जबलपुर:
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक सिविल जज को बर्खास्त करने के फैसले को सही ठहराया है। जज को लेकर कहा गया था कि उन्होंने वकीलों और पुलिसकर्मियों से माफी मांगने के लिए उठक-बैठक करवाई व कान पकड़वाए। यह मामला अदालत की अवमानना की कार्रवाई से जुड़ा था।
7 मई के फैसले में चीफ जस्टिस एस के कैत और जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने कहा कि जज कौस्तुभ खेरा को असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण हटाया गया था। फुल कोर्ट ने इसके लिए प्रस्ताव दायर किया था। बेंच ने कहा कि जब कदाचार का कोई आरोप नहीं है, तो यह साधारण बर्खास्तगी है। इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। विभाग के उच्च अधिकारी ही यह तय कर सकते हैं कि किसी अधिकारी को सेवा में रखना है या नहीं। वे अधिकारी के प्रदर्शन, आचरण और नौकरी के लिए उपयुक्तता के आधार पर यह फैसला करते हैं।
बर्खास्तगी पर सिविल जज की आरटीआई
खेरा ने हाई कोर्ट में कहा कि उन्होंने अपनी बर्खास्तगी के कारणों को जानने के लिए RTI आवेदन दायर किया था। उन्हें पता चला कि उन्हें अनुशासनात्मक आधार पर दंडित किया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि अगर ऐसा था, तो उन्हें नोटिस जारी किया जाना चाहिए था और अपना स्पष्टीकरण देने का मौका दिया जाना चाहिए था।
हाई कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी को गलत काम के लिए सजा देना और किसी के काम को देखकर यह तय करना कि वह नौकरी के लायक है या नहीं, दोनों अलग-अलग चीजें हैं। इस मामले में हाई कोर्ट ने माना कि खेरा को हटाने का फैसला सही था। उन्हें उनके काम के तरीके के कारण हटाया गया था, न कि किसी गलत काम के लिए सजा के तौर पर।