दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका डिफॉल्ट होने वाला है?

नई दिल्ली,

दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका इन दिनों एक संकट में घिरा हुआ है. अमेरिका का राजकोषीय भंडार खत्म होने की कगार पर है. यूएस ट्रेजरी ने तीन महीने पहले ही चेतावनी दी थी कि अमेरिकी सरकार ने कर्ज (उधार) लेने की तय सीमा को पार कर लिया है.इसका तात्पर्य यह है कि अमेरिकी सरकार के पास अब अपने बिलों का भुगतान करने और अपने कर्ज चुकाने के लिए खजाने में पैसे नहीं बचे हैं. ट्रेजरी की चेतावनी के बाद से ही अमेरिका लगातार कोशिश कर रहा है कि राजकोषीय भंडार को बरकरार रखा जाए, जिससे सरकार अपने बिलों का भुगतान जारी रख सके. लेकिन देश की दोनों प्रमुख पार्टियां इसका हल नहीं ढूंढ पाई हैं.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी पिछले हफ्ते चेतावनी दी थी कि अगर अमेरिका डिफॉल्ट होता है तो पूरे विश्व में आर्थिक अस्थिरता आ सकती है और इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. IMF की कम्यूनिकेशन डायरेक्टर जूली कोजैक ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “अगर अमेरिका डिफॉल्ट होता है तो इससे केवल अमेरिका को ही नहीं बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.”

अमेरिकी ट्रेजरी की चेतावनी
पिछले सप्ताह अमेरिकी ट्रेजरी ने चेतावनी दी थी कि जून में बिलों का भुगतान करने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं होंगे. यूएस ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने अमेरिकी कांग्रेस को एक पत्र लिखते हुए सरकार को आगाह किया था कि खजाने में पैसे की कमी के कारण हम जून में अमेरिकी सरकार पर बकाया भुगतान नहीं कर पाएंगे. ऐसे में बाइडेन सरकार कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाए, जिससे अगले महीने का बिल भुगतान किया जा सके.

अमेरिका में कर्ज लेने की लिमिट तय है. इसे बढ़ाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संसद के चार शीर्ष नेताओं को व्हाइट हाउस में तलब किया था. मंगलवार को रिपब्लिकन पार्टी के नेता और हाउस के स्पीकर केविन मैककार्थी सहित कई नेताओं के साथ बाइडेन ने बैठक की.

क्या डिफॉल्ट हो जाएगा अमेरिका?
यूएस ट्रेजरी ने संसद को लिखे अपने लेटर में स्पष्ट कर दिया है कि भुगतान जारी रखने के लिए सरकार को कर्ज लिमिट बढ़ानी होगी. लेकिन इस मुद्दे को लेकर अमेरिका की दोनों प्रमुख पार्टियां रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पूरी तरह से बंटी हुई हैं. राष्ट्रपति जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी कर्ज सीमा बढ़ाने के पक्ष में है. लेकिन कर्ज सीमा बढ़ाने वाला बिल काफी समय से हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स में लटका हुआ है.

दरअसल, अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स (अपर हाउस) में ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के पास बहुमत है. रिपब्लिकन पार्टी का कहना है कि हम बिल पास कर सरकार को सपोर्ट करने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बाइडेन सरकार भी बजट में महत्वपूर्ण कटौती के लिए तैयार हो. वहीं, सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.

बाइडन सरकार का आरोप है कि बिल पारित नहीं हो, इसके लिए रिपब्लिकन्स तिकड़म अपना कर अपने पॉलिटिकल एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं. ताकि डिफॉल्ट होने की तारीख के नजदीक आने के दबाव में उनकी सरकार विपक्षी पार्टी की खर्चों में कटौती की शर्त को मान ले.

ट्रम्प की पार्टी ने रखी ये शर्त
अप्रैल में रिपब्लिकन्स ने कर्ज सीमा बढ़ाने की अनुमति वाला ये विधेयक इस शर्त पर पारित किया था कि इसके बदले एक दशक में खर्च में 4.8 ट्रिलियन डॉलर की कटौती की जाएगी. बाइडन सरकार ने खर्च में कटौती वाली शर्तों के साथ बातचीत करने से इनकार कर दिया था.

डिफॉल्ट की समय-सीमा नजदीक आ जाने के बावजूद रिपब्लिकन्स बाइडन सरकार पर दबाव बनाने के लिए अपनी शर्तों पर अड़े हुए हैं. रिपब्लिकन्स इससे पहले 2011 में भी दबाव की राजनीति करने में सफल रहे थे और डिफॉल्ट होने से 72 घंटे पहले सरकार को खर्च में कटौती करने पर मजबूर होना पड़ा था.अगर कर्ज सीमा नहीं बढ़ाई जाती है और दोनों पार्टियों के बीच गतिरोध जारी रहता है तो अमेरिका अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं.

क्या है कर्ज सीमा?
कर्ज सीमा वह तय राशि है, जहां तक अमेरिकी सरकार सामाजिक सुरक्षा, चिकित्सा और सेना जैसी सेवाओं के भुगतान के लिए उधार ले सकती है. प्रत्येक वर्ष सरकार टैक्स, सीमा शुल्क और अन्य माध्यमों से राजस्व जुटाती है लेकिन खर्च उससे अधिक करती है. यह घाटा साल के अंत में देश के कुल कर्ज में जुट जाता है. यह कर्ज प्रत्येक साल लगभग 400 बिलियन से 3 ट्रिलियन डॉलर तक होती है.

कर्ज लेने के लिए ट्रेजरी सरकारी बॉन्ड जारी करती है. इस कर्ज को ब्याज सहित वापस भुगतान करना होता है. एक बार जब अमेरिकी सरकार इस कर्ज लिमिट तक पहुंच जाती है तो ट्रेजरी और बॉन्ड नहीं जारी कर सकती है. इससे सरकार के पास पैसे की कमी हो जाती है. इस कर्ज लिमिट को निर्धारित करने की जिम्मेदारी अमेरिकी अपर हाउस ‘कांग्रेस’ के पास है. 1960 के बाद से अमेरिकी इतिहास में अब तक 78 बार कर्ज लिमिट को बढ़ाया गया है. कई बार कर्ज सीमा को निलंबित भी किया जा चुका है.

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