नई दिल्ली
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सोमवार को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी एक अलग अंदाज व तेवर में नजर आए। अपने आधे घंटे से ज्यादा के संबोधन में राहुल गांधी ने न अपनी पिच ऊंची की, न वह कहीं आक्रामक तरीके से सरकार पर हमलावर नजर आए। अपने पूरे संबोधन में राहुल गांधी ने अपनी बात कहने के लिए एक स्पष्ट रणनीति, एक सधी हुई भाषा-शैली, एक परिपक्व सोच और बेबाकीपन का इस्तेमाल किया।
उन्होंने अपनी बात पूरी ईमानदारी से सदन में रखी। अपने पिछले तमाम भाषणों व संबोधनों से इतर अपने सोमवार के संबाेधन में राहुल गांधी ने सरकार पर हमला या हल्ला बोलने से न सिर्फ परहेज किया, बल्कि सरकार की आलोचना भी अपेक्षाकृत नजर रुख के साथ की तो वहीं सरकार की कमियां गिनाने की बजाय एक ठोस व रचनात्मक सुझाव भी देखे दिखे।
चुनौतियों के साथ समाधान का जिक्र
अपने संबोधन में जहां राहुल गांधी ने बड़ी साफगोई से राष्ट्रपति के अभिभाषण में कुछ भी नयापन न होने या पुरानी बातों के दोहराव की बात कही तो वहीं उन्होंने यह कहते हुए एक रचनात्मक विपक्षी नेता के तौर पर सामने आने की कोशिश की कि अगर सरकार इंडिया गठबंधन की होती तो राष्ट्रपति के अभिभाषण में ढेर सारी बातों का जिक्र होने की बजाय असली जोर किन अहम बिंदुओं पर होता। इतना ही नहीं अपने संबोधन में राहुल ने देश के सामने मौजूद अहम मुद्दों और चुनौतियों का न सिर्फ जिक्र किया, बल्कि उसका समाधान देने व उसका एक ब्लू्प्रिंट रखने की कोशिश भी की।
मुद्दों को लेकर रखी अपनी सोच
जिस तरह से दुनिया के कई देशों में शैडो कैबिनेट होती है, जो देश के मुद्दों पर अपना विचार, सोच सामने रखती है, कुछ उसी तर्ज पर राहुल ने मुद्दों को लेकर अपनी सोच सामने रखने की कोशिश की। अपने संबोधन में उन्होंने जिस तरह से उत्पादन और उपभोग के मोर्चे पर भारत की मजबूती के लिए एक रोडमैप सामने रखने की कोशिश की, वहां राहुल एक दूरदृष्टा के तौर पर सामने आए, एक ऐसा नेता, जो देश के बुनियादी मुद्दों की समझ ही नहीं रखता, उसका समाधान देने की क्षमता भी है उसके पास।
सरकार को रचनात्मक सुझाव
जिस तरह से विपक्ष पर अकसर आरोप लगता है कि वह सरकार की आलोचना या विरोध के लिए विरोध करता है, सोमवार को राहुल ने उस सोच को भी तोड़ने की कोशिश की। जहां राहुल यह संदेश देते दिखे कि देश की बेहतरी के लिए वह सरकार को रचनात्मक सुझाव देने से भी पीछे नहीं हटेंगे। सोमवार को राहुल ने सरकार की कमियां गिनाने, उस पर आरोप प्रत्यारोप करने से बचते दिखे। उनकी इस रणनीति का समर्थन करती उनकी बहन व कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी दिखाई दीं।
राहुल के संबोधन के बाद जब मीडिया ने प्रियंका से उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उनका कहना था कि नेता का भाषण आरोप प्रत्यारोप करने की बजाय मुख्य रूप से देश के लिए एक दृष्टिकोण सामने रखने और देश के भविष्य के मद्देनजर एक विचार सामने रखने पर केंद्रित होना चाहिए।
संबोधन में दिखी ईमानदारी
वहीं सोमवार के संबोधन के एक बड़ी खूबी उनकी ईमानदारी भी रही। एक ओर जहां राहुल गांधी ने कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की कमियों पर बड़ी साफगोई और ईमानदारी से स्वीकारा तो वहीं उन्होंने मेक इन इंडिया जैसे सोच को आगे बढ़ाने के लिए पीएम के विजन और कोशिशों की भी तारीफ की। यह कोई पहला मौका नहीं होगा, जहां राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की ओर से की गलतियों के लिए देश से सामने खेद जताया हो। पिछले संसदीय संबोधन में प्रियंका ने इमरजेंसी के लिए माफी का जिक्र करते हुए कहा था कि हमने तो माफी मांग ली, आप भी माफी की आदत डाल लीजिए।
अपने संबोधन राहुल का बेवजह उत्तेजित न होना, हाजिरजवाबी और विनम्रता भी दिखाई दी। उन्हाेंने अपने विरोधी नेताओं के बयानों का जिक्र किया, लेकिन उनके कहीं भी अमर्यादित भाषा व शैली का इस्तेमाल करने की बजाय एक गरिमापूर्ण तरीका अपनाया। पूर्व पीएम अटल बिहारी की अपने पिता द्वारा शुरू की जा रही कंप्यूटर क्राति का विरोध किए जाने का जिक्र किया, लेकिन यह कहना नहीं भूले कि वह वाजपेयी का बेहद सम्मान करते हैं।
बीच में माफी मांगते भी दिखे राहुल
वहीं उन्होंने पीएम मोदी को सीधे संबोधित करते हुए हल्के फुल्के अंदाज में उन्हें अपनी ओर मुखातिक होने के लिए कहना भी कहीं न कहीं यह दिखाने की कोशिश थी कि नेता सदन व नेता प्रतिपक्ष एक दूसरे के विरोधी हैं, दुश्मन नहीं। राष्ट्रपति अभिभाषण पर पिछली बार बार-बार अपनी बात से पीछे न हटने की बात करने वाले राहुल इस बार सत्तापक्ष की ओर से विरोध जताने पर उन्हें उकसाने की बजाय कई बार अपने शब्दों को बदलते और माफी की मांग करते तो दिखे, लेकिन इस प्रयास में कहीं भी उन्होंने ऐसा संकेत नहीं दिया कि वह जो कहना चाहते हैं या कह रहे हैं, उससे वह पीछे हटने वाले हैं।