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Wednesday, July 2, 2025
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शशि थरूर मोदी सरकार में विदेश मंत्री बनेंगे?ओबामा ने हिलेरी को दिया था यह पद, नेहरू ने वाजपेयी को भेजा था यूएन

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नई दिल्ली:

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री बनेंगे! क्या एस जयशंकर को मोदी कैबिनेट से बाहर किया जाएगा। ऐसे ही कुछ सवाल इन दिनों सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं। यहां तक कि खुद कांग्रेस नेता उदित राज ने भी तंज कसते हुए थरूर को कह डाला कि काश आपको पीएम मोदी विदेश मंत्री बना देते। दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत का पक्ष रखने के लिए शशि थरूर की अगुवाई में 7 सांसदों का ऑल पार्टी डेलिगेशन 5 देशों का दौरा कर रहा है। वे अमेरिका में अपना दौरा पूरा कर चुके हैं। इस समय पनामा का दौरा चल रहा है। इसके बाद डेलिगेशन गुयाना, ब्राजील और कोलंबिया जाएगा। हालांकि, इस दौरे को लेकर भारत में थरूर के खिलाफ उनकी ही पार्टी के भीतर से हमले किए जा रहे हैं। जानते हैं पूरी कहानी।

जब नेहरू ने यूएन महासभा में वाजपेयी को भेजा
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में भारत का प्रतिनिधि बनाकर भेजा था। वाजपेयी सितंबर, 1960 में जॉन एफ कैनेडी और रिचर्ड निक्सन के बीच राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान पर्यवेक्षक के रूप में अमेरिकी सरकार के निमंत्रण पर अमेरिका गए थे। वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा चुने गए प्रतिनिधिमंडल का भी हिस्सा थे। अभिषेक चौधरी ने अपने दो खंडों वाले संस्मरण वाजपेयी: द एसेंट ऑफ द हिंदू राइट के पहले भाग में लिखा है कि 25 सितंबर, 1960 की सुबह वाजपेयी अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए वाशिंगटन डीसी के लिए विमान में सवार हुए।

नरसिम्हा राव ने स्वामी को दिया था कैबिनेट रैंक का दर्जा
वहीं, पीएम नरसिम्हा राव ने अर्थशास्त्री डा. सुब्रमण्यम स्वामी को अपना आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया, जिन्होंने 1991 में अपने मित्र और तत्कालीन वित्तमंत्री डा. मनमोहन सिंह के साथ देश में उदारीकरण की शुरुआत कर दी थी। सुब्रमण्यम स्वामी को विपक्ष में होते हुए भी कांग्रेस की सरकार में प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव जी ने कैबिनेट रैंक का दर्जा दिया था। उन्हें बस कैबिनेट रैंक का दर्जा प्राप्त था वो मंत्री नहीं बनाया गया था। उन्हें श्रम मानक तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। वर्ष 1994 से 1996 के मध्य में उन्होंने यह जिम्मेदारी निभाई थी।

ओबामा ने अपनी ही प्रतिद्वंद्वी को बनाया विदेश मंत्री
विदेशों में यह आम है जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा ने राष्ट्रपति चुनाव में अपनी प्रतिद्वंदी रही हेलरी क्लिंटन को अपना विदेश मंत्री बनाया था। हिलेरी क्लिंटन ने 2009 से 2013 तक राष्ट्रपति बराक ओबामा के अधीन अमेरिका की विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। भारतीय लोकतंत्र में ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि इसे फिर पार्टी लाइन से अलग मान लिया जाता है। उसे अपनी ही पार्टी की कार्रवाइयों का सामना करना पड़ सकता है। सदन में नेता प्रतिपक्ष यानी संवैधानिक रूप से सदन के मुख्य विपक्षी दल जिसे सदन की निर्धारित सीटों की न्यूनतम दस प्रतिशत सीटें प्राप्त होती है। उसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा और सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।

थरूर क्यों अपनी ही पार्टी नेताओं के निशाने पर हैं
थरूर ने जिस तरह से मोदी सरकार का बचाव किया है और उसके बाद से ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सैन्य कार्रवाई से लेकर कूटनीतिक स्तर पर भारत सरकार की पहल की तारीफ की है। उससे कांग्रेस पार्टी बहुत ही असहज है। सरकार की ओर से उन्हें सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का अगुवा बनाकर अमेरिका भेजने का सरकारी फैसला कांग्रेस को खटक रहा है। कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि ‘कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना’ में अंतर है।

क्या थरूर को बाहर का रास्ता दिखा सकती है पार्टी
हर राजनीतिक दलों का सदस्यों को लेकर अपना संविधान होता है, जिसमें सदस्यता समाप्त करने के नियम निर्धारित होते हैं। इसके अलावा राजनीतिक दल अनुशासनहीनता, पार्टी विरोधी गतिविधियां, भ्रष्टाचार या अन्य कारणों से भी अपने सदस्यों को पार्टी से निकाल सकती है। ऐसे में थरूर को भी अनुशासनहीनता के आरोप में कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में क्या प्रावधान हैं?
राजनीतिक पार्टियों में लगाम कसने के लिए देश में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 है। जानकारी के अनुसार यह अधिनियम चुनावी प्रक्रिया और राजनीतिक दलों के पंजीकरण को नियंत्रित करता है। इसके अलावा यदि कोई सदस्य पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उसे निष्कासित किया जा सकता है।

क्या कहता है दल-बदल विरोधी कानून
दल-बदल विरोधी कानून अनुसार यदि कोई निर्वाचित प्रतिनिधि अपनी पार्टी के खिलाफ जाकर वोट करता है या दूसरी पार्टी में शामिल होता है, तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया को स्पीकर या राज्यसभा के सभापति द्वारा संचालित किया जाता है। वहीं, चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के पंजीकरण और मान्यता को नियंत्रित करता है। यदि कोई दल अपने नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसकी मान्यता रद्द की जा सकती है।

पार्टी सदस्य के खिलाफ क्या ले सकती है एक्शन
देश की किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़कर किसी अन्य पार्टी में शामिल होता है तो उस पर दल-बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है। इसके अलावा यदि कोई चुना हुआ प्रतिनिधि बिना पार्टी के निर्देश के मतदान करता है या पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होता है तो उस पर दल-बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा यदि कोई निर्दलीय उम्मीदवार जीतने के बाद किसी पार्टी में शामिल होता है, यदि किसी दल का 2/3 से कम सदस्य एक साथ किसी अन्य पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो वह दल-बदल विरोधी कानून के तहत दोषी मानें जाएंगे।

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