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Friday, July 4, 2025
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कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा पर सवाल…2020 से अब तक सात हत्याएं, खोखले साबित हो रहे दावे

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श्रीनगर

घाटी में कश्मीरी पंडित एक बार फिर आतंकियों के निशाने पर हैं। जहां शोपियां जिले के चौधरीगुंड गांव में बीते शनिवार सुबह आतंकियों ने गोली मारकर किसान पूरन कृष्ण भट की हत्या कर दी। साल 2020 से अब तक की बात करें तो यह कश्मीरी पंडित की सातवीं हत्या है, जिसे आतंकियों ने अंजाम दिया है। डीआईजी सुजीत कुमार ने कहा कि आतंकवादी संगठन कश्मीर फ्रीडम फाइटर (KFF) ने भट की हत्या की जिम्मेदारी ली है। पूरन कृष्ण भट उस वक्त घर के ठीक बाहर ही थे, जब आतंकियों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। 43 वर्षीय कश्मीरी पंडित के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है। पुलिस के मुताबिक भट की हत्या के बाद इलाके की घेराबंदी कर हमलावर आतंकियों को पकड़ने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है।

साल 2020 से अब तक कश्मीरी पंडित की सातवीं हत्या
आतंकियों की ओर से लगातार निशाने पर कश्मीरी पंडितों की अगर बात करें तो साल 2020 के बाद से सात हत्याएं हो चुकी हैं। वहीं भट की हत्या ने पुराने घावों को फिर से कुरेद कर रख दिया है। साथ ही लोगों के उस विश्वास को भी खासा धक्का लगा है, जो कि वे सरकार पर जता रहे हैं। इनमें खासकर ऐसे तबके के लोगों को और भी करारा झटका लगा है, जो कि नौकरी और आवास देने वाली सरकारी पुनर्वास योजना को देखते हुए घाटी में लौटे हैं।

कश्मीरी पंडित पिछले पांच महीनों से जम्मू में राहुल भट की हत्या के बाद से विरोध कर रहे हैं। आतंकियों ने बडगाम जिले की चदूरा तहसील कार्यालय में 35 साल के क्लर्क राहुल भट की गोली मारकर हत्या कर दी थी। वहीं इसके बाद 36 साल की दलित महिला और सरकारी टीचर रजनी बाला की हत्या के बाद विरोध तेज हो गया। रजनीबाला जम्मू के सांबा जिले की रहने वाली थीं जिनकी बीती 31 मई को कुलगाम जिले में सरकारी स्कूल के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

एक प्रदर्शनकारी ने कहा, कश्मीरी पंडितों के सरकारी कर्मचारियों का तबादला कश्मीर से जम्मू किया जाना चाहिए। साथ ही कहा कि “हमारा बुरा सपना एक बार फिर पूरन कृष्ण की हत्या के साथ सच हो गया है। हम लोग तो पहले ही घाटी से भागे हुए हैं। नहीं तो हमें लगता है कि हम में से बहुत से लोग अब तक मर चुके होते, ”। प्रदर्शनकारी ने कहा कि लोग मर चुके हैं और जीवन टिका हुआ है, लेकिन सरकार हमें घाटी से बाहर तबादला किए जाने की मांग की अनदेखी कर रही है”। किसान पूरन कृष्ण भट उन लोगों में से थे, जो कि 1990 के दशक की शुरुआत में दौरान घाटी छोड़ चुके थे। यह वो दौर था जब हजारों कश्मीरी पंडित परिवारों को अलगाववादी आतंकवाद के चलते घाटी से भागना पड़ा था।

कहां हो गई चूक, फेल हो गया सुरक्षा का दावा
बीते शनिवार को आतंकियों की गोली का निशाना बने पूरन कृष्ण शोपियां में रहने वाले करीब 455 कश्मीरी पंडितों में से एक थे। दरअसल इसको लेकर दावा किया जाता है कि पुलिस के पास कश्मीरी पंडितों की पर्याप्त सुरक्षा है। डीआईजी सुजीत कुमार ने कहा कि “इस क्लस्टर के लिए, हमारे पास सुरक्षा थी। हम इस कारण को तलाश रहे हैं कि आखिरकार चूक कहां रह गई। जिस वह वक्त पूरन पर हमला हुआ वह स्कूटर से बाहर गया था और अपने घर लौट था। कुमार ने कहा कि किसी भी चूक की स्थिति में क्षेत्र के गार्डों और प्रभारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

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