पुणे पोर्श कांड: चार्जशीट में बिल्डर के बेटे का नाम नहीं, 900 पन्नों के आरोपपत्र में 7 लोग आरोपी

पुणे ,

पुलिस ने पुणे पोर्श कांड मामले में करीब दो महीने बाद चार्जशीट दाखिल की है, जिसमें कथित तौर पर गाड़ी चाल रहे एक नाबालिग लड़के के माता-पिता को भी शामिल किया गया है. पुलिस के इस भारी-भरकम चार्जशीट में 50 गवाहों के बयान शामिल हैं.

पुलिस द्वारा सत्र अदालत में गुरुवार को दायर की 900 पेजों की अपनी चार्जशीट में 17 वर्षीय नाबालिग लड़के के नाम को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि उसका मामला किशोर न्याय बोर्ड (JJB) के पास लंबित है. जबकि सात लोगों को आरोपी बनाया गया है, जिन पर आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं. सात आरोपियों पर आपराधिक षड्यंत्र और सबूत मिटाने से संबंधित धाराओं के तहत आरोपी बनाया गया है.

आरोप पत्र के अनुसार, दो अन्य आरोपी अशपाक मकंदर और अमर गायकवाड़ ने ब्लड सैंपल की अदला-बदली के लिए पैसे के लेनदेन के लिए लड़के के पिता और डॉक्टरों के बीच बिचौलिए के रूप में काम किया.

चार्जशीट में शामिल हैं 50 गवाहों के बयान
अतिरिक्त पुलिस आयुक्त शैलेश बलकवड़े ने कहा, “हमने गुरुवार को पुणे की एक अदालत में सात आरोपियों के खिलाफ 900 पेज का आरोपपत्र दायर किया है, जिसमें नाबालिग के माता-पिता, ससून जनरल अस्पताल के दो डॉक्टर और एक कर्मचारी और दो बिचौलिए शामिल हैं.” पुलिस के इस भारी-भरकम चार्जशीट में 50 गवाहों के बयान शामिल हैं. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त बलकावड़े ने कहा कि आरोपपत्र में दुर्घटना प्रभाव विश्लेषण रिपोर्ट, तकनीकी सबूत, फोरेंसिक प्रयोगशाला और डीएनए रिपोर्ट शामिल हैं.

पुलिस ने फोरेंसिक विशेषज्ञ की मदद से दुर्घटना प्रभाव विश्लेषण रिपोर्ट तैयार की थी. रिपोर्ट का उद्देश्य दुर्घटना में शामिल मोटरसाइकिल पर पोर्श कार के प्रभाव को सहसंबंधित करना और मरने वाले आईटी पेशेवरों की चोटों के साथ भी संबंध स्थापित करना है.

बॉम्बे HC ने दी नाबालिग को जमानत
पिछले महीने, पुलिस ने कार दुर्घटना मामले में 17 वर्षीय लड़के के खिलाफ सभी सबूतों का विवरण देते हुए जेजेबी को अंतिम रिपोर्ट सौंपी थी. उसे पिछले महीने के अंत में बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद पुणे के एक किशोर सुधार गृह से रिहा कर दिया गया था, जबकि नाबालिग लड़के के माता-पिता अभी भी जेल में हैं.

पुलिस ने हादसे से संबंधित मुख्य मामले के अलावा दो और मामले दर्ज किए थे, जिसमें एक कोसी रेस्त्रां और होटल ब्लैक क्लब के मालिकों और कर्मचारी शामिल हैं. जहां नाबालिग लड़के ने पहले कथित तौर पर शराब पी थी. साथ ही पुलिस ने नाबालिग लड़के के पिता के खिलाफ किशोर न्याय बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम की धारा 75 और 77 के तहत मामला दर्ज किया था.

जेजे अधिनियम की धारा 77 एक बच्चे को नशीली शराब या ड्रग्स की आपूर्ति से संबंधित है, जो दो प्रतिष्ठानों के मालिकों और प्रबंधकों पर लागू होती है. जेजे अधिनियम की धारा 75 बच्चे के प्रति क्रूरता के लिए सजा से संबंधित है. धारा 75 लड़के के पिता पर लागू होती है, क्योंकि उन्होंने यह जानते हुए भी कि लड़के के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है, अपने बेटे को कार दी, जिससे उसका जीवन खतरे में पड़ गया. यह जानते हुए भी कि वह शराब पीता है, उसने अपने बेटे को पार्टी करने की इजाजत दी.

नाबालिग के दादा के खिलाफ भी मामला दर्ज
दूसरा मामला नाबालिग के पिता और दादा के खिलाफ कथित तौर पर उनके पारिवारिक ड्राइवर का अपहरण करने, बंधक बनाने और फिर उसे पुलिस को यह बताने के लिए धमकी देने और दबाव डालने के लिए दर्ज किया गया था कि दुर्घटना के समय वह गाड़ी चला रहा था.

क्या है मामला
बता दें कि 19 मई को कथित तौर पर नाबालिग आरोपी नशे की हालत में था और काफी स्पीड से पोर्श कार चला रहा था. इस दौरान कार से टकराकर दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा की मौत हो गई थी. नाबालिग आरोपी को उसी दिन किशोर न्याय बोर्ड ने जमानत दे दी थी और उसे अपने माता-पिता और दादा की देखरेख में रखने का आदेश दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने ये शर्त भी रखी थी कि नाबालिग आरोपी को सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखना होगा. हालांकि, पुलिस ने बाद में बोर्ड के समक्ष एक आवेदन दायर किया, जिसमें जमानत के आदेश में संशोधन की मांग की गई थी. 22 मई को बोर्ड ने नाबालिग आरोपी को हिरासत में लेने और उसे बाल सुधार गृह में भेजने का आदेश दिया था.

पुलिस को ब्लड सैंपल में हेरफेर मिली, जिसके बाद आईपीसी की धारा 201 (साक्ष्यों को गायब करना), 120 बी (आपराधिक साजिश), 467 (मूल्यवान सुरक्षा की जालसाजी), 213 (अपराधी को सजा से बचाने के लिए उपहार लेना आदि) जोड़ी गई.) और 214 (नाबालिग के खिलाफ दर्ज मूल अपराध के लिए अपराधी की जांच के लिए उपहार या संपत्ति की बहाली की पेशकश).मुख्य अपराध आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या), 304ए (लापरवाही से मौत का कारण बनना), 279 (तेज गाड़ी चलाना) और मोटर वाहन अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत दर्ज किया गया था.

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