नई दिल्ली,
लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल सियासी समीकरण टेस्ट और सेट करने की कोशिश में जुटे हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस ( I.N.D.I.A.), दोनों की ही नजर अपना कुनबा बढ़ाने पर है. विधानसभा चुनाव में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का फोकस अब कर्नाटक पर है.
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है. बीजेपी दक्षिण के अपने इस दुर्ग में 2019 का प्रदर्शन दोहराने की कोशिश में है. खबर है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल (सेक्यूलर) के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही है. इंडिया टुडे के लिए नागार्जुन की रिपोर्ट के मुताबिक जेडीएस प्रमुख एचडी देवगौड़ा की गठबंधन को लेकर गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपीअध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ मुलाकात भी हो चुकी है. बीजेपी, जेडीएस के साथ गठबंधन पर सैद्धांतिक रूप से सहमत है.
जेडीएस से गठबंधन पर क्या बोले येदियुरप्पा
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने जेडीएस से गठबंधन के सवाल पर कहा है, “मुझे प्रसन्नता है कि देवगौड़ाजी हमारे प्रधानमंत्री से मिले और वे पहले ही करीब चार सीटों पर फाइनलाइज कर चुके हैं. मैं उनका स्वागत करता हूं.” दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि जेडीएस पांच सीटें मांग रही है. जेडीएस मांड्या, हासन, तुमाकुरु, चिकबल्लापुर और बेंगलुरु ग्रामीण लोकसभा सीट मांग रही है.
जेडीएस ने मांगी परिवार वाली लोकसभा सीटें
चिकबल्लापुर लोकसभा सीट छोड़ दें तो बाकी की चारों सीटें ऐसी हैं जहां से देवगौड़ा या देवगौड़ा के परिवार का कोई न कोई सदस्य चुनाव मैदान में उतरता रहा है. मांड्या लोकसभा सीट से 2019 के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी, तुमकुर सीट से खुद एचडी देवगौड़ा, हासन सीट से उनके पोते प्रज्वल रेवन्ना जेडीएस उम्मीदवार थे. बेंगलुरु ग्रामीण सीट से 2014 के चुनाव में एचडी कुमारस्वामी की पत्नी अनिता कुमारस्वामी उम्मीदवार थीं. ये सभी सीटें ऐसी हैं जहां वोक्कालिगा समुदाय के मतदाता प्रभावी भूमिका निभाने की स्थिति में हैं.
बीजेपी-जेडीएस साथ आए तो क्या समीकरण?
बीजेपी और जेडीएस अगर साथ आए तो दक्षिण भारत के इस राज्य में सामाजिक और राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल सकते हैं. कर्नाटक की आबादी में करीब 17 फीसदी भागीदारी वाला लिंगायत समुदाय बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है. पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं. वहीं, लिंगायत के बाद करीब 15 फीसदी आबादी वाला वोक्कालिगा समुदाय दूसरा सबसे प्रभावशाली समाज है. वोक्कालिगा परंपरागत रूप से जेडीएस का वोटर माना जाता है.
जेडीएस प्रमुख एचडी देवगौड़ा खुद भी वोक्कालिगा समुदाय से ही आते हैं. दो पार्टियों के साथ आने से सूबे में एनडीए का वोट बेस करीब 32 फीसदी आबादी हो जाएगी. गठबंधन की स्थिति में दोनों ही दलों के वोट एक-दूसरे को कितना ट्रांसफर हो पाते हैं ये एक अलग विषय है लेकिन सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों के लिहाज से एनडीए की जमीन को मजबूती मिल सकती है. ओल्ड मैसूर रीजन को जेडीएस का गढ़ माना जाता है.
बीजेपी की हार के अंतर से अधिक है जेडीएस का वोट बैंक
सवाल ये भी उठ रहा है कि कर्नाटक में अकेले दम बहुमत की सरकार चलाने वाली बीजेपी को लोकसभा चुनाव से पहले जेडीएस की बैसाखी की जरूरत क्यों पड़ गई? इसकी जड़ें 2023 के कर्नाटक चुनाव नतीजों में हैं. 2023 के कर्नाटक चुनाव में बीजेपी को 36.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 66 सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस को 43.2 फीसदी वोट के साथ 135 सीटें. जेडीएस को सीटें 19 ही मिलीं लेकिन पार्टी 13.4 फीसदी वोट पाने में सफल रही थी. वोट शेयर के लिहाज से कांग्रेस और बीजेपी के बीच अंतर करीब सात फीसदी था.
दूसरा पहलू ये है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 51.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 28 में से 25 सीटें जीती थीं. कांग्रेस को 32.1 फीसदी वोट के बावजूद एक ही सीट से संतोष करना पड़ा था. जेडीएस को 9.7 फीसदी वोट के साथ एक सीट पर जीत मिली थी. 2014 में बीजेपी को 43.4 फीसदी वोट शेयर के साथ 17, कांग्रेस को 41.2 फीसदी वोट के साथ 9 और जेडीएस को 11.1 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी और जेडीएस के गठबंधन का गणित 2023 के विधानसभा चुनाव और पिछले दो लोकसभा चुनाव के परिणाम में ही छिपा है.
जेडीएस का वोट शेयर लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव की अपेक्षा भले ही कम रहा हो, पार्टी 10 फीसदीके आसपास वोट पाने में सफल रही है. विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी के लिए 2024 में 2019 का परिणाम दोहरा पाना मुश्किल माना जा रहा है. ऐसे में बीजेपी की कोशिश वोटों के नुकसान की भरपाई के लिए एक विकल्प तैयार करने की है और इसके लिए 10 फीसदी के आसपास वोट शेयर मेंटेन रखने वाली जेडीएस में पार्टी बेहतर संभावनाएं देख रही है.