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तुम राक्षस हो…सुप्रीम कोर्ट ने भड़ककर किसे कह दी ऐसी बात, बोला-ऐसा कैसे कर सकते हो, माफी लायक भी नहीं

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नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट एक मामले में सुनवाई के दौरान भड़क उठा। उसने सुनवाई के दौरान मामले के आरोपी से कहा कि तुम राक्षस हो…ऐसा कैसे कर सकते हो। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सात साल की बेटी के रेप के दोषी डॉक्टर को जमानत जैसी राहत देने से इनकार कर दिया है। डॉक्टर की याचिका खारिज करते हुए कहा कि विकृत लोग सजा माफी के हकदार नहीं हैं। आरोपी डॉक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी उम्रकैद की सजा माफ करने की अपील की थी। जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने और क्या-क्या कहा।

गुनहगार बोला-पत्नी ने मतभेदों के चलते फंसाया
सुप्रीम कोर्ट में दोषी के वकील ने तर्क दिया कि उसे अपनी पत्नी के साथ मतभेदों के कारण फंसाया गया था। उसकी पत्नी ने बच्चे को उसके खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार किया था। उसकी पत्नी भी एक डॉक्टर है। इसके बावजूद उसकी बेटी की मेडिकल जांच तीन महीने की देरी से हुई और उसके शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं पाए गए। इस पर सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि बच्चे के बयान पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है और उसने जिरह में भी अपना बयान कायम रखा। पीठ ने कहा-इंसान राक्षस बन गया है। कृपया हमें कुछ और कहने के लिए मजबूर न करें। उसने अपने पिता के खिलाफ गवाही दी। हमें उस पर संदेह क्यों करना चाहिए? डॉक्टर का तर्क था कि उसकी बेटी को सिखाया गया था और उसने झूठी गवाही दी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया।

विकृत व्यक्ति, सजा माफी का हकदार नहीं
पीठ ने कहा कि ‘आरोपी डॉक्टर को निचली अदालत ने दोषी माना है, ऐसे में उसे सजा माफी नहीं दी जा सकती। पीठ ने कहा कि बच्चे के साथ जो तुमने किया है, ऐसे में तुम राहत पाने के अधिकारी नहीं हो। बच्चे ने खुद बयान दिया है। वह एक विकृत व्यक्ति हो और वह सजा माफी का हकदार नहीं है।

तुम अपनी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हो
पीठ ने कहा कि तुम अपनी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हो। बच्ची भी अपने पिता के खिलाफ गवाही क्यों देगी। वह एक छोटी बच्ची है, जो बार-बार पूछने के बाद भी अपने बयान पर कायम रही है। व्यक्ति शराब के नशे में राक्षस बन जाता है। हमें ये बात नहीं कहनी चाहिए। आरोपी के वकील ने दावा किया कि बच्ची को उसकी मां ने सिखाया है और मां के कहने पर बच्ची ने झूठी गवाही दी। हालांकि पीठ ने दलील मानने से इनकार कर दिया।

दोषी बोला-अपील पर फैसले में बरसों लगेंगे
राहत की मांग करते हुए दोषी ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को उसकी अपील पर फैसला करने में वर्षों लग जाएंगे और मामले की लंबित अवधि के दौरान उसे जेल में सड़ना होगा। उसने कहा कि हाईकोर्ट में 12 लाख मामले लंबित हैं और 1981 में दायर अपीलों पर अब सुनवाई हो रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी और कुछ समय बाद एक नई जमानत याचिका दायर करने की अनुमति दी।

जमानत नहीं दे रहे हैं तो कुछ तो बात है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सबसे उदार पीठ है और अगर हम जमानत नहीं दे रहे हैं तो इसका मतलब है कि कुछ तो बात है। हम इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं। उस व्यक्ति को वाराणसी की एक अदालत ने दोषी ठहराया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

समझिए क्या है पूरा मामला
एफआईआर में पीड़ित बच्ची की मां ने आरोप लगाया था कि उसके पति ने बेटी का रेप किया। दोनों का तलाक हो चुका है। महिला बेटी के साथ वाराणसी में रहती है और आरोपी डॉक्टर हल्द्वानी का निवासी है। हल्द्वानी में उसका नर्सिंग होम है। घटना 23 मार्च 2018 की है, जब आरोपी डॉक्टर अपनी बेटी को हल्द्वानी ले गया था। 30 मार्च को आरोपी ने अपनी पूर्व पत्नी को फोन करके बेटी को ले जाने को कहा। बाद में बच्ची ने अपनी मां को बताया कि उसके पिता ने उसके साथ छेड़छाड़ की। जिसके बाद महिला ने पूर्व पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

जब रेप के आरोपी युवक को दे दी जमानत
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 40 वर्षीय महिला से दुष्कर्म के आरोपी 23 वर्षीय युवक को अंतरिम जमानत दे दी। उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर गौर किया कि नौ महीने से जेल में होने के बावजूद आरोपी के खिलाफ आरोप तय नहीं किए गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पीड़िता बच्ची नहीं है और एक हाथ से ताली नहीं बजती।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा एक हाथ से ताली नहीं बजती
इस मामले में भी जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने तीखी टिप्पणी करते हुए यह भी पूछा कि दिल्ली पुलिस सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर युवक के खिलाफ दुष्कर्म का मामला कैसे दर्ज कर सकती है, जबकि महिला स्वेच्छा से उसके साथ गई थी। पीठ ने कहा-एक हाथ से ताली नहीं बजती। आपने (दिल्ली पुलिस) किस आधार पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत मामला दर्ज किया है? वह बच्ची नहीं है। 40 साल की महिला है। वे दोनों एक साथ जम्मू गए। आपने धारा 376 क्यों लगाई है? यह महिला सात बार जम्मू जाती है और पति को कोई आपत्ति नहीं होती?

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