मोदी-शाह और NDA के लिए सिरदर्द बनेंगे बिहार BJP के दो वरिष्ठ नेता, पार्टी लाइन से हटकर कर रहे बयानबाजी

पटना

राजनीतिक रिश्ता हो या फिर व्यक्तिगत, बड़बोलेपन से बचना चाहिए। राजनीति में दबाव की सियासत करने के लिए उल्टा-सीधा बोलने से बचना चाहिए। पार्टियों के रिश्ते और गठबंधन के रिश्ते की मर्यादा होती है कि नेताओं को हमेशा संभलकर बोलना होता है। बिहार के संदर्भ में बात करें, तो पहली बार जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ा, उसके मूल कारण में नेताओं की उग्र बयानबाजी थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि उस समय के कथित फायरब्रांड और बयान वीर बीजेपी नेताओं ने बड़ी-बड़ी बातें की। हालांकि, कारण ये भी था कि नरेंद्र मोदी को बीजेपी आगे कर रही थी। उपरोक्त बातें वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक धीरेंद्र कुमार ने एनबीटी ऑनलाइन से कही। धीरेंद्र मानते हैं कि गठबंधन की राजनीति के दौर में सहयोगी दलों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए बयान देना चाहिए। बिहार में बीजेपी के एक दो नेता एक बार फिर से कुछ-कुछ ऐसा बोलने लगे हैं, जो गठबंधन की सेहत के लिए बाद के दिनों में ठीक नहीं होगा। इससे सियासी तल्खी बढ़ेगी।

गठबंधन धर्म का पालन करें- जानकार
जी हां, बिहार की राजनीति में इन दिनों बीजेपी के दो नेताओं की खूब चर्चा हो रही है। पहले नेता हैं- अश्विनी चौबे। इन्हें पार्टी ने बक्सर से टिकट नहीं दिया। फिलहाल ये पार्टी में तो हैं, लेकिन बहुत कुछ ऐसा बोलने लगे हैं, जिससे खुद इनकी पार्टी सहज नहीं है। दूसरे हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान। वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय कहते हैं कि इन दोनों नेताओं के बयानों से फिलहाल किसी तरह का कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। ऐसा लगातार होता रहा, तो सहयोगी दल के नेता भी कुछ न कुछ बोलेंगे। उसके बाद टकराव की स्थिति बढ़ेगी। सुनील पांडेय मानते हैं कि बीजेपी के लिए ये दोनों नेता बाद में सिरदर्द साबित हो सकते हैं। पांडेय कहते हैं कि पूर्व में दोनों नेताओं ने राज किया है। अब दबाव की राजनीति करने लगे हैं। ये पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं है।

बीजेपी के बड़बोले नेता
ध्यान रहे कि अश्विनी चौबे और संजय पासवान, इन दोनों को पार्टी ने विभिन्न पद दिए। सम्मान दिया। वर्षों तक विधायक, राज्य में मंत्री, विधान पार्षद और केंद्रीय मंत्री तक रहे। अब ये लोग पार्टी को सियासत सीखाने में जुटे हुए हैं। इन दोनों नेताओं की बयानबाजी आने वाले दिनों में बिहार के संदर्भ में अमित शाह और नरेंद्र मोदी की टेंशन बढ़ा सकते हैं। हाल में संजय पासवान का विधान पार्षद वाला कार्यकाल खत्म हुआ है। अब वे कह रहे हैं कि बिहार में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 12 सीटें इसलिए मिलीं कि साथ में नीतीश कुमार रहे। नीतीश कुमार की वजह से बीजेपी 12 सीट निकाल पाई। जब बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ये बात स्पष्ट कर चुका है कि बिहार में आगामी 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। अश्विनी चौबे सीख दे रहे हैं कि बीजेपी को अकेले दम पर विधानसभा चुनाव मैदान में उतरना चाहिए।

‘संभलकर बोलना चाहिए’
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र साफ कहते हैं कि इन दोनों नेताओं की मंशा को सहयोगी दल भी समझ रहे हैं। बीजेपी की ओर से इन पर लगाम लगाने का प्रयास अवश्य किया जाएगा। इनके पास फिलहाल कोई काम नहीं है। ये संगठन के लिए भी कुछ बेहतर नहीं कर रहे हैं। इनके बयान से सिर्फ और सिर्फ सियासी रिश्ते में खटास आ सकती है। उससे कोई फायदा नहीं हो सकता। पार्टी के अंदर संजय पासवान के बेटे को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने प्रदेश मंत्री की जिम्मेदारी दे रखी है। संजय पासवान के बेटे गुरु प्रकाश बीजेपी में लगातार काम कर रहे हैं। पूर्व में राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रहे। धीरेंद्र कहते हैं कि बीजेपी का एक सिस्टम है। उस सिस्टम के साथ नेताओं को चलना होता है। आपको कब पद देना है। कब आपको आगे ले जाना है, ये पूरी शिद्दत के साथ केंद्रीय नेतृत्व तय करता है। कुछ नेता ऐसे होते हैं, उन्हें लगता है अंतिम सांस तक पद पर बने रहें।

चौबे पर पार्टी की नजर
अश्विनी चौबे ने 26 जून को मीडिया को दिए बयान में कहा था कि बिहार में बीजेपी अकेले फाइट करे। बीजेपी के नेतृत्व में चुनाव हो। बीजेपी प्रदेश कार्यालय से जुड़े नेताओं ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अश्विनी चौबे के बारे में केंद्र में फीडबैक पहले भी गया था। टिकट कटने के बाद भी जा रहा है। उनका व्यवहार अब पार्टी विरोधी लग रहा है। उनकी उम्र का लिहाज है। बक्सर में उन्होंने मिथिलेश तिवारी के पक्ष में बिल्कुल भी काम नहीं किया। पार्टी की उन पर नजर है। उन्हें क्या लगता है कि उनके बयानों को कोई सुन और देख नहीं रहा है। अश्विनी चौबे ने इशारों में सम्राट चौधरी पर सवाल खड़ा किया था। सम्राट चौधरी की मेहनत उन्हें नहीं दिख रही है। उन्हें वे बाहरी बता रहे हैं। अश्विनी चौबे को अब संगठन के लिए काम करना चाहिए। इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय कहते हैं कि अश्विनी चौबे वाली पीढ़ी का जमाना बीजेपी में गया। उन्हें अब समझ जाना चाहिए कि उनके बारे में बक्सर के कार्यकर्ताओं ने ही शिकायत केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचाई। उनके खिलाफ कई प्रखंडों में बीजेपी कार्यकर्ता पुतले जलाते दिखे। उसके बाद उनका टिकट कटा। अब आराम से संगठन का काम करना चाहिए।

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