प्राइवेट स्कूलों की मनमानी अब नहीं चलेगी! दिल्ली हाई कोर्ट ने गरीब परिवारों को दी बड़ी राहत

नई दिल्ली:

दिल्ली हाई कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को EWS कोटे के तहत सीट भरने के संबंध में सख्त निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट की सिंगल बेंच ने साफ किया कि किसी खास एक साल में केजी/प्री-प्राइमरी क्लास में ईडब्ल्यूएस/डीजी की सीटें खाली रह जाएं, तो उन्हें अगले सेशन में पहली क्लास की सीटों के साथ समान संख्या में ईडब्ल्यूएस/डीजी स्टूडेंट को दाखिला देकर प्राइवेट स्कूल को भरना होगा। अगर कोई स्कूल ऐसा करने से इनकार करेगा तो वह अपने खिलाफ दिल्ली स्कूल एजुकेशन (DSE) एक्ट और दिल्ली स्कूल एजुकेशन रूल्स के अनुसार कार्रवाई का पात्र होगा। जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने 8 अप्रैल को सुनाए गए अपने एक फैसले में यह सफाई दी।

क्या है मामला?
जय और तेजा नाम के दो बच्चों की ओर से मामले में याचिका दायर की गई थी, जो आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) और समाज के वंचित वर्ग (डीजी) से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने केजी /प्री प्राइमरी क्लास में दाखिले के लिए एक प्रतिवादी निजी स्कूल में आवेदन दिया था। कोर्ट ने दोहराया कि RTE एक्ट, 2009 के सेक्शन 12(1)(c) के तहत प्रतिवादी स्कूल में दाखिले के लिए एंट्री लेवल क्लास नर्सरी/ प्री-स्कूल है, केजी/प्री-प्राइमरी क्लास नहीं। इसमें भी कोई विवाद नहीं था कि प्रतिवादी स्कूल में EWS सीट में दाखिले के लिए दिल्ली शिक्षा निदेशालय द्वारा निर्धारित सीटों में से जो सीटें 2022 में खाली रह गईं, उन्हें अगले सेशन की सीटों के साथ जुड़ना था।

स्कूल ने क्या तर्क रखा?
स्कूल के मुताबिक, उसने नवंबर 2022 में शिक्षा निदेशालय से शिकायत करते हुए कहा कि तमाम कोशिशों के बावजूद उसके स्कूल में पिछले पांच साल से सामान्य वर्ग की सीटें पूरी नहीं भर पा रही हैं, इसीलिए EWS सीटें कम कर दी जाए। उसने इस आंकड़े को 5 सीटों तक सीमित रखने का अनुरोध किया। कोर्ट ने कहा कि स्कूल ने यह अनुरोध केवल एंट्री लेवल क्लास के संबंध में किया था, केजी और प्री प्राइमरी के संबंध में नहीं। लिहाजा, डीओई ने मौजूदा सेशप 2023-24 के लिए जो लिस्ट जारी की, उसमें मौजूदा सेशन में प्रतिवादी स्कूल में केजी और प्री प्राइमरी क्लास के लिए 24 सीटें दिखाई गईं। इस आंकड़े में सुधार के लिए 18 जनवरी तक का वक्त् दिया गया था। चूंकि, स्कूल की ओर से तब तक आंकड़े को लेकर कोई आपत्ति नहीं आई थी, इसीलिए वह संख्या पक्की हो गई। कोर्ट ने गौर किया कि 3 मार्च, 2023 में डीओई ने जो ड्रॉ निकाला, उसमें याचिकाकर्ता केजी और प्री प्राइमरी के तहत दाखिले के लिए चुने गए। उन्होंने प्रतिवादी स्कूल का रुख किया जिसने इन्हें दाखिला देने से मना कर दया। हाई कोर्ट से अंतरिम राहत के रूप में इन दोनों बच्चों को इस स्कूल में प्राविजनल दाखिला दिया, जिसे नियमित करने का आदेश हाई कोर्ट ने अपने मौजूदा फैसले में दिया। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि क्योंकि प्रतिवादी स्कूल ने तय समय के भीतर सीटें कम करने का अनुरोध नहीं किया था, इसीलिए वह याचिकाकर्ताओं को ड्रॉ के परिणाम अनुसार दाखिला देने की जिम्मेदारी से बंधा है।

हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया
प्रतिवादी स्कूल ने तर्क दिया कि RTE एक्ट में बच्चे के अधिकारों और स्कूल की, एक गैर सहायता प्राप्त संस्थान होने के नाते, फीस तय करने को लेकर स्वायत्तता के बीच संतुलन का होना जरूरी है, जिसकी कई फैसलों से पुष्टि होती है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने माना कि स्कूल ने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया था कि उसे नर्सरी और प्री नर्सरी में 16 EWS/DG सीटें भरनी होंगी। जहां तक खाली रह गई सीटों को आगे की रिजर्व सीटों के साथ जोड़ने का सवाल है तो इस बारे दिल्ली हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने ‘सिद्धार्थ इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल मामले में अपना फैसला पहले से सुना रखा है। उसमें कहा गया था कि किसी एक साल में अगर EWS /DG सीटें खाली रह जाएं तो उन्हें स्कूल द्वारा अगले सत्र की सीटों के साथ जोड़ कर भरा जा सकता है।

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