नई दिल्ली:
आम आदमी की जेब पर सरकारी योजनाओं और मुफ्त की चीजों का सबसे ज्यादा बोझ पड़ रहा है। मुंबई के लेखक और रणनीतिकार दीपक घाडगे ने इसे बड़ी खूबसूरती के साथ समझाया है। हाल ही में शिवनेरी बस के किराए में हुई 100 रुपये की बढ़ोतरी का उदाहरण देकर उन्होंने अपनी बात कही है। यह बढ़ोतरी मुंबई और पुणे के बीच चलने वाली बसों में हुई है। घाडगे के मुताबिक, भले ही कल्याणकारी योजनाओं का मकसद कुछ लोगों की मदद करना हो। लेकिन, इन योजनाओं का खर्च आम आदमी से ही वसूला जाता है। यह छोटी-छोटी लेकिन लगातार बढ़ती कीमतों के जरिए होता है। इसका असर लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है। यह सब बजट में मिडिल क्लास को टैक्स में एक लाख रुपये से ज्यादा की छूट देने के ऐलान के बाद हो रहा है।
घाडगे अक्सर मुंबई से पुणे का सफर करते हैं। शिवनेरी बस से हर हफ्ते यात्रा करना उनके काम का हिस्सा है। उनके अनुसार, यह बस तेज, अच्छी और ज्यादातर समय पर चलती है। लेकिन, हाल ही में उन्हें इस सफर के लिए ज्यादा पैसे देने पड़े। पहले जहां एक तरफ का किराया 610 रुपये था, वहीं प्राइवेट बस का किराया 400 रुपये था। यानी पहले से ही 50% का अंतर था। लेकिन, अब शिवनेरी बस का किराया बढ़कर 700 रुपये हो गया है। कंडक्टर ने बताया कि किराया 15% बढ़ाया गया है। घाडगे ने इस बात पर हैरानी जताई कि जब पहले से ही प्राइवेट बसों के मुकाबले 50% ज्यादा किराया लिया जा रहा था तो 15% की बढ़ोतरी क्यों की गई? यह बढ़ोतरी महंगाई दर से दोगुनी है। कंडक्टर का जवाब था, ‘हम कुछ नहीं कर सकते, यह सरकार का फैसला है।’
पूरा गणित समझिए
घाडगे ने इस बढ़ोतरी का गणित समझाते हुए बताया कि एक बस में 40 सीटें होती हैं। हर टिकट पर 100 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। इसका मतलब है कि एक बस प्रतिदिन 16,000 रुपये अतिरिक्त कमाई करती है (4 ट्रिप x 40 सीटें x ₹100)। अगर 3,500 बसें चलती हैं तो रोजाना 5.6 करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई होती है। साल के 300 दिनों में यह 1,680 करोड़ रुपये बनता है। लेकिन, यात्रियों को इसके बदले कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं मिलती। घाडगे ने लिखा, ‘100 रुपये अधिक देने पर भी मैं 45 मिनट पहले नहीं पहुंच रहा हूं। मुझे अब भी उतना ही समय लगता है। मुझे कोई शीतल पेय, चाय या कॉफी नहीं दी जाती है।’
घाडगे का मानना है कि ये छोटी-छोटी बढ़ोतरी मिडिल क्लास पर एक अदृश्य टैक्स की तरह है। इससे मुफ्त की योजनाओं का खर्च निकाला जाता है। वह लोगों से अपील करते हैं कि मुफ्त की चीजों के लालच में न आएं और न ही ऐसे वादे करने वालों को वोट दें क्योंकि इसकी कीमत हमें ही चुकानी पड़ती है। वह सरकार से भी कहते हैं कि मुफ्त की चीजों का वादा करने के बजाय बुनियादी ढांचे, कौशल, उद्यमिता को बढ़ावा दें, रोजगार और बाजार पैदा करें।
कैसे सरकार कर लेती है वसूली?
घाडगे ने टैक्स के बोझ पर भी रोशनी डाली। उन्होंने कहा, ‘आज हम सभी वस्तुओं और सेवाओं पर औसतन 12 से 18% GST चुका रहे हैं, ऊपर से इनकम टैक्स भी देना पड़ता है। या तो टैक्स की दरें कम की जानी चाहिए या फिर इनकम टैक्स ही खत्म कर देना चाहिए। ज्यादा करदाता होने का मतलब विकास के लिए ज्यादा पैसा होगा।’
घाडगे ने अपने LinkedIn पोस्ट में लिखा, ‘बजट में मिडिल क्लास को टैक्स में लगभग 1 लाख रुपये से ज्यादा की बचत का बड़ा ऐलान किया गया था। लेकिन, सरकार ने केवल किराया 100 रुपये बढ़ाकर मुझसे 12,000 रुपये ले लिए हैं।’ इस तरह घाडगे ने आम आदमी पर पड़ रहे बोझ की ओर ध्यान दिलाया है और सरकार से रचनात्मक समाधान खोजने का आग्रह किया है।