नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त की रेवड़ियों पर सुनवाई करते हुए कई अहम टिप्पणियां कीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मसले पर चर्चा की जरूरत है क्योंकि देश के कल्याण का मसला है। अदालत ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों का जनता से मुफ्त की रेवड़ियों का वादा और वेलफेयर स्कीम के बीच अंतर करने की जरूरत है। सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई के दौरान साफ-साफ कहा कि मुफ्त की रेवड़ियों पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) समेत सभी दल एक ही दिख रहे हैं।
चीफ जस्टिस एन वी रमन जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच में कहा कि अगर केंद्र सरकार राज्यों को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के लिए कोई कानून बनाता है तो क्या इस कानून की समीक्षा हो सकेगी? पिछली सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि मुफ्त की रेवड़ियों और समाज कल्याण की योजनाओं में अंतर करना जरूरी है। देश की अर्थव्यवस्था के लिए इसमें बैलेंस करने की जरूरत है।
अदालत ने सुना दी खरी-खरी, सब दल एक ही हैं
शीर्ष अदालत ने मुफ्त योजनाओं के मुद्दे पर तथा इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप पर बयान देने के लिए डीएमके और उसके कुछ नेताओं पर नाराजगी जाहिर की। चीफ जस्टिस रमन की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘इस मुद्दे पर मैं कह सकता हूं कि बीजेपी समेत सभी राजनीतिक दल एक ही तरफ हैं। सभी मुफ्त सौगात चाहते हैं। इसलिए हमने एक कोशिश की।’ पीठ ने कहा कि इसके पीछे मंशा इस मुद्दे पर व्यापक बहस शुरू कराने की है और इस लिहाज से समिति के गठन का विचार किया गया। बेंच ने कहा, ‘हमें देखना होगा कि मुफ्त चीज क्या है और कल्याण योजना क्या है।’ पीठ ने कहा कि उसे संतुलना बनाना होगा और वह सरकार की किसी नीति या योजना के खिलाफ नहीं है। उसने कहा, ‘कुछ ने कहा कि हमें विचार करने का, इन मुद्दों पर ध्यान देने का कोई हक नहीं है। हमें संतुलन बनाना होगा। हम सरकार की किसी नीति के खिलाफ नहीं हैं। हम किसी योजना के खिलाफ नहीं हैं।’
चीफ जस्टिस ने एक-एक चीज गिना दी, चुनाव आयोग को भी सुना दिया
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रमन ने हर दलील पर एक-एक चीज गिना दी। उन्होंने कहा कि अगर कोई राजनीतिक दल वादा करता है। जैसे मैं चुने जाने पर होने पर लोगों को विदेशों में भेजूंगा, मुफ्त में बैंकॉक, सिंगापुर जैसे देश। उन्होंने कहा कि ये घोषणापत्र में किए गए वादे हैं या चुनाव से पहले ये देखना होगा। चुनाव आयोग के पास शक्तियां नहीं हैं इसे रोकने करने के लिए? एक बार चुनाव संहिता शुरू हो जाने के बाद, सब कुछ चुनाव आयोग के नियंत्रण में है, वे कैसे कह सकते हैं कि वे इसे नियंत्रित नहीं कर सकते? चीफ जस्टिस ने कहा कि मुफ्त की परिभाषा पानी की तंगी नहीं हो सकती।
कौन-कौन पार्टी कर रही है याचिका का विरोध
आम आदमी पार्टी (आप), डीएमके और वाईएसआर कांग्रेस मुफ्त की रेवड़ियों पर रोक की मांग वाली याचिका का विरोध कर रहे हैं। ये दल शीर्ष अदालत में इस योजना के विरोध में दाखिल याचिका के खिलाफ तर्क रख रहे हैं। अदलात वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में सुविधाएं प्रदान करने के वादों का विरोध किया गया है।
डीएमके को चीफ जस्टिस ने खूब सुना दिया
सुप्रीम कोर्ट ने डीएमके के कुछ बयानों को लेकर मंगलवार को उसे आड़े हाथ लिया और कहा कि ‘बुद्धिमत्ता केवल किसी खास व्यक्ति या पार्टी विशेष के पास ही नहीं होती।’ चीफ जस्टिस रमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने ‘तर्कहीन’ मुफ्त योजनाओं के खिलाफ दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान डीएमके के वकील पी. विल्सन के दलीलें शुरू करते ही पार्टी को फटकार लगाई। विल्सन डीएमके के सांसद भी हैं। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘विल्सन (डीएमके की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी. विल्सन), मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है। मैं बहुत सी बातें कहना चाहता था। लेकिन मैं भारत का प्रधान न्यायाधीश होने के नाते ऐसा नहीं कह रहा हूं। जिस पार्टी और मंत्री के बारे में वह (वकील) बात कर रहे हैं… मुझे नहीं लगता कि बुद्धिमत्ता केवल किसी खास व्यक्ति या पार्टी विशेष से ही जुड़ी होती है। हम भी जिम्मेदार हैं…।’
किसकी तरफ से कौन वकील
डीएमके की तरफ से पी. विल्सन, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और सरकार की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता सर्वोच्च अदालत में अपने मुवक्किलों का पक्ष रख रहे हैं। शुरुआत में सिब्बल ने वैधानिक वित्त आयोग की समिति गठित करने का विचार रखा। पीठ ने सिब्बल की मदद मांगी है। उन्होंने कहा कि वित्तीय प्रबंधन जिम्मेदारी कानून के तहत अगर कुछ मुफ्त चीजें वितरित की जाती हैं तो लाभ 3 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। पीठ ने सुझावों पर गौर किया और कहा कि बहस जरूरी है और पूछा कि क्या इस पर केंद्रीय कानून होने पर न्यायिक जांच की अनुमति है। याचिकाकर्ता उपाध्याय की तरफ से वरिष्ठ वकील विकास सिंह जिरह कर रहे हैं।
सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट याद दिलाई शक्ति
सिब्बल ने कहा कि न्यायपालिका के पास किसी भी कानून की वैधता की जांच करने की शक्ति है। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, कुछ राज्य गरीबों और महिलाओं को साइकिल देते हैं। यह बताया गया है कि साइकल से जीवन शैली में सुधार हुआ है। समस्या यह है कि कौन सी मुफ्त सौगात है और कौन सी चीज किसी व्यक्ति के उत्थान के लिए लाभदायक है। ग्रामीण गरीबी से पीड़ित एक व्यक्ति के लिए उसकी आजीविका उस छोटी नाव या साइकिल पर निर्भर हो सकती है। हम यहां बैठकर इस पर बहस नहीं कर सकते।’
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी को समाज कल्याण योजनाओं से आपत्ति नहीं है लेकिन कठिनाई तब सामने आई जब एक पार्टी ने टेलीविजन जैसी गैर-आवश्यक चीजें बांटीं। उन्होंने कुछ राजनीतिक दलों के मुफ्त बिजली के दावों का भी जिक्र किया और कहा कि पीएसयू वित्तीय रूप से भारी नुकसान उठा रहे हैं। कानून अधिकारी ने कहा, ‘मतदाता को सोच समझकर चुनाव करने का अधिकार है। यदि आप उसे झूठे वादे दे रहे हैं, जिसकी आपकी वित्तीय स्थिति अनुमति नहीं देती है या आप अर्थव्यवस्था को नष्ट कर रहे हैं …. तो यह एक गंभीर मुद्दा है जिसके विनाशकारी आर्थिक परिणाम हो सकते हैं।’