्री होने पर ज्यादा असर पड़ता था. क्योंकि तब हर राज्य का अपना एंटरटेनमेंट टैक्स था, जिसमें राज्य की सरकार पूरी तरह छूट देती थी. हालांकि अब, टैक्स-फ्री फिल्मों के लिए भी दर्शकों को सेंट्रल जी.एस.टी का भुगतान तो करना ही होता है.

ट्रेड एनालिस्ट अक्षय राठी ने बताया, ‘जी.एस.टी के आने के बाद, चीजें काफी बदल गई हैं क्योंकि अब तस्वीर में और भी लोग हैं जिनपर असर पड़ता है. जब एक फिल्म को टैक्स फ्री किया जाता है, तो फिल्म इंडस्ट्री पर थोड़ा तो एगेतिव असर पड़ता ही है. वो (थिएटर मालिक) जनता से तो पैसे नहीं वसूल सकते लेकिन उन्हें डिस्ट्रीब्यूटर को पेमेंट करनी पड़ती है, जो सिनेमा हॉल्स के लिए नुक्सानदायक है. इससे थिएटर्स के कैपिटल और कैश फ्लो पर असर पड़ता है. जी.एस.टी का असर पड़ने के बाद चीजें ज्यादा बदल गई हैं.’

क्या राजनीति पर नहीं निर्भर करता ‘टैक्स-फ्री’ करने का फैसला?
‘टैक्स फ्री’ का लेबल लगने से, क्या फिल्म पॉलिटिक्स-फ्री भी हो जाती है? क्या 2014 के पहले और बाद में, टैक्स-फ्री घोषित होने वाली फिल्मों के टाइप और जॉनर में कोई फर्क आया है? क्या पॉलिटिक्स का असर इस बात पर पड़ता है कि किस फिल्म को टैक्स-फ्री किया जाएगा?

जानेमाने फिल्म क्रिटिक सैबाल चैटर्जी ने इंडिया टुडे को बताया, ‘पहले, वो फिल्में टैक्स फ्री होती थीं जो सामाजिक सद्भाव, फैमिली प्लानिंग और शिक्षा की जरूरत को प्रमोट करती थीं. अब मामला पूरी तरह बदल चुका है. इन दिनों नफरत के बीज बोने वाली और लोगों को बांटने वाली फिल्मों के टैक्स-फ्री होने का चांस, दूसरे किसी सिनेमा से ज्यादा है.’

चैटर्जी ने आगे कहा, ‘मुझे लगता है कि आज सामाजिक जागरुकता फैलाने से ज्यादा, पॉलिटिकल आइडियोलॉजी को फैलाने पर ध्यान दिया जाता है. एक समय था जब पॉलिटिकल फिल्में बेजुबानों की आवाज बनती थीं. आज, वो सिर्फ सरकार की सोच पर चलती हैं.’

‘द केरल स्टोरी’ का ट्रेलर आया और उसमें दावा किया गया कि केरल से 32,000 लड़कियां गायब हो गईं और बाद में उन्होंने आतंकी संगठन, ISIS जॉइन कर लिया. ट्रेलर आने के बाद बहुत तेजी से विवाद खड़ा हो गया. केरल की CPI (M) सरकार और विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने, ये कहते हुए इसकी तगड़ी आलोचना की, कि फ्रीडम ऑफ स्पीच से समाज में जहर फैलाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता. ट्रेलर का विरोश करते हुए उन्होंने ये भी कहा कि ‘द केरल स्टोरी’ राज्य में साम्प्रदायिक शांति को बिगाड़ने की एक कोशिश है.

शनिवार को, मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने ‘द केरल स्टोरी’ को राज्य में टैक्स-फ्री कर दिया. जे.एन.यू की प्रोफेसर सौगता भादुड़ी ने इंडिया टुडे से कहा, ‘सभी फिल्में पॉलिटिकल होती हैं. अगर किसी एक सरकार का पॉलिटिकल एजेंडा, फिल्म की आइडियोलॉजिकल पोजीशन को मैच करता है, तो सरकार उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने का सोच सकती है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस बात की संभावना ज्यादा है कि एक फिल्ममेकर फिल्म बनाए और सरकार को किसी गुपचुप तरीके से पता चल जाए कि ये फिल्म, उनकी अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने में फायदा पहुंचा सकती है. इस केस में, सरकार इसे टैक्स-फ्री करने की घोषणा कर सकती है. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग फिल्म देखें.’

‘द केरल स्टोरी’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को अनाउंस किया कि उनके राज्य में ‘द केरल स्टोरी’ को टैक्स-फ्री घोषित किया जाएगा. शनिवार को मध्य प्रदेश ने ‘द केरल स्टोरी’ को टैक्स-फ्री का दर्जा दे दिया, जो नवंबर 2022 में टीजर आने के बाद से ही विवादों में थी.

राज्यों की इस लड़ाई में, पश्चिम बंगाल सरकार ने ‘द केरल स्टोरी’ बैन करने की घोषणा की. तमिलनाडु के मल्टीप्लेक्स थिएटर्स ने, कानून व्यवस्था और फिल्म को मिले ठंडे रिस्पॉन्स का हवाला देते हुए रविवार से फिल्म की स्क्रीनिंग रोक दी है.

सीपीएम लीडर और केरल के पूर्व संस्कृति मंत्री एम.ए. बेबी ने इंडिया टुडे को बताया, ‘एक फिल्म का हमेशा एक पॉलिटिकल मीनिंग होता है. द कश्मीर फाइल्स जैसी भी फिल्में होती हैं जो एक पॉलिटिकल एजेंडा को प्रमोट करती हैं. द कश्मीर फाइल्स, द केरल स्टोरी को प्रमोट करना एक पॉलिटिकल प्रोपेगैंडा है. सरकार का एक खास फिल्म को सपोर्ट देना, एक पॉलिटिकल एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए लिया गया पॉलिटिकल फैसला है.’ उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘असाम्प्रदायिक और अविवादित फिल्में, ऐसी फिल्में जिनमें एस्थेटिक और सिनेमेटिक वैल्यू हो, उन्हें टैक्स-फ्री घोषित किया जाना चाहिए.’

जब ‘द कश्मीर फाइल्स’ थिएटर्स में रिलीज हुई तब भी सिचुएशन कुछ ऐसी ही थी. सरकार से मिले जबरदस्त समर्थन और देशभर के कई राज्यों में मिली टैक्स की छूट ने, फिल्म को शानदार कामयाबी दिलवाई.

हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने सरकार पर ‘द कश्मीर फाइल्स’ के जरिए समाज में नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘भारत एक फिल्म नहीं, रियलिटी है. भारत फिल्मों से नहीं बल्कि सरकार की नीतियों और शासन से चलेगा.’ जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस पार्टी के वाईस-प्रेजिडेंट ओमर अब्दुल्लाह ने भी ‘द कश्मीर फाइल्स’ की आलोचना की. फिल्म क्रिटिक सैबाल चैटर्जी ने कहा, ‘जो फिल्में शासन कर रही सरकार को सूट करती हैं, उन्हें टैक्स-फ्री का दर्जा मिलता है और ये उस फिल्म को यकीनन फायदा दिलाता है.”

टैक्स-फ्री फिल्मों पर होता रहा है विवाद
जे.एन.यू प्रोफेसर सौगता भादुड़ी का कहना है, सत्ता में बदलाव इस बात पर भी असर डालता है कि कि कि किस फिल्म को प्रमोट किया जाएगा और टैक्स-फ्री किया जाएगा. भादुड़ी कहती हैं, ‘फिल्मों को टैक्स-फ्री घोषित करने का फैसला पॉलिटिकल एजेंडा प्रमोट करने के आधार पर लिया जाता है… कोई भी अपनी कमाई का एक हिस्सा, बिना किसी फायदे के क्यों छोड़ेगा?’

केरल के पूर्व संस्कृति मंत्री और सीपीएम लीडर एम.ए. बेबी कहते है कि 2014 के बाद से, टैक्स-फ्री की जाने वाली फिल्मों में बदलाव आया है. उन्होंने कहा, ‘पहले, फिल्मों को टैक्स-फ्री करने के लिए एक संतुलित सभ्य सांस्कृतिक पैमाना अपनाया जाता था. ये 2014 से पहले की बात है. नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से, ये पैमाने बिगड़ता जा रहा है. अब सरकार फिल्मों को अपना पॉलिटिकल एजेंडा प्रमोट करने के लिए इस्तेमाल करती है.’ बीजेपी के कई नेताओं से इस बारे में बात करने की कोशिश की गई, लेक्किन कोई तैयार नहीं हुआ.

पहले भी फिल्मों को टैक्स-फ्री स्टेटस दिए जाने को लेकर विवाद होते रहे हैं. अपनी किताब ‘When Ardh Satya Met Himmatwala’ में फिल्म राइटर अविजित घोष ने, जब हिंदी सिनेमा में 1980 के दशक में आए ऐसे कई मौकों का जिक्र किया है जब राजनीति के प्रभाव में फिल्मों को टैक्स-फ्री घोषित किया गया. डायरेक्टर फिरोज खान की ‘कुर्बानी’, जो ग्लैमर के ओवरडोज से भरी एक एक्शन थ्रिलर थी, ऐसी ही एक फिल्म थी.

अविजित घोष ने, आशीष राजाध्यक्ष और पॉल विलमेन के ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडियन सिनेमा’ के हवाले से, ‘महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ए आर अंतुले द्वारा फिल्म (कुर्बानी) को दी गई टैक्स छूट मीडिया में चर्चा मीडिया में चर्चा का मुद्दा थी. उन्होंने फिरोज खान के छोटे भाई संजय खान की ‘अब्दुल्ला’ के लिए भी ऐसा ही किया था.’ अंतुले कांग्रेस से थे.

घोष की किताब में, ट्रेड मैगज़ीन ‘फिल्म इनफॉर्मेशन’ में दिसंबर 1984 में छपे, शत्रुघ्न सिन्हा के एक इंटरव्यू का भी जिक्र है. एक्टर-प्रोड्यूसर सिन्हा ने इस इंटरव्यू में खुलासा किया था कि ये टेक्स छूट किस तरह राजनीति से जुड़ी होती है.

शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं, ‘जहां कई राज्य सरकारों ने ‘कालका’ को सिर्फ फिल्म की योग्यता पर टैक्स में छूट दी थी, वहीं मध्य प्रदेश में मुझसे पूछा गया कि क्या मेरी कोई पॉलिटिकल इन्फ्लुएंस है. मैंने कहा मैं अपनी पॉलिटिकल इन्फ्लुएंस को नहीं यूज करना चाहता, क्योंकि मुझे यकीन था कि मेरी फिल्म में टैक्स छूट लायक सभी योग्यताएं हैं. अपनी अच्छी फिल्मों के लिए टैक्स में छूट चाहने का फायदा ही क्या है, अगर टैक्स छूट के लिए एकमात्र योग्यता आपकी राजनीतिक पकड़ हो?’

‘कालका’ (1983) कोयला खदान में काम करने वालों की कहानी थी, जिसे शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रोड्यूस किया था. फिल्मों को टैक्स-फ्री स्टेटस दिए जाने पर होने वाला विवाद न तो नया है और न ही आने वाले समय में इसका को ‘द एंड’ होने वाला है. लेकिन तबतक, इसे मैसेज डिलीवर करने का एक मीडियम ही माना जाता रहेगा.

 

 

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