चुनाव में जीते मगर मामला अदालत में गया तो क्या पद संभालने से रोका जा सकेगा? SC ने दिया फैसला

नई दिल्ली

अगर कोई शख्स चुनाव जीत जाए लेकिन अगर मामला अदालत में चला जाए तो क्या उसे पद ग्रहण से रोका जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा ही मामला सामने आया था जिसमें चुनाव जीतने के बाद भी एक सरपंच पद ग्रहण नहीं कर पा रहे थे। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत जीते उम्मीदवार को पद ग्रहण करने से नहीं रोका जा सकता है।

हरियाणा के झज्जर से जुड़ी एक पंचायत के चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई उम्मीदवार लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव जीतता है, तो उसे पद संभालने से नहीं रोका जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने झज्जर के जिला निर्वाचन अधिकारी को आदेश दिया है कि वह संदीप कुमार को सरपंच पद का कार्यभार सौंपे।

क्या है मामला
संदीप कुमार ने झज्जर के असौदाह (सिवां) गांव से सरपंच का चुनाव जीता था। लेकिन उन्हें पद संभालने से रोक दिया गया। इस मामले में संदीप कुमार के अलावा तीन अन्य उम्मीदवार भी मैदान में थे। एक उम्मीदवार ने अपना पर्चा वापस ले लिया था। दो अन्य उम्मीदवारों का पर्चा इस आधार पर खारिज हो गया कि उनके पास जरूरी शैक्षणिक योग्यता नहीं थी। इस तरह चुनाव मैदान में संदीप कुमार इकलौते उम्मीदवार बचे और वह सरपंच पद के लिए निर्विरोध निर्वाचित हो गए। लेकिन मामला अदालत में चले जाने की वजह से उनका पद संभालना खटाई में पड़ गया।

दरअसल, संदीप के चुनाव जीतने के बाद पर्चा दाखिल करने वाले एक शख्स ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने अदालत से गुहार लगाई कि उसके मैट्रिक के सर्टिफिकेट पर विचार किया जाए। उसने कहा कि शैक्षणिक योग्यता के आधार पर उसका नामांकन रद्द नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए रिटर्निंग ऑफिसर को उस उम्मीदवार का नामांकन स्वीकार करने का आदेश दिया।

इस बीच, संदीप कुमार ने भी हाई कोर्ट में याचिका दायर कर जिला निर्वाचन अधिकारी को निर्देश देने की मांग की कि उन्हें सरपंच पद का कार्यभार सौंपा जाए। जब हाई कोर्ट ने उनकी याचिका पर कोई आदेश पारित नहीं किया तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन दाखिल की।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बजाय याचिकाकर्ता को चुनाव याचिका दायर करनी चाहिए थी। कोर्ट ने कहा , ‘एक बार चुनाव की घोषणा हो जाने के बाद, इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए और चुनाव के बाद, एकमात्र उपाय चुनाव याचिका दायर करना है और नामांकन पत्र की अस्वीकृति निश्चित रूप से उन आधारों में से एक है जिसे चुनाव याचिका में उठाया जा सकता है। प्रतिवादी नंबर 1 ने इस उपाय का लाभ नहीं उठाया है। यहां तक कि उन्होंने अपीलकर्ता को रिट याचिका में पक्षकार भी नहीं बनाया है।’ इस दौरान कोर्ट ने मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (1978) केस में दिए फैसले का हवाला दिया।

शीर्ष अदालत ने आगे कहा, ‘इन परिस्थितियों में, हमारा विचार है कि इस मामले में एक अंतरिम आदेश पारित करने की जरूरत है क्योंकि एक उम्मीदवार जिसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विधिवत चुना गया है, उसे पद ग्रहण करने से नहीं रोका जा सकता है, खासकर उस तरीके से जिस तरह से इसे रोका गया है।’

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