नई दिल्ली ,
दिल्ली में बीजेपी करीब ढाई दशक से सत्ता का वनवास झेल रही है. 15 सालों से काबिज नगर निगम भी अब उसने गंवा दिया है. इसका ठीकरा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता पर फूटा और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. आदेश गुप्ता की जगह अब पार्टी ने वीरेंद्र सचदेवा को दिल्ली में संगठन की कमान सौंपी है. उनकी नियुक्ति के साथ ही बीजेपी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष पद पर प्रयोग के सिलसिले में एक नई कड़ी जोड़ दी है. ब्राह्मण, पूर्वांचली, वैश्य समुदायों से आए नेताओं से निराश पार्टी ने अब पंजाबी नेता पर दांव खेला है.
सचदेवा को कमान ऐसे समय सौंपी गई है जब दिल्ली की सत्ता से लेकर नगर निगम तक आम आदमी पार्टी कब्जा जमा चुकी है. आगे का रास्ता बीजेपी के लिए मुश्किल बनता जा रहा है. खासकर इस वजह से, क्योंकि पिछले दो दशकों में बीजेपी दिल्ली में एक भी नया चेहरा स्थापित करने में सफल नहीं रही है. दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए उसने प्रयोग तमाम किए, लेकिन सफलता अब तक नहीं मिली है.
साल 1993 में मदनलाल खुराना की अगुवाई में बीजेपी अपने दम पर ही दिल्ली में सरकार बनाने में सफल रही थी, लेकिन 1998 में बेदखल होने से बाद आज तक सत्ता का वनवास ही झेल रही है. अभी तक दिल्ली पर अपने कब्जे का दावा वो देश के सबसे बड़े नगर निगम पर अपनी सत्ता बताकर किया करती थी, लेकिन एमसीडी चुनाव के बाद पार्टी वहां से भी बेदखल हो गई.
दिल्ली विधानसभा का गठन होने के बाद राजधानी में पहली सरकार बीजेपी की ही बनी, लेकिन पांच साल में उसे तीन बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े. मदनलाल खुराना से लेकर साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज तक यहां सीएम रहीं, लेकिन 1998 में पार्टी चुनाव हारी तो आजतक उसकी वापसी नहीं हो सकी है. पहले 15 साल तक दिल्ली पर राज करने वाली शीला दीक्षित से मुकाबला करने के लिए पार्टी एक भी दमदार नेता नहीं तलाश सकी. इसके बाद अन्ना आंदोलन से निकलकर आम आदमी पार्टी का गठन करने वाले केजरीवाल के सामने भी बीजेपी का कोई नेता नहीं खड़ा हो सका.
पहले सतीश उपाध्याय, फिर किरण बेदी के चेहरे पर चुनाव
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के टक्कर के लिए बीजेपी ने पहले सतीश उपाध्याय को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, लेकिन पार्टी की सारी कोशिशें धरी की धरी रह गईं. 2015 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने अन्ना आंदोलन से सियासत में आई किरण बेदी के चेहरे पर लड़ा, लेकिन वे केजरीवाल का सामना नहीं कर सकीं. बीजेपी ने किरण बेदी के जरिए पंजाबी वोटरों को साधने का दांव चला था, लेकिन आम आदमी पार्टी के आगे उसे सफलता नहीं मिल सकी.
बीजेपी ने मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पूर्वांचली वोटों का साधने की कोशिश की. 2020 का विधानसभा चुनाव मनोज तिवारी की अगुवाई में ही लड़ा गया. केजरीवाल के मुफ्त बिजली-पानी की काट के लिए बीजेपी ने दो रुपये किलो आटा, छात्राओं को मुफ्त स्कूटी, साइकल जैसे वादे किए. हालांकि, बीजेपी ने किसी भी नेता को सीएम का चेहरा नहीं बनाया. इस चुनाव में बीजेपी लगातार दूसरी बार दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाई.
मनोज तिवारी भी नहीं दिला सके सत्ता
मनोज तिवारी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. बीजेपी ने मनोज तिवारी की जगह आदेश गुप्ता को पार्टी की कमान सौंपी. आदेश गुप्ता उसी वैश्य समुदाय से आते हैं, जिससे अरविंद केजरीवाल हैं. ऐसे में बीजेपी की कोशिश दिल्ली के वैश्य समुदाय को अपने पाले में लेने की थी. आदेश गुप्ता के अगुवाई में एमसीडी का चुनाव लड़ा गया और बीजेपी 15 सालों से काबिज नगर निगम को नहीं बचा सकी. दिल्ली की सत्ता से साथ-साथ नगर निगम पर भी अब केजरीवाल का कब्जा हो गया है. दिल्ली एमसीडी चुनाव में 50 फीसदी से ज्यादा वोट AAP को मिले जबकि बीजेपी को 35 फीसदी के करीब वोट मिले.
MCD में चार सांसदों के क्षेत्र में बीजेपी को हार
दिल्ली नगर निगम की हार से भले ही ब्रांड मोदी पर कोई फर्क न पड़ा हो, क्योंकि नगर निगम और लोकसभा का चुनाव जिन मुद्दों पर लड़ा जाता है, उनमें जमीन-आसमान का फर्क होता है. लेकिन, केजरीवाल ब्रांड इससे बहुत मजबूत हुआ है और यहां मिली जीत का मैसेज पूरे देश में गया है. केजरीवाल जिस तेजी के साथ दिल्ली में अपना राजनीतिक वजूद मजबूत कर रहे हैं, उससे बीजेपी की चिंता लाजमी है. दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है, लेकिन एमसीडी के नतीजे बता रहे हैं कि चार संसदीय सीटों पर बीजेपी को हार मिली है.
बीजेपी की कोशिश दिल्ली के हर चुनाव को पीएम मोदी बनाम केजरीवाल की करने की रही, लेकिन AAP की कोशिश हर चुनाव में अलग रही. पार्टी कभी सीधे-सीधे पीएम मोदी पर हमलावर नहीं रही. पहले बात-बात पर सीधे पीएम मोदी को कोसने वाले केजरीवाल पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बदले-बदले से नजर आए. विधानसभा में आम आदमी पार्टी ने केजरीवाल बनाम मनोज तिवारी बनाया तो एमसीडी चुनाव में कूड़े के पहाड़ को लेकर एजेंडा सेट किया.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में 56 फीसदी वोट पाने वाली बीजेपी विधानसभा चुनाव में 38 फीसदी पर सिमट गई तो एमसीडी के चुनाव में उसे 35 फीसदी वोट ही मिल सके. लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के लिए वोट देने वाले बहुत से लोगों ने विधानसभा और एमसीडी चुनाव में केजरीवाल के नाम पर आम आदमी पार्टी को वोट दिया.
अब पंजाबी पहचान पर जोर
वीरेंद्र सचदेवा को दिल्ली बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने फिर से अपने पुराने पंजाबी वोटर्स को साधने की कोशिश की है. एक समय बीजेपी के पास पंजाबी समुदाय से मदन लाल खुराना से लेकर विजय कुमार मलहोत्रा जैसे कद्दावर नेता हुआ करते थे. बीजेपी खुराना के चेहरे को आगे कर ही साल 1993 में दिल्ली की सत्ता में आई थी, लेकिन सियासी प्रयोग के चलते पंजाबी वोटरों को वो अपने साथ नहीं रख पाई. अब एक बार फिर से पंजाबी समुदाय की ओर पार्टी लौटी है.
दिल्ली बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष बने वीरेंद्र सचदेवा सरल स्वभाव के नेता माने जाते हैं जिनका सियासी सफर बहुत ही संघर्ष भरा रहा है. वे मंडल से लेकर जिला अध्यक्ष और अब कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष पद पर पहुंचे हैं. वे संगठन में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण प्रमुख भी रहे हैं. दिल्ली के चांदनी चौक और मयूर विहार के जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
वीरेंद्र सचदेवा का परिवार देश के बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से शरणार्थी के तौर पर आकर दिल्ली में बसा. इसलिए पहले वह चांदनी चौक के बीजेपी जिला अध्यक्ष रहे और फिर बाद में मयूर विहार जिले में कमान संभाली. बीजेपी की सुशासन सेल का कार्य भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय सहस्त्रबुद्धे के साथ वो देख चुके हैं. इसका उद्देश्य जिन प्रदेशों में बीजेपी की सरकारें हैं, उनके अच्छे प्रयोगों को दूसरे राज्य में लागू कराना है. देखना है कि वीरेंद्र सचदेवा दिल्ली में बीजेपी को खड़ा करने के लिए क्या सियासी प्रयोग करते हैं?