नई दिल्ली
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को लेकर चेतावनी जारी की है। ICMR ने दिशा-निर्देश जारी कर लोगों को हल्के बुखार या वायरल ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं करने को कहा है। साथ ही डॉक्टर्स को इन दवाओं का परामर्श देते समय समयसीमा का ध्यान रखने की सलाह दी है। कई हेल्थ एक्पपर्ट्स ने दावा किया है कि कुछ अन्य एंटीबायोटिक दवाओं का कई जगह दुरुपयोग किया जा रहा है। इनका ज्यादा इस्तेमाल से रोगियों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है।
आसानी से मेडिकल पर मिल जाती हैं एंटीबायोटिक दवाएं
मेदांता इंस्टीट्यूट ऑफ डाइजेस्टिव एंड हेपेटोबिलरी साइंसेज के सीनियर सलाहकार डॉ अश्विनी कुमार सेत्या ने कहा कि हर एंटीबायोटिक बिना प्रिस्क्रिप्शन के मेडिकल पर आसानी से मिल जाती है। हालांकि नियम के मुताबिक ये गलत है। लेकिन केमिस्ट इन नियमों का पालन नहीं करते हैं। उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर अस्पतालों में फॉर्थ जेनरेशन की एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि डॉक्टर जल्द से जल्द मरीज को ठीक करने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, डायरिया के 70% मामलों में एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन फिर भी डॉक्टरों द्वारा मरीजों को ये दवा दी जाती हैं।
कई दवाओं का हो रहा है गलत इस्तेमाल
उन्होंने आगे कहा कि सबसे अधिक दुरुपयोग एंटीबायोटिक्स नॉरफ्लोक्सासिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन, ओफ्लॉक्सासिन और लेवोफ्लॉक्सासिन का होता है। उन्होंने कहा, “इनका इस्तेमाल दस्त और महिलाओं में यूटीआई के लिए किया जा रहा है,” उन्होंने कहा कि एमोक्सिसिलिन का भी व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि एंटीबायोटिक्स देने से पहले यह पता लगाना जरूरी है कि संक्रमण जीवाणु है या नहीं। एंटीबायोटिक्स का व्यापक रूप से वायरल रोगों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
स्किन रोगों के लिए भी दी जा रहीं एंटीबायोटिक
आरएमएल हॉस्पिटल में स्किन साइंस विभाग के प्रोफेसर कबीर सरदाना ने कहा कि चूंकि मुंहासे एक संक्रमण नहीं है, इसलिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करने का वैज्ञानिक तर्क गलत है, जो केवल सूजन पर काम करते हैं। एजिथ्रोमाइसिन, जो कई मेडिकल विकारों के लिए उपयोगी है उसे मुंहासे के लिए दिया जा रहा है। वहीं मैक्रोलाइड्स जो कई वायरल संक्रमणों के लिए दी जाने वाली दवा है इसका इस्तेमाल भी बड़े स्तर पर किया जा रहा है, जोकि अफसोस की बात है। यह तब है मुंहासों के लिए डॉक्सी या माइनोसाइक्लिन जैसे बेहतर दवाएं हैं।
अपोलो अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन में सीनियर सलाहकार डॉ. तरुण साहनी ने कहा, ‘कोविड के दौरान एजिथ्रोमाइसिन और आइवरमेक्टिन का व्यापक इस्तेमाल हुआ था और इससे भी प्रतिरोध हुआ है।’ कभी-कभी एंटीबायोटिक दवाओं को उन जगहों पर इस्तेमाल किया जाता है, जहां या तो डॉक्टर्स के पार अनुभव की कमी है या फिर मेडिकस चेकअप के लिए बुनियादी ढांचा नहीं है। उन्हें नहीं पता है कि किस केस में कौन सी एंटीबायोटिक देना ठीक है। फार्मा कंपनियों द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं के प्रचार पर गौर किया जाना चाहिए।