नई दिल्ली
मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित विधेयक पर संसद में चर्चा होने वाली है। इससे ठीक पहले 9 पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक लेटर लिखा है। इसमें पीएम से विधेयक के उस प्रावधान को खत्म करने की अपील की गई है जिसमें CEC और चुनाव आयुक्तों का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर से घटाकर कैबिनेट सचिव के बराबर करने की बात की गई है। शनिवार को प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे एम लिंगदोह, टी एस कृष्णमूर्ति, एन गोपालस्वामी, एस वाई कुरैशी, वी एस संपत, एच एस ब्रह्मा, सैयद नसीम जैदी, ओ पी रावत और सुशील चंद्र ने कहा है कि दर्जा घटाने के प्रस्ताव से उनके नौकरशाही से स्वतंत्र होने की धारणा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
पूर्व CEC की राय अलग
प्रधानमंत्री को लिखे संयुक्त पत्र पर पूर्व-सीईसी सुनील अरोड़ा के हस्ताक्षर नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि इस तरह का कम्युनिकेशन मौजूदा सीईसी या चुनाव आयुक्तों के अधिकार क्षेत्र में है।लेटर में सीईसी और चुनाव आयुक्तों के वेतन और सेवा शर्तों को कैबिनेट सचिव के समान बनाने को लेकर चिंताएं साझा की गई हैं। इसमें कहा गया है कि इससे संविधान के अनुच्छेद 325 के साथ एक विसंगति पैदा हो गई है, जो केवल महाभियोग के द्वारा सीईसी को हटाने की बात करता है जैसा सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए है। चुनाव आयोग के पूर्व प्रमुखों ने कहा कि आयोग के सदस्यों के वेतन को सुप्रीम कोर्ट के जज के समान बनाने वाला कानून 1991 में लागू किया गया था।
क्या इमेज को नुकसान होगा?
उन्होंने आगाह किया कि इससे निर्वाचन आयोग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली मान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘भारत के चुनावों, चुनाव आयोग और आयुक्तों को दुनियाभर में सम्मान की नजरों से देखा जाता है न सिर्फ इसलिए कि यहां का चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष कराया जाता है, बल्कि आयुक्तों का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर होने के कारण भी यह धारणा बनती है कि चुनाव आयोग सरकार से स्वतंत्र है।
चुनाव आयोग के पूर्व प्रमुखों ने अनुच्छेद 148 की तरफ प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित किया है, जो मौजूदा व्यवस्था के तहत नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) को चुनाव आयोग के समान ऊंचा दर्जा देता है। पूर्व सीईसी के समूह ने कहा, ‘उस उच्च पद की गरिमा को नुकसान होगा और इसलिए सीईसी और ईसी के लिए सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर वाली मौजूदा स्थिति को जारी रखा जाए।
बिल में क्या है
पिछले महीने लोकसभा में सीईसी और अन्य चुनाव आयुक्तों से संबंधित बिल पेश किया गया था। इसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री की समिति द्वारा चुनाव आयोग के तीन सदस्यों की नियुक्ति करने का प्रावधान किया गया है। इस प्रस्तावित विधेयक पर कई विशेषज्ञों, विपक्षी दलों के नेताओं और करीब सभी पूर्व सीईसी ने सवाल उठाए हैं।
पूर्व सीईसी का कहना है कि यह चुनाव आयोग के अधिकार में गिरावट की स्थिति है। हालांकि सरकार का कहना है कि यह प्राथमिकता की तालिका में सीईसी के आदेश या तीन शीर्ष EC पदाधिकारियों के वेतन को प्रभावित नहीं करेगा। कई लोगों की शिकायत है कि यह एक संवैधानिक निकाय के रूप में बनी चुनाव आयोग की छवि को प्रभावित करेगा। वैसे, यह परिवर्तन मौजूदा सीईसी और चुनाव आयुक्तों पर लागू नहीं होगा। इसकी शुरुआत अगले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के साथ हो सकती है।