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फर्जी है लॉरेंस! मिलिए अनिल बिश्नोई से, जो है 10000 काले हिरणों का सच्चा रखवाला, 300 शिकारियों के लिए बने काल

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नई दिल्ली

बात साल 1990 की है। राजस्थान के हनुमानगढ़ में जंगलों की कटाई और जंगली जानवरों की हत्या रोकने के लिए एक सम्मेलन बुलाया गया था। कॉलेज में पढ़ने वाला महज 17-18 साल का एक नौजवान भी यहां मौजूद था। सम्मेलन में जानवरों के शिकार पर चिंता जताई गई और उन लोगों को याद किया गया, जिन्होंने अपनी जिंदगी काले हिरणों की रक्षा में लगा दी। नौजवान के दिल पर इस सम्मेलन में कही गई बातों का गहरा असर पड़ा और उसने काले हिरणों के शिकारियों के खिलाफ मुहिम छेड़ने का फैसला कर लिया।

इस नौजवान का नाम था अनिल बिश्नोई, जो आज राजस्थान में काले हिरणों के रक्षक के तौर पर जाने जाते हैं। अनिल पिछले करीब 32-33 वर्षों से ना केवल काले हिरणों और चिंकारा के शिकारियों से लड़ रहे हैं, बल्कि इन जीवों की प्यास बुझाने के लिए निजी कोष से उन्होंने 60 से ज्यादा तालाब भी खुदवाए हैं। राजस्थान में बिश्नोई समाज काले हिरण को बहुत पवित्र मानते हैं और अनिल ने इस भाव को साबित करके दिखाया है।

शिकारी ने सिर पर तान दी थी बंदूक
अनिल बिश्नोई ने सम्मेलन से लौटने के बाद काले हिरणों को बचाने का संकल्प तो ले लिया, लेकिन ये लड़ाई आसान नहीं थी। द बेटर इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने मिशन को पूरा करने के लिए उन्होंने गांव के लोगों के साथ मिलकर एक बैठक की। अनिल ने गांव वालों से कहा कि अगर किसी को भी पता चले कि जंगल में कहीं पर काले हिरण का शिकार हो रहा है, तो तुरंत उन्हें बताएं।

इस तरह काले हिरणों को बचाने की मुहिम शुरू हो गई। एक दिन उन्हें खबर मिली कि जंगल में कुछ शिकारी घात लगाकर बैठे हैं। अनिल ने अपनी मोटर साइकिल उठाई और तुरंत जंगलों की तरफ रवाना हो गए। हालांकि, जब तक अनिल पहुंचते, एक शिकारी ने पांच काले हिरणों का शिकार कर लिया था। वहां पहुंचते ही अनिल ने शिकारी को रोकने की कोशिश की, जिसपर उसने उनके सिर पर बंदूक तान दी।

पकड़े 300 शिकारी, बचाए 10 हजार हिरण
लेकिन, बंदूक देखकर भी अनिल नहीं डरे और जब तक पुलिस मौके पर नहीं पहुंच गई, उन्होंने उस शिकारी को रोके रखा। शिकारी को गिरफ्तार कर लिया गया। अपने मिशन में अनिल बिश्नोई अभी तक, खुद की जान हथेली पर रखकर 300 से ज्यादा शिकारियों को पकड़ चुके हैं, जिनमें से कई जेल की सलाखों के पीछे भी पहुंचे। शिकारियों के मामले में वे खुद गवाह के तौर पर कोर्ट जाते हैं और उन्हें उनके किए की सजा दिलाते हैं।

काले हिरणों को बचाने के लिए अनिल की लड़ाई केवल शिकारियों से ही नहीं है, बल्कि दूसरे तरीकों से भी वो धरती के इस सुंदर जीव की रक्षा करने में जुटे हैं। इनमें कुत्तों के हमलों और सड़क दुर्घटनाओं से इन्हें बचाना भी शामिल है। वह अब तक, 60 ग्राम पंचायतों में 10 हजार से ज्यादा चिंकारा और काले हिरणों की सुरक्षा सुनिश्चित कर चुके हैं। इन जीवों के लिए पानी की कमी को देखते हुए अनिल ने ग्रामीणों के साथ मिलकर 66 तालाब बनवाए हैं।

2 लाख रुपये से खुदवाए हिरणों के लिए तालाब
अनिल का मानना है कि धरती पर मौजूद हर जीवित प्राणी को शांतिपूर्वक अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है। लोगों को इस मुद्दे पर गंभीर बनाने के लिए समय-समय पर वह रैलियों का भी आयोजन करते हैं। उनकी टीम में 12 जिलों के 3 हजार से ज्यादा लोग शामिल हैं, जो इस नेक काम में उनका साथ देने को हर वक्त तैयार रहते हैं।

शिकारियों और दूसरे खतरों से लड़ने के अलावा, अनिल घायल काले हिरणों और चिंकारा की देखभाल भी करते हैं। उन्हें समय पर प्राथमिक उपचार दिया जाता है और जरूरत पड़ने पर उन्हें अपने घर या वन विभाग के मेडिकल सेंटर लेकर जाते हैं। गर्मियों के दौरान पानी की कमी से इन जीवों को भी जूझना पड़ता है। इस खतरे को दूर करने के लिए अनिल ने 2017 में ग्रामीणों की मदद से दो लाख रुपये जुटाए और 66 तालाबों का निर्माण कराया।

पत्नी, बच्चे, भाई, भाभी… सब अनिल के साथ
अनिल बताते हैं कि शिकारी अक्सर हिरण की मां को मार देते हैं और फिर उनके बच्चे जंगल में अकेले रह जाते हैं। ऐसे में बच्चों के सामने जंगली कुत्तों के हमले का खतरा खड़ा हो जाता है। अनिल और उनकी टीम इस स्थिति में बच्चों को तब तक बचाते हैं और उनकी देखभाल करते हैं, जब तक कि वे जंगल में वापस जाने के लिए तैयार नहीं हो जाते।

उन्होंने जब अपने इस मिशन की शुरुआत की, तो परिवार को डर था कि कहीं शिकारी अनिल को नुकसान न पहुंचा दें। हालांकि, धीरे-धीरे ये डर खत्म हुआ और परिवार भी उनके साथ जुड़ गया। अब उनके बच्चे, पत्नी, भाई और भाभी घायल काले हिरणों और चिंकारा के इलाज में सबसे आगे रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान भी उनके परिवार ने हिरणों की देखभाल की।

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