नई दिल्ली,
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हाल ही में हुई बैठक से वैश्विक समीकरणों में बदलाव देखने को मिला है. दो वैश्विक महाशक्तियों के प्रमुखों के बीच की यह बैठक सिर्फ द्विपक्षीय मामला नहीं है बल्कि कहा जा रहा है कि इसका भारत पर भी प्रभाव पड़ सकता है, विशेष रूप से चीन के साथ लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद की वजह से.
बाइडेन और जिनपिंग की हालिया बातचीत को दोनों देशों के संबंधों पर जमी बर्फ की परत को पिघलाने की दिशा में एक बड़े कदम के तौर पर देखा जा रहा है. इस चर्चा का फोकस क्लाइमेट चेंज जैसी वैश्विक चुनौतियों पर रहा लेकिन साथ ही दोनों देशों ने कई अन्य चुनौतियों पर भी सहयोग की इच्छा जताने के संकेत दिए. इन नए घटनाक्रमों से दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने और सामूहिक प्रयासों को बढ़ाने के नए युग की शुरुआत के तौर पर देखा जा सकता है.इस बैठक को चीन के लिए बहुत बड़े कूटनीतिक लाभ के तौर पर देखा जा रहा है. चीन ने विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने और आर्थिक विकास दर बढ़ाने पर है.
इस बैठक से चीन को कूटनीतिक लाभ हुआ है. चीन दरअसल आर्थिक विकास को बढ़ाने और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए अमेरिका के साथ तनाव को कम करना चाहता था. ऐसे में अमेरिका और चीन के बीच की इस सैन्य वार्ता की बहाली को एक जीत के तौर पर देखा जा सकता है. पिछले साल अमेरिका की प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे की वजह से दोनों देशों के बीच सैन्य वार्ता बाधित हो गई थी.
भारत की रणनीतिक स्थिति
वैश्विक स्तर पर हो रहे इन बदलावों के बीच भारत बेहद जटिल स्थिति में है. 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से चीन के साथ सीमा पर तनाव बना हुआ है. ऐसे में अमेरिका और चीन के संबंधों के बदलते समीकरणों की वजह से चीन को लेकर भारत की अप्रोच प्रभावित हो सकती है.
अमेरिका और चीन संबंधों को लेकर भारत का रुख बहुआयामी है. एशिया और इंडो पैसिफिक क्षेत्र के बदलते समीकरणों की वजह से भारत और अमेरिका को अपने संबंधों को नए स्तरों पर ले जाने पर विचार करना होगा. अमेरिका ने कई बार यह दोहराया है कि इंडो पैसिफिक क्षेत्र, चीन के क्षेत्रीय प्रभुत्व के दावे को चुनौती देना और उसके इस क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव को कम करना उसकी प्राथमिकता है.
चीन के प्रति आक्रामक रुख अपनाने से लेकर उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता बहाल करने तक अमेरिका के रुख में यह बदलाव चीन से निपटने को लेकर उसकी स्ट्रैटेजी में बदलाव को दर्शाता है. अमेरिका के रुख में यह बदलाव उस तथ्य पर भी आधारित है, जिससे पता चलता है कि दोनों देशों के बीच 2022 में द्विपक्षीय व्यापार 700 अरब डॉलर रहा है.
एशिया पॉलिसी सोसाइटी इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो सी. राज मोहन ने ऐसी स्थिति में भारत की रणनीति पर बात करते हुए कहा कि भारत की अपनी पॉलिसी हैं. वह अमेरिका, चीन और रूस के साथ अपने संबंधों में तालमेल बैठा रहा है. भारत का जोर अमेरिका के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने के लिए नई संभावनाओं से लाभ उठाने पर होना चाहिए. रूस के साथ दीर्घकालीन संबंधों को बनाए रखने और चीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों को सही तरीके से मैनेज करने पर होना चाहिए.
भारत और चीन संबंधों पर प्रभाव
साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के विल्सन सेंटर के डायरेक्टर माइकल कुगलमैन ने अमेरिका और चीन के संबंधों में सुधार के भारत पर प्रभाव के बारे में बताते हुए कहा कि अमेरिका और चीन सैन्य वार्ता की बहाली और दोनों देशों के संबंधों में सुधार से भारत को सीधेतौर पर लाभ हो सकता है. इसके कई कारण हैं कि आखिर क्यों चीन ने एलएसी पर भारत के खिलाफ उकसावे वाली कार्रवाई की. इसकी एक और वजह अमेरिका और भारत के बीच तेजी से बढ़ रही सैन्य साझेदारी भी है. अगर अमेरिका और चीन के बीच तनाव कम होता है तो ऐसे में भारत को निशाना बनाने के लिए चीन के पास अधिक गुंजाइश नहीं होगी.
भारत के लिए नया अध्याय?
जिस तरह से वैश्विक स्तर पर नए घटनाक्रम हो रहे हैं. ऐसे में असल सवाल अभी भी बना हुआ है. क्या एलएसी पर चीन के रुख में कोई ठोस बदलाव देखने को मिलेगा? अमेरिका और चीन के बीच सैन्य वार्ता को लेकर बनी सहमति उम्मीद जगाती है. पर ऐसे में भारत और चीन के बीच की समस्याओं और उनके बीच अविश्वास की भावना को नकारा नहीं जा सकता. भारत के लिए यह समय अपने कूटनीतिक और रणनीतिक दृष्टिकोण पर फिर से गौर करने का है.