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बद्रीनाथ धाम में अलकनंदा का रौद्र रूप! खतरे का निशान पार कर मंदिर के पास तप्तकुंड तक पहुंचा पानी, अलर्ट जारी

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बद्रीनाथ ,

उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे चल रहे उत्खनन कार्य के कारण सोमवार देर रात बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई, जिससे ब्रह्मकपाल का एरिया जलमग्‍न हो गया और पानी बद्रीनाथ मंदिर के पास तप्तकुंड की सीमा तक पहुंच गया. इसके चलते श्रद्धालुओं में डर पैदा हो गया. अलकनंदा नदी मंदिर से कुछ मीटर नीचे बहती है.

बता दें कि अलकनंदा नदी और मंदिर के बीच स्थित तप्तकुंड झरनों का एक समूह है, जिसमें श्रद्धालु पूजा करने से पहले स्नान करते हैं. अलकनंदा नदी के तट पर ब्रह्मकपाल है, जहां श्रद्धालु अपने पूर्वजों की याद में तर्पण करते हैं. सोमवार शाम 4 बजे से देर शाम तक इस क्षेत्र में अलकनंदा नदी उफान पर रही. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि नदी की तेज धारा ने श्रद्धालुओं को भयभीत कर दिया. हालांकि, गनीमत रही कि कोई नुकसान नहीं हुआ

तीर्थ-पुरोहित संघ के अध्यक्ष ने कही ये बात
मंदिर के पुजारियों ने बताया कि बद्रीनाथ मास्टर प्लान के तहत चल रही खुदाई के परिणामस्वरूप अलकनंदा का जलस्तर अचानक बढ़ने से उसके किनारों पर जमा मलबा बह गया. तीर्थ-पुरोहित संघ के अध्यक्ष प्रवीण ध्यानी ने फोन पर न्यूज एजेंसी को बताया- हम लंबे समय से स्थानीय प्रशासन से मास्टर प्लान के तहत चल रहे निर्माण कार्य के कारण बद्रीनाथ मंदिर और खासकर तप्तकुंड को संभावित खतरे के बारे में अनुरोध कर रहे थे. मैंने व्यक्तिगत रूप से जिला मजिस्ट्रेट से इस खतरे के बारे में कुछ करने के लिए दो बार अनुरोध किया है, लेकिन इस पर कभी ध्यान नहीं दिया गया.

बकौल प्रवीण ध्यानी- पहली बार अलकनंदा का जलस्तर इस तरह बढ़ता देखा है. जलस्तर शाम 4 बजे बढ़ना शुरू हुआ और रात करीब 8 बजे तक जारी रहा. खुदाई से निकलने वाले मलबे को अलकनंदा में डाला जा रहा है, जिससे नदी का प्रवाह क्षेत्र कम हो गया है. ध्यानी ने बताया कि सोमवार शाम को जलस्तर बढ़ने से पवित्र माने जाने वाले ब्रह्मकपाल की चार चट्टानें भी कुछ देर के लिए अलकनंदा में डूब गईं. ऐसा पहली बार हुआ है. बद्रीनाथ मंदिर से कुछ मीटर नीचे ब्रह्मकपाल और तप्तकुंड तक अलकनंदा का पानी पहुंचना मंदिर के लिए खतरे का संकेत है.

उन्होंने बताया कि पीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट बद्रीनाथ आध्यात्मिक नगर मास्टर प्लान कार्यक्रम के तहत पिछले तीन साल से पूरे इलाके में बुलडोजर चल रहे हैं. ध्यानी के मुताबिक, अलकनंदा के किनारों पर खुदाई चल रही है, जिससे नदी के किनारों पर मलबे के ढेर जमा हो रहे हैं.

पर्यावरणविद ने जाहिर की चिंता
वहीं, दो साल पहले बद्रीनाथ धाम में मास्टर प्लान के तहत किए जा रहे ‘बिना सोचे-समझे’ निर्माण के संभावित खतरों के बारे में प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वाले प्रसिद्ध पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि अलकनंदा ग्लेशियरों से पोषित नदी है और उच्च हिमालय में हो रही गतिविधियों का इस पर सीधा असर पड़ता है.

भट्ट ने बताया कि 1930 में बद्रीनाथ मंदिर के पास अलकनंदा का जलस्तर 30 फीट तक बढ़ गया था. इसी तरह 2014 में बद्रीनाथ में अलकनंदा ने उग्र रूप धारण कर लिया था. बद्रीनाथ आध्यात्मिक नगरी के मास्टर प्लान के निर्माण के तहत कोई भी कार्यक्रम शुरू करने से पहले नदियों के चरित्र, भूगोल और मौसम के प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण किया जाना चाहिए.

मामले में चमोली जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नंद किशोर जोशी ने बताया कि सोमवार शाम को नदी के बढ़ते जलस्तर को लेकर अलर्ट जारी किया गया था, लेकिन अभी तक किसी तरह के नुकसान की कोई सूचना नहीं है. उधर, पानी का स्तर बढ़ने से लोगों में डर का माहौल है.

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