MSP देने से क्यों इनकार किया था UPA सरकार ने, शिवराज के सवालों में कितना दम?

नई दिल्ली,

देश की संसद में शुक्रवार को देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने MSP की गारंटी को लेकर यूपीए सरकार के जिस कैबिनेट नोट की चर्चा की, दरअसल वही हकीकत है. कोई भी सरकार एमएसपी की गारंटी देने से क्यों बचती है इसे यूपीए सरकार के मंत्रियों ने जो जवाब दिए उसे ही आज सही माना जा सकता है. क्योंकि सरकार की बातों पर डिमांड करने वालों को भरोसा नहीं होता है. खुद प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी जिस तरह किसान नेताओं को आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रहे हैं उन्हें भी समझना होगा कि यह किसानों को झूठी दिलासा दिलाना ठीक नहीं है. दरअसल किसान नेता हों या राजनीतिक दल, पक्ष हो विपक्ष किसी को भी किसानों की भलाई से मतलब है ही नहीं. सभी अपनी अपनी राजनीतिक गोटियां सेट करने में ही लगे हैं.

शिवराज सिंह ने राज्यसभा में एमएसपी की गारंटी पर आए एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि कांग्रेस ने स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशों को मानने से इनकार कर दिया था.शिवराज ने बताया कि उस वक्त कृषि मंत्री कांतिलाल भूरिया ने कहा कि इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. शिवराज ने किसान नेता शरद पवार जो उस समय यूपीए सरकार में मंत्री थे के भी एक बयान को कोट किया और कहा, सरकार सीएसीपी की सिफारिशों के आधार पर एमएसपी तय होती है, इसलिए जानने की आवश्यकता है कि उत्पादन लागत और एमएसपी के बीच कोई आंतरिक संबंध नहीं हो सकता. मतलब साफ था कि शरद पवार भी एमएसपी पर गारंटी देने से सहमत नहीं थे.

शिवराज सिंह चौहान ने यूपीए सरकार के एक और मंत्री केवी थॉमस के बयान के बारे में बताया कि किस तरह थामस भी एमएसपी की गारंटी नहीं देने की वकालत की थी. थामस ने कहा था कि एमएसपी को स्वीकार नहीं किया सकता क्योंकि एमएसपी की सिफारिश कृषि लागत और मूल्य आयोग द्वारा वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर प्रासंगिक कारकों की व्यवस्था पर विचार करते हुए की जाती है. कृषि मंत्री ने कहा कि ये कैबिनेट नोट उस वक्त की कांग्रेस सरकार का है जिसमें एमएसपी से इनकार किया गया है. मंत्री ने कहा, एमएसपी को उत्पादन की औसत लागत से 50 परसेंट अधिक तय करने की सिफारिश पर यूपीए सरकार ने कैबिनेट में यह कहते हुए स्वीकार नहीं किया है, क्यों कि सीएसीपी द्वारा प्रासंगिक कारकों की व्यवस्था पर विचार करते हुए वस्तुनिष्ठ मानदंड के रूप में एमएसपी की सिफारिश की गई है, इसलिए लागत पर कम से कम 50 परसेंट की वृद्धि निर्धारित करना बाजार को बरबाद कर सकता है.

कोई भी सरकार आए व्यहारिक दिक्कतों का् सामना कैसे करेगी
सबसे पहले देश के सिर्फ 6 फीसदी किसानों को ही MSP की गारंटी देकर 10 लाख करोड़ खर्च करना कोई भी सरकार नहीं चाहेगी. ये छह परसेंट भी 80 फीसदी पंजाब और हरियाणा के किसान हैं शेष 20 परसेंट में देश भर के किसान हैं. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के माध्यम से ही समझा जा सकता है. अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर (1977-1981)ने डेयरी फार्मर्स की आर्थिक दशा को सुधारने के लिए हर छह महीने में 6 सेंट पर गैलन के हिसाब से मूल्य बढ़ोतरी का ऐलान कर दिया. पर महंगे दूध की बिक्री में प्रॉब्लम होनी ही थी. इसलिए सरकार ने एक रेट तय कर दिया कि इससे नीचे दर पर खरीदारी संभव नहीं होगी. इसके बाद सारे डेयरी फार्म वाले चीज बनाकर अमेरिकी सरकार को बेचने लगे. नतीजा ये हुआ कि सरकार के पास चीज का पहाड़ों के ढेर बन गया. कार्टर सरकार ने करीब 2 बिलियन डालर डेयरी फार्मर के सपोर्ट में खर्च कर दिया. कार्टर के बाद रोनाल्ड रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति बने उन्होंने हर छह महीने पर दूध के रेट बढ़ोतरी के आदेश को निरस्त कर दिया. इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि एमएसपी की गारंटी देकर कोई भी सरकार अपना भद नही्ं पिटवाना चाहेगी.

चौहान चाहें तो एमपी जैसी योजना ला सकते हैं
देश में एमएसपी लागू करने के पीछे सबसे बड़ी समस्या आर्थिक बताई जाती है. देश में कुल कृषि उत्पादन का करीब 40 लाख करोड़ रुपये का होता है. कहा जाता है कि इतनी खरीदारी के लिए इतने पैसे कहां से आएंगे. अभी जिन 24 फसलों पर एमएसपी लागू है, उनका बाजार मूल्य दस लाख करोड़ रुपये के करीब है.अभी सरकार एमएसपी पर खरीद के लिए ढाई लाख करोड़ खर्च कर रही है. एमएसपी वाली 24 फसलों की खरीदारी के लिए दस लाख करोड़ चाहिए होंगे.अगर सारी खरीदारी हो भी गई तो रखा कहां जाएगा. देश में अभी सिर्फ 47 प्रतिशत अन्न के भंडारण की ही व्यवस्था है.

कुछ लोगों का मानना है कि शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए एमएसपी की गारंटी के विकल्प के रूप में एक योजना लाई थी. इसका नाम भावांतर योजना था.इसके तहत किसान MSP के नीचे दाम पर अपनी फसल बेचता है तो अंतर की भरपाई राज्य सरकार को करना था. यह योजना कितनी सफल हुई इसका पता नहीं है. पर देखने में जरूर ये योजना आकर्षक लगती है. अगर इस योजना में कुछ कमियां थीं तो उसमें सुधार किया जा सकता है . कम से कम पाइलट प्रोजेक्ट के तौर पर तो शुरू ही किया जा सकता है. शिवराज सिंह चौहान अब कृषि मंत्री हैं .उन्हें अपनी इस योजना के बारे में जरूर सोचना चाहिए

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