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गजब ढीठ हैं ये कथित मानवाधिकार संस्थाएं! पीएम मोदी के खिलाफ अब अमेरिका में करेंगी प्रॉपगैंडा

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ऐमनेस्टी इंटरनैशनल उन टूलकिट्स जैसा व्यवहार कर रहा है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। हालांकि, इस कथित मानवाधिकार संस्था को मात मिल चुकी है। इसने पीएम मोदी के ऑस्ट्रेलिया दौरे से ठीक पहले गुजरात दंगों पर बीबीसी की प्रॉपगैंडा डॉक्युमेंट्री वहां दिखाई थी। लेकिन पीएम मोदी का वहां भव्य स्वागत हुआ। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानेस ने तो भारतीय प्रधानमंत्री को ‘बॉस’ तक कहा। अब पीएम मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जा रहा हैं तो ऐमनेस्टी फिर से सक्रिय हो गया है। वह अपने उसी चुके हुए हथियार से फिर निशाना साधने में जुटा है। इस बार उसे एक और कथित मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच का साथ मिल रहा है। दोनों मिलकर पीएम मोदी के आधिकारिक दौरे से ठीक दो दिन पहले वही बीबीसी डॉक्युमेंट्री दिखाने वाले हैं। ऐमनेस्टी इंटरनैशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने 20 जून को दो पार्ट की डॉक्युमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ के प्रदर्शन के मौके पर नीति-निर्माताओं, पत्रकारों और विश्लेषकों को न्योता दिया है।

ऑस्ट्रेलिया में मोदी को रॉक स्टार वेलकम
ऐमनेस्टी इंटरनैशनल पर भारत में विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के नियमों के उल्लंघन का आरोप है और उसकी जांच चल रही है। उसने ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा स्थित संसद भवन में पीएम मोदी पर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री दिखाई थी। उसने यह सब पीएम मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा से सिर्फ तीन दिन पहले किया था। हालांकि, उसकी मंशा पूरी नहीं हुई। भारतीय प्रधानमंत्री को ऑस्ट्रेलिया में रॉक स्टार वेलकम मिला, जहां 20 हजार से अधिक लोग सिडनी के एक स्टेडियम में मोदी के लिए धूमधाम से उमड़े। उसी कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानेस ने भी पीएम मोदी को ‘बॉस’ कहा। इसके अलावा, सिडनी के आसमान में थोड़ी देर के लिए पीएम मोदी का नाम उकेरा गया। इसके लिए एक विमान की मदद ली गई जिसने आसमान में ‘वेलकम मोदी’ के दो शब्द उकेरे।

फिर मोदी-मोदी से गूंजेगा अमेरिका
ऐमनेस्टी इंटरनैशनल लाख कोशिश कर ले, लेकिन यह असंभव है कि वह अमेरिका में रह रहे भारतीयों का उत्साह कम करने में सफल हो जाएगा। प्रवासी भारतीयों को 23 जून का बेसब्री से इंतजार है जब पीएम मोदी उनके बीच पहुंचेंगे। उधर, अमेरिकी गृह मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सोमवार को भारत-अमेरिका के आपसी रिश्तों की मजबूती का बखान करते हुए कहा कि पीएम मोदी की राजकीय यात्रा से दोनों देशों के संबंधों को और मजबूती मिलेगी।

ब्लिंकन ने कहा, ‘हमें प्रधानमंत्री मोदी की ऐतिहासिक राजकीय यात्रा का इंतजार है। यह ऐसी यात्रा है जो अमेरिका-भारत के रिश्तों को वो ऊंचाई देगी जिसे राष्ट्रपति बाइडेन ने 21वीं सदी के संबंधों का मील का पत्थर  करार दिया है। उन्होंने कहा, ‘हम इस डिफाइनिंग रिलेशनशिप को विश्व के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच विशेष संबंध के रूप में देखते हैं, जिसमें हमारी सरकारें हमारे सभी नागरिकों के लिए काम कर सकती हैं और उन्हें सशक्त बना सकती हैं।’

पीएम मोदी के नाम दर्ज होगा एक और रिकॉर्ड
नरेंद्र मोदी 2014 में भारत के प्रधानमंत्री थे। तब से यह उनकी छठी अमेरिकी यात्रा होगी। इस बार भी, भारतीय-अमेरिकियों में पीएम मोदी का स्वागत करने की उत्सुकता देखते ही बन रही है। भारतीय-अमेरिकी समुदाय के करीब 600 लोग वॉशिंगटन में वाइट हाउस के करीब विलियर्ड इंटरकॉन्टिनेंटल के सामने फ्रीडम प्लाजा में इकट्ठा होने की तैयारी कर रहे हैं। पीएम मोदी यहीं ठहरने वाले हैं। वहीं, भारतीय-अमेरिकियों का एक जत्था पीएम मोदी के स्वागत में एंड्रूज़ एयर फोर्स बेस में मौजूद रहेगा जहां 21 जून को मोदी का एयर फोर्स वन विमान उतरेगा। 22 जून को जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अपनी पत्नी के साथ पीएम मोदी का स्वागत करेंगे, तब 21 बंदूकों की सलामी भी दी जाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे तो एक रिकॉर्ड बन जाएगा। वो ऐसा दूसरी बार करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन जाएंगे। पीएम मोदी जब अमेरिकी संसद को संबोधित करेंगे तब भारत-अमेरिका के ऐतिहासिक रिश्तों की झलक मिलेगी। इस दौरान वैश्विक स्थिरता और समृद्धि, खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा एवं शांति सुनिश्चित करने के दोनों देशों के साझे सपने को उड़ान मिलेगी। 23 जून को अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत में भोज का आयोजन करेंगी। उसी दिन पीएम मोदी भारतीय अमेरिकियों और वहां की बिजनस कम्यूनिटी से मिलेंगे।

टूलकिट बन गई हैं मानवाधिकार संस्थाएं?
सवाल है कि क्या ऐमनेस्टी इंटरनैशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसी संस्थाओं के प्रयासों का इन कार्यक्रमों पर कोई असर पड़ेगा? जवाब है- असंभव। फिर ये अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, जो इंसानों के बीच सद्भाव के लिए काम करने का दंभ भरती हैं, वो भारत और भारतीय प्रधानमंत्री के खिलाफ जहर उगलती ही क्यों है? सवाल है कि क्या ये संस्थाएं भारत विरोधी टूलकिट में बदल चुकी हैं? खैर, जो भी हो। इनकी मंशा तो साफ हो चुकी है। ये कथित मानवाधिकार संस्थाएं निष्पक्ष हैं, इस पर बार-बार संदेह खड़ा होता है। ये जब दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र के लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधान के खिलाफ एजेंडा चलाएं तो फिर कहना ही क्या!

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