नई दिल्ली
संसद के ऊपरी सदन राज्य सभा में आज महंगाई पर चर्चा हुई। इस दौरान राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सदस्य़ मनोज झा ने ‘नयनसुख’ के बहाने सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि महंगाई के इस दौर में आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। सरकार को महंगाई नजर नहीं आ रही है लेकिन आम आदमी इससे त्रस्त है। उन्होंने कहा कि नयनसुख देश के हर इलाके में है। हमें नयनसुख के नजरिए से महंगाई और बेरोजगारी को देखना चाहिए। तब हमें पता चलेगा कि हमारे सरोकार कितने संकीर्ण हैं। सरकार ने पालने से लेकर कब्र तक हर चीज पर जीएसटी लगा दिया है। अगर सरकार से गलती हुई है तो उसे वापस लेने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
मनोज झा ने कहा, ‘मैं एक कहानी के जरिए अपनी बात कहना चाहता हूं। इस कहानी में कुछ भी काल्पनिक नहीं है। नयनसुख नाम का एक आदमी अपने दो बच्चों और पत्नी के साथ दिल्ली में रहता है। नयनसुख सिक्योरिटी गार्ड है। सांसदों के घर की रखवाली करता है। 20 हजार रुपये की तनख्वाह है लेकिन 10 से 12 हजार रुपये पर साइन करता है। यानी उसे 10-12 हजार रुपये ही सैलरी मिलती है। इसमें से वह चार हजार रुपये किराया देता है। हर महीने 1200 रुपये सिलेंडर का देता है। खाने पर उसका खर्च 3,000 रुपये है। स्कूल की फीस 2,000 रुपये है। इसमें आने जाने का खर्च शामिल नहीं है। आकस्मिक बीमारी को भी नहीं जोड़ रहा हूं। डीजल और पेट्रोल भी नहीं जोड़ रहा हूं क्योंकि उसके पास सिर्फ साइकिल है। ये नयनसुख दिल्ली में भी है, मुंबई में भी है, कोलकाता में भी है और हमारे पटना में भी है। नयनसुख के नजरिए से महंगाई और बेरोजगारी को देखिए। तब पता चलेगा कि हमारे सरोकार कितने संकीर्ण हैं।’
उन्होंने सत्तारूढ़ बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि देश के सबसे बड़े सूबे में एक विशाल पार्टी चुनाव लड़ रही थी। उस दौरान कीमतें नहीं बढ़ी। तब कहा गया था कि बाजार कीमतें तय करता है। विशाल होने के साथ-साथ दिल भी बड़ा होना चाहिए। हमारी कोशिश लोगों को महंगाई से राहत देने की होनी चाहिए। इस सरकार ने पालने से लेकर कब्र तक कोई चीज नहीं छोड़ी है जिस पर जीएसटी नहीं लगाया है। महंगाई जैसे लोक सरोकार के मुद्दे पर सार्वजनिक चिंता होनी चाहिए। अगर सरकार से कोई गलती हुई है तो उसे वापस ले लेना चाहिए।
झा ने कहा कि देश में बेरोजगारी चरम पर है। हमारे बिहार में बच्चे सरकारी नौकरी के सपने देखते हैं। यही वजह है कि अग्निपथ योजना का सबसे ज्यादा विरोध बिहार में ही दिखाई दिया। रेलवे, शिक्षा और सेना कहीं कोई रोजगार नहीं है। हमारे राज्य को न तो विशेष राज्य का दर्जा दिया गया और न ही कोई विशेष पैकेज दिया गया। बिहार को फुटबॉल बनाकर रख दिया गया है। हमें ऐसा राज्य बना दिया गया है जो देश के दूसरे राज्यों को लेबल सप्लाई करता है। यह बिहार के साथ सरासर नाइंसाफी है।