नई दिल्ली ।
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी की जन्म शताब्दी केवल स्मरण का अवसर नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प है। अटल जी भारतीय राजनीति में गरिमा, संवाद, सहिष्णुता और राष्ट्रप्रथम के प्रतीक रहे। उन्होंने असहमति को लोकतंत्र की शक्ति बनाया और राजनीति को नैतिकता से जोड़ा। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने पोखरण परमाणु परीक्षणों से भारत की सुरक्षा सुदृढ़ की, वहीं लाहौर बस यात्रा के माध्यम से शांति और संवाद का संदेश दिया। स्वर्णिम चतुर्भुज, ग्रामीण सड़क विकास और दूरसंचार क्रांति ने देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना को नई दिशा दी।
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मध्य प्रदेश, विशेषकर ग्वालियर और भोपाल स्थित अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, उनकी दूरदृष्टि के जीवंत उदाहरण हैं। आज के दौर में जब सार्वजनिक विमर्श में कटुता बढ़ रही है, अटल जी का जीवन हमें संयम, सहमति और सुशासन का मार्ग दिखाता है। अटल जी की कविताएँ आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं—“हार नहीं मानूँगा”—यह पंक्ति विकसित भारत के संकल्प का मंत्र है। उनकी शताब्दी हमें यह सिखाती है कि सशक्त राष्ट्र केवल विकास से नहीं, बल्कि मूल्यों और नैतिक नेतृत्व से बनता है।
