मौका वही है और मंच भी, पर कर्नाटक में इस बार नहीं दिखेगी सोनिया-मायावती की वो केमिस्ट्री

नई दिल्ली

वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है… हां वक्त के साथ बहुत सी चीजें बदल जाती है और जब आप राजनीति में हों तो कुछ भी हो सकता है। यह तस्वीर 2018 की है। तब कांग्रेस के समर्थन से जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी सीएम बने थे और मंच पर विपक्षी एकजुटता देखने को मिली थी। सारे समीकरण ध्वस्त हो गए थे और सबसे ज्यादा चर्चा मायवाती और सोनिया गांधी के गले मिलने और मुस्कुराने की हुई थी। सीताराम येचुरी और ममता बनर्जी एक दूसरे को हैलो कहते देखे गए। मायावती और अखिलेश ने एक साथ लोगों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया। तब कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव होने वाले थे और आज भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी है। कांग्रेस पार्टी अपने दम पर कर्नाटक में सरकार बनाने जा रही है लेकिन 2018 वाली मुस्कान इस बार नहीं दिखने वाली। जी हां, इस बार कांग्रेस पार्टी ने मायावती को शपथ ग्रहण का न्योता ही नहीं दिया है। कई ऐसे विपक्षी नेता हैं जिसे कांग्रेस ‘भूल’ गई।

ममता भी नहीं आ रहीं
कांग्रेस को एक बार फिर बड़ा मंच और मौका मिला है। मुख्य विपक्षी दल कर्नाटक सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी नेताओं को बुलाकर 2024 से पहले विपक्षी एकजुटता का संदेश देने की तैयारी कर रही है। सिद्धारमैया मुख्यमंत्री और डीके शिवकुमार डेप्युटी सीएम होंगे। ऐसे में कल यानी 20 मई को बेंगलुरु में तमाम विपक्षी नेता दिख सकते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को न्योता गया है और वे कर्नाटक पहुंचेंगे। नीतीश कुमार खुद कई विपक्षी नेताओं से मिलकर एक मंच पर आने की सलाह दे चुके हैं। आगे पटना में विपक्ष के नेताओं की एक बैठक भी होने वाली है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, NCP चीफ शरद पवार, अखिलेश यादव, फारूक अब्दुल्ला, उद्धव ठाकरे को भी कांग्रेस ने आमंत्रित किया है। हालांकि ममता बनर्जी अपनी जगह प्रतिनिधि भेजेंगी। उनकी पार्टी ने कहा है कि ममता का पहले से तय कार्यक्रम है। स्टालिन आज शाम को ही बेंगलुरु पहुंच सकते हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी राजा भी पहुंच सकते हैं। (तस्वीर 2018 की है)

न ममता, न माया, न केजरीवाल
दरअसल, कांग्रेस पार्टी 2024 की तैयारियों में जुटी है और मोदी-शाह की रणनीति को मात देने के लिए समान विचारधारा वाले दलों को साथ लाने के प्रयास हो रहे हैं। पिछले दिनों मल्लिकार्जुन खरगे कई नेताओं से भी मिले थे। हालांकि गौर करने वाली बात यह है कि बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती को कांग्रेस इस बार भूल गई है। उन्हें न्योता नहीं दिया गया है। भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख और तेलंगाना के सीएम केसीआर पिछले दिनों ऐंटी-बीजेपी और ऐंटी कांग्रेस मोर्चा खड़ा करने के लिए कई राज्यों में घूमते दिखे थे, शायद इसीलिए कांग्रेस ने उनसे दूरी बना ली। दो राज्यों में कांग्रेस की जगह लेकर सरकार चला रही आम आदमी पार्टी को भी कांग्रेस पार्टी ने इस समारोह से दूर रखा है। अरविंद केजरीवाल को भी न्योता नहीं भेजा गया है। हाल में ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक ने इशारों में 2024 में पीएम मोदी की जीत की बात कह दी थी। उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान भी किया है। ऐसे में कांग्रेस ने बीजू जनता दल के नेता को नहीं बुलाया है। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को भी बुलावा नहीं भेजा गया है।

माया को क्यों नहीं बुलाया
दरअसल, कांग्रेस 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के बाद से मायावती से काफी नाराज है। राहुल गांधी ने इशारों-इशारों में मायावती पर निशाना भी साधा था। कांग्रेस का कहना है कि माया ने यूपी चुनाव में भाजपा को फायदा पहुंचाया। कहा तो यहां तक जाता है कि मायावती पूरी ताकत से चुनाव नहीं लड़ रही हैं। उन्होंने कांग्रेस शासित राजस्थान में राष्ट्रपति शासन की भी मांग कर दी थी। उनके बयानों से ऐसा मैसेज गया कि वह अपनी राजनीति कांग्रेस से दूर बीजेपी की तरफ शिफ्ट कर रही हैं। कांग्रेस ने बसपा को भाजपा का अघोषित प्रवक्ता तक कह दिया। मायावती राजस्थान में बसपा विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराए जाने से काफी नाराज हुई थीं। 2019 में वह कांग्रेस नेताओं की भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर से मुलाकात पर नाराज हुई थीं। दलित और मुस्लिम वोटों पर दोनों पार्टियों की नजर है। माया को न बुलाया जाना का मतलब साफ है कि वह कांग्रेस के ऐंटी-बीजेपी खेमे से बाहर कर दी गई हैं।

2024 से पहले विपक्ष का मंच सजेगा
इस तरह से देखें तो 2019 से पहले बेंगलुरु में सजे विपक्षी एकता के मंच से इस बार 2024 से पहले सजने जा रहे मंच का नजारा थोड़ा अलग होगा। न मायावती दिखेंगी, न ममता। तब राहुल गांधी क्लीन शेव रहा करते थे और भारत जोड़ो यात्रा के बाद हल्की दाढ़ी में रहने लगे हैं। तब माया और सोनिया की गर्मजोशी और बॉडी लैंग्वेज को देखकर सियासी केमिस्ट्री समझने की कोशिश की गई थी। इस बार भी विपक्षी नेताओं की गर्मजोशी और बॉडी लैंग्वेज पर सबकी नजरें होंगी।

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