पटना
आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का इस्तीफा प्रकरण अब एक नए रंग में नए तेवर के साथ राजनीतिक जगत में हिलोरे मार रहा है। दिलचस्प तो यह है कि इस प्रकरण को हवा उनके बेटे और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह स्वयं दे रहे हैं। हालांकि जगदानंद सिंह के इस्तीफा प्रकरण पर पार्टी के लिए ठीक नहीं माना गया। जगदानंद सिंह के इस्तीफे का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि न तो आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद ने खुलकर कहा और न ही उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने। हां, इतना जरूर हुआ कि मीडिया में सूत्रों के हवाले से नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अब्दुलबारी सिद्दकी, उदयनारायण चौधरी, शिवचंद्र राम जैसे नाम भी उछाले गए। पर पार्टी के भीतर ये सूचना महज सूचना ही रह गई। कभी गंभीरता से इस मुद्दे पर पहल होते नहीं दिखा।
आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद इलाज के लिए सिंगापुर चले गए। हालांकि स्वयं लालू प्रसाद जगदानंद सिंह की इस हरकत को बहुत हेल्दी नहीं लिया। सूत्र बताते हैं कि लालू प्रसाद ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। मगर यह संदेश दिया कि समय के साथ सब ठीक हो जायेगा। राजनीतिक जगत में भी यह चर्चा चली कि जगदा बाबू और लालू प्रसाद के बीच रूठने मनाने का खेल चलता है। कभी कुछ दिनों तक और कभी महीना भर।आखिर सच क्या है?
आरजेडी के अंदुरूनी सूत्रों का यह मानना है कि जगदा बाबू ने इस्तीफा तो सच में नहीं दिया है। हां, एक पत्र जरूर आया था जो अपनी व्यथा और पीड़ा से भरा था। इस पत्र में अपमानित होने जैसे प्रकरण का भी जिक्र तो था ही साथ ही नीतीश कुमार से जुड़ाव का प्रतिकार भी था। अपनी उम्र का अपनी बीमारी का भी जिक्र इस पत्र में था। सूत्र बताते हैं कि आरजेडी सुप्रीमो ने भी इसे पुराने संबंधों के आधार पर ही लिया। लेकिन कुछ फैसला नहीं किया और सब कुछ जगदा बाबू के ऊपर ही छोड़ दिया। लेकिन यह इस्तीफा नहीं तो क्या?
आरजेडी का जो संविधान है उसके अनुकूल जगदानंद सिंह का आचरण तो नहीं हुआ था। अब अगर पार्टी का अध्यक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव प्रकरण से खुद को अलग कर रखा हो तो उसे क्या कहेंगे? राष्ट्रीय कार्यकारिणी, राष्ट्रीय परिषद और राष्ट्रीय अधिवेशन से जो प्रदेश अध्यक्ष गायब हो उसका क्या अर्थ निकाला जाना चाहिए। क्या यह पार्टी के संविधान व अनुशासन के उल्लंघन का मामला नहीं बनता है। खास कर उस नजरिए से देखें कि बिहार का प्रदेश अध्यक्ष राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को होस्ट होता है और सारे प्रबंधन उनके हाथों में होता है, ऐसे में जगदा बाबू की अनुपस्थिति क्या इस्तीफे से कम है।
पार्टी के संविधान में प्रदेश अध्यक्ष का राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उपस्थित अनिवार्य होता है। अनुपस्थिति तभी कोई हो सकता है जब इस कदर बीमार हों की चलने फिरने में असमर्थ हों। और इसकी सूचना पहले से पार्टी प्रमुख को पता हो ताकि कोई वैकल्पिक व्यवस्था हो सके। तो जाहिर है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पूरी तरह अनुपस्थित रहना इस्तीफा देने जैसा ही है। लेकिन इस स्थिति में मान मनोवल का एक स्पेस रह जाता है। आज अगर आरजेडी के विधायक सुधाकर सिंह का बयान ऐसा आ रहा है तो कही न कही जगदानंद सिंह के मान जाने का संकेत मिलता है।

