नई दिल्ली:
भारत की वर्ल्ड कप जीत में बुमराह हीरो बनकर उभरे और उन्हें प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया। बुमराह हाल में टीम इंडिया में तुरुप का इक्का और सबसे बड़े मैच विनर बनकर उभरे हैं क्रिकेट के जुनून वाले 140 करोड़ के जिस देश में हमेशा से महान बल्लेबाजों को पूजने की परंपरा रही हो, वहां एक गेंदबाज का नायक बनकर उभरना यह साबित करता है कि वह असाधारण क्यों है। चलिए एक नजर बुमराह के जीवन और खेल पर डालते हैं…
शारीरिक कमजोरी से मजबूती तक
बुमराह भले ही आज भारतीय टीम की रीढ़ हों, लेकिन जन्म के वक्त वह फिजिकली कमजोर थे। पड़ोसी और उनके परिवार की अच्छी दोस्त दीपल त्रिवेदी ने X पर बताया कि जब उन्होंने शिशु बुमराह को पहली बार गोद में लिया तो वह बहुत कमजोर और पतले थे। वह कमजोर बच्चा हंसने की कोशिश कर रहा था, लेकिन हंस नहीं पा रहा था। इसके बाद कमजोर बुमराह को डॉक्टर ने ऑब्जर्वेशन में रखा। अहमदाबाद के अस्पताल में 6 दिसंबर 1993 को जन्मे बुमराह सिर्फ पांच साल के ही हुए थे कि उनके पिता जसवीर सिंह हेपटाइटिस-बी बीमारी की वजह से उन्हें छोड़कर चले गए।
प्लास्टिक बॉल से वर्ल्ड कप तक
मां दलजीत को घर चलाने के लिए दिन में 16-18 घंटे तक काम करना पड़ता था। इसके बावजूद घर का खर्च चलाना मुश्किल होता था। दीपल लिखती हैं कि परिवार का संघर्ष जारी था, लेकिन बुमराह को सबसे ज्यादा चुनौती का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि मां उनके लिए दूध नहीं खरीद पाती थीं। लेकिन उन पर इन बातों का असर नहीं पड़ा। वह सब कुछ छोड़ एक प्लास्टिक की गेंद हाथ में उठाकर खेलते थे। दीपल का मानना है कि बुमराह की कहानी से सबको सीखना चाहिए। वह एक जीता-जागता सबूत हैं, कि जिंदगी में किसी को परिस्थितियों के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए। उनके जैसे खिलाड़ी जो पहले ही जिंदगी से लड़कर जीत चुके हों, उनके लिए ट्रॉफी जीतना सिर्फ उनके करियर पर एक हाईलाइट मार्कर जैसा है।