भोपाल
मार्च के महीने की गुलाबी ठंड, सर्द रात का आलम, एक ओर बड़ा तालाब, दूसरी तरफ उस्ताद… जैसे ही तबले पर उस्ताद की पहली उंगली टकराई, बड़े तालाब में ‘लहर’ उठी और वहां मौजूद श्रोताओं के पेट में ‘हिलोर’। आलम ये था कि शाम से कब रात हुई किसी को अंदाजा नहीं हुआ। श्रोता एकटक ‘उन्हें’ देखते रहे, बड़े तालाब की लहरें ऊपर उठ-उठ आती रहीं और उस्ताद ने प्रकृति और मनुष्य को तबले की ‘तिरकिट’ से ऐसा बांधा कि लोग भोपाल में बैठे-बैठे कैलाश पर्वत के दर्शन करने लगे।
उस्ताद जाकिर हुसैन नहीं रहे, इस बात पर यकीन करना मुश्किल है। अपनी जिंदादिली के लिए मशहूर उस्ताद जाकिर हुसैन का सेंस ऑफ ह्यूमर शानदार था। अक्सर चुप ही रहते थे लेकिन जब बोलते थे तब सौ सुनार की और एक लोहार वाली कहावत चरितार्थ करते थे। 2019 में मार्च का महीना था, जब वह भोपाल आए थे। तबियत नासाज थी, बावजूद इसके तय समय पर न सही, देरी से आए। उन्होंने भोपालियों को निराश नहीं किया। उन्होंने भोपाल के भारत भवन में एक यादगार तबला वादन प्रस्तुत किया।
गजब का बांधा था समां
भारत भवन में बैठे लोगों ने उस दिन तबले पर शिवधाम की दिव्य ध्वनि सुनीं। एक बार जो उनकी उंगलियां तबले से टकराईं, तो उन्होंने तांडव और लास्य से लेकर, डमरू और शंख की ध्वनि, गणेश और गौरी की उपस्थिति और बारिश की रिमझिम तक, सब कुछ अपने तबले पर उकेर दिया। उस दिन भारत भवन में उस्ताद जाकिर हुसैन के तबले की गूंज से मानो कैलाश ही उतर आया। भगवान शिव के तांडव नृत्य की थाप से लोगों के रोंगटे खड़े हो गए थे। फिर तांडव को शांत करने वाली गौरी के लास्य नृत्य की कोमलता भी प्रस्तुत की।
तबले से फूट रहे थे स्वर
तबला कहने को निर्जीव है, लेकिन उस्ताद जाकिर हुसैन जब उसे बजाते थे तो उसमें प्राण फूंक देते थे। उनकी उंगलियों पर तबला नाचता था। पहले तांडव का ‘त’, फिर लास्य के ‘ल’ से उन्होंने लोगों को बताया ‘ताल’ का जन्म कैसे हुआ। इसके बाद तबले पर डमरू बजाया, फिर शंख और फिर बारिश की रिमझिम… मुक्ताकाशीय मंच पर बैठे उस्ताद और श्रोताओं के लिए उस दिन बड़ा तालाब ‘सिंधु’ और ‘सतलज’ बन गया था और वीआईपी रोड की इमारतें कैलाश पर्वत।
बारिश थमी तो जंगल में निकला हिरण
उस्ताद ने तबले पर बारिश की रिमझिम बजाई। बारिश जब थमी तब हिरण परन बजाई। तबले की थाप पर हिरण सहमा, तरन्न की आवाज के साथ उछला और शिकारी को देखकर गायब हो गया। इसके बाद उस्ताद ने रेला शुरू किया और फिर उसे लगातार बजाते रहे। पहले हल्की फुहार फिर तेज़ बारिश, इसके बाद बादलों की गड़गड़ाहट फिर अचानक बिजली कड़की और सब शांत… हमेशा के लिए।
73 की उम्र में छोड़ गए साथ
जाकिर हुसैन अब हमारे बीच नहीं हैं। हालांकि उनकी यादें आजीवन हमारे साथ हैं। 16 दिसंबर को सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 73 वर्ष के थे। वह फेफड़ों की एक गंभीर बीमारी, इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से जूझ रहे थे। जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता, उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी, भी एक प्रसिद्ध तबला वादक थे। मां का नाम बावी बेगम था।
लंबी है अवॉर्ड की कतार
भारत सरकार ने उन्हें 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। इस साल फरवरी में उन्होंने तीन ग्रैमी अवॉर्ड भी जीते थे।
मैनेजर से की थी शादी
हुसैन ने अपनी मैनेजर और कथक डांसर Antonia Minnecola से शादी की थी। उनकी दो बेटियां हैं, अनीसा कुरैशी और इसाबेला। अनीसा ने फिल्म मेकिंग की पढ़ाई की है जबकि इसाबेला विदेश में डांस की पढ़ाई कर रही है।