भेल भोपाल।
— अविश्वास प्रस्ताव भेजा दिल्ली
— अध्यक्ष अपनी कुर्सी पर उपाध्यक्ष को बैठा देख वापस लौटे
— पुलिस भी पहुंची संस्था परिसर में
— अब उपाध्यक्ष के पास रहेंगे सारे पावर
बीएचईएल के कर्मचारी—अधिकारी हर बार थ्रिफ्ट सोसायटी में अपने मनपंसद के संचालकों का चुनाव कर पहुंचाते रहे हैं। यहां तक कि संस्था को सुचारू संचालन के लिए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव का चयन भी किया जाता रहा है, लेकिन कुछ वर्षों में ही आपसी लड़ाई का तांडव 5 हजार से ज्यादा संस्था सदस्यों को देखने को मिलता रहा है। 100 करोड़ से ज्यादा का टर्न ओवर वाली इस संस्था में हर बार विवाद किसी के गले नहीं उतर रहा है। किसका क्या लाभ—शुभ है यह अलग बात है, लेकिन संस्था की साख अलग बात है।
इस बार भी इस माह संस्था पर ऐसा ग्रहण लगा कि सत्ताधारी पक्ष आपस में लड़ने लगा। संस्था के अध्यक्ष द्वारा जिन डायरेक्टरों को पौने तीन साल तक अपने ऑफिस में बैठाए रखा तो फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि उन्हें ऑफिस में ताला लगाना पड़ा। फिर दो डायरेक्टरों द्वारा पहले ताला खुलवाना फिर डबल ताला डालना फिर संस्था अध्यक्ष द्वारा एक ताला तुड़वाना आम सदस्यों की समझ से बाहर है। ऐसा ही नहीं अचानक संस्था अध्यक्ष द्वारा सत्ताधारी डायरेक्टरों को अपने पक्ष से अलग करना नए डायरेक्टरों का समर्थन लेकर नए पदाधिकारियों के नामों की घोषणा करना व अपना समर्थन वाले डायरेक्टर का नाम उजागर करना यह सब बातें देखने को मिलीं।
उसके बाद सोमवार को सत्ताधारी पांच डायरेक्टरों ने संस्था कार्यालय में पहुंचकर अध्यक्ष की कुर्सी पर उपाध्यक्ष को बैठा दिया। यही नहीं इसका अविश्वास प्रस्ताव भी तैयार कर सेंट्रल रजिस्ट्रार को—आपरेटिव सोसायटी नई दिल्ली (मल्टी स्टेट को—आपरेटिव सोसायटी) में भेज दिया। उपाध्यक्ष ने सारे वित्तीय अधिकार अपने पक्ष में ले लिए। इसकी खबर लगते ही दूसरे पक्ष ने भी अपनी कानूनी लड़ाई शुरू कर दी।
सूत्रों के मुताबिक सोमवार से उपाध्यक्ष राजेश शुक्ला अध्यक्ष बसंत कुमार की कुर्सी पर बैठ गए हैं। संभवत वे अब अपने पावर का उपयोग करेंगे। इनके साथ संचालक मंडल के सदस्य आशीष सोनी, राजमल बैरागी, निशा वर्मा, रजनीकांत चौबे भी शामिल थे। अब अविश्वास प्रस्ताव कब आएगा या संस्था से अध्यक्ष खुद दूर हो जाएंगे इसको लेकर कानूनी प्रक्रिया जारी है।
— बसंत कुमार का कहना है कि उपाध्यक्ष को संस्था अध्यक्ष के ऑफिस में अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है और न ही सहकारिता में ऐसी को संवैधानिक व्यवस्था है। इसके लिए हम आगे कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।
— राजेश शुक्ला का कहना है कि संस्था का उपाध्यक्ष पद संवैधानिक है। अध्यक्ष के चैंबर में बैठने का सबको अधिकार है। इस विवाद को जल्द सुलझा लिया जाएगा।