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बगावत नहीं, दोस्ताना लड़ाई… पप्पू यादव के फाइनल डिसीजन ने बढ़ाई लालू की टेंशन, JDU को सीधा फायदा

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पटना

बिहार के पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ने की उम्मीद में कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने इस सीट के सहयोगी पार्टी राजद के पास चले जाने के बाद शुक्रवार को बागी उम्मीदवार के रूप लड़ने की संभावना से इनकार किया। कांग्रेस से पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन राज्यसभा सदस्य हैं। उन्होंने पार्टी के प्रति अपनी पूर्ण निष्ठा व्यक्त करते हुए ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दलों के बीच कई निर्वाचन क्षेत्रों में दोस्ताना लड़ाई होने के संकेत दिए। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि मैं राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने और बिहार में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।

लालू को टेंशन
पूर्व सांसद ने अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था और दावा किया था कि राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी ने उन्हें पूर्णिया से टिकट देने का आश्वासन दिया था। यह पूछे जाने पर कि क्या वह निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ेंगे, उन्होंने ‘न’ में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि मैंने अपने हाथों में कांग्रेस का झंडा पकड़ रखा है, इसे अपनी आखिरी सांस तक जाने नहीं दूंगा। मैं पूर्णिया में कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए काम करूंगा और 26 अप्रैल को जब मतदान होगा तो इसका असर सबके सामने होगा। पप्पू यादव ने यह भी कहा कि इंडिया गठबंधन के सभी घटक दल एक समान उद्देश्य के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। कई स्थानों पर वे एक-दूसरे से लड़ते दिख सकते हैं। वायनाड (केरल) में राहुल गांधी को डी राजा की पत्नी एवं भाकपा उम्मीदवार एनी राजा ने चुनौती दी है।

पप्पू यादव का फैसला
उन्होंने कहा कि पूर्णिया की लड़ाई में मेरी भूमिका क्या होगी, इसे परिभाषित करने का काम मैं पूरी तरह से अपने नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तथा एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर छोड़ता हूं। पप्पू यादव पिछली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में विजयी हुए थे। उस समय वह राजद के टिकट पर मधेपुरा से जीते थे। उन्होंने 1990 के दशक में तीन बार (दो बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में) पूर्णिया का प्रतिनिधित्व किया। पिछले सप्ताह राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद द्वारा पूर्णिया से जदयू से पाला बदलकर आईं बीमा भारती को पार्टी का टिकट दिए जाने के बाद ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि पप्पू यादव को मधेपुरा या सुपौल से किस्मत आजमाने के लिए कहा जा सकता है। हालांकि ये तीनों सीट अब राजद के खाते में आ गई हैं। पप्पू यादव को खुद को बाहुबली कहलाना पसंद नहीं है। वह उत्तर पूर्वी बिहार के सीमांचल क्षेत्र के कई जिलों में लोकप्रिय माने जाते हैं।

पूर्णिया लोकसभा सीट
वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि पप्पू यादव के फाइनल फैसले ने लालू यादव की टेंशन बढ़ा दी है। ये पूरी तरह सच है। लालू यादव को भरोसा है कि सीमांचल की सीटें राजद के खाते में आएंगे। ओवैसी काम बिगाड़ते हैं। उसके बाद भी सीमांचल के लोगों पर लालू यादव को भरोसा है। सबसे बड़ी बात ये है कि जेडीयू के प्रत्याशी संतोष कुशवाहा भी पूर्णिया से चुनाव लड़ रहे हैं। लालू को डर है कि यदि पप्पू यादव नहीं मानते हैं तो चुनाव में बीमा भारती और पप्पू यादव के बीच महागठबंधन के वोटर बंट जाएंगे। इस तरह जीत जेडीयू के उम्मीदवार की निश्चित हो जाएगी। धीरेंद्र कहते हैं कि आप पूर्णिया के जातिगत समीकरण को देखिए। यहां एमवाई समीकरण हावी है। कुल 22 लाख वोटर हैं। इसमें मुस्लिम सबसे ज्यादा 7 लाख है। यादव डेढ़ लाख हैं। अति पिछड़ा दो लाख हैं। बीमा भारती अति-पिछड़ा समाज से आती हैं। लालू यादव ने यही सोचकर दांव लगाया था कि यादव वोटर उनकी वजह से और अति-पिछड़ा बीमा भारती की वजह से सपोर्ट करेंगे और काम बन जाएंगे। लेकिन अब उन्हें पप्पू को संभालना मुश्किल हो रहा है।

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