अक्सर भूलते या कन्फ्यूज दिख रहे बाइडेन, बन रहा खास मेडिकल टेस्ट का दबाव

नई दिल्ली,

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन 81 साल के हो चुके. कुछ समय से लगातार उनकी शारीरिक और मानसिक ताकत पर सवाल उठते रहे, लेकिन 27 जून को हुई प्रेसिडेंशियल डिबेट के बाद ये चर्चा जोर पकड़ चुकी कि क्या बाइडेन को कॉग्निटिव टेस्ट देना चाहिए. असल में बहस के दौरान राष्ट्रपति कई बार कन्फ्यूज लगे, यहां तक के उनके चेहरे पर कोई भाव तक नहीं थे. उनके हाथ-पैरों के ठीक से न करने की बात भी कई बार उठी. अब विपक्षी पार्टी ने उनके कॉग्निटिव टेस्ट की आधिकारिक मांग कर डाली.

क्या कहा राष्ट्रपति ने
चिट्ठी के जवाब में हालांकि बाइडेन ने टेस्ट देने से साफ मना कर दिया. एनबीसी न्यूज के मुताबिक, उन्होंने कहा कि मैं हर रोज कॉग्निटिव टेस्ट से गुजरता हूं. हर काम में टेस्ट देता हूं. रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी के बाद से बाइडेन का कोई रुटीन मेडिकल एग्जाम नहीं हुआ, जो कि काफी चौंकानेवाली बात है. खुद वाइट हाउस के सेक्रेटरी ने इसका खुलासा किया था.

क्या है कॉग्निटिव टेस्ट, जिसकी बात हो रही
एक खास बात ये है कि बाइडेन के पक्ष में खड़े लोग भी उनके टेस्ट की मांग कर रहे हैं ताकि सवाल उठा रहे लोगों के मुंह बंद हो जाए. तो क्या है वो टेस्ट जो अमेरिकी राष्ट्रपति को पद के लायक घोषित कर सकता, या उसपर सवाल उठा सकता है! ये सोच-समझ की जांच है, जिसमें ब्रेन फंक्शन जैसे सोचना, सीखना, याद रखना और भाषा का इस्तेमाल भी शामिल है. अगर ये चीजें सही नहीं हैं तो इसे कॉग्निटिव खराबी या विकलांगता माना जाएगा.

कब होता है ये टेस्ट
जो लोग डिमेंशिया की शिकायत करते हैं, या फिर जिनमें ऐसे लक्षण होते हैं, जो बार-बार भूलते हैं, या फिर फैसले सही ढंग से नहीं ले पाते, उन्हें भी डॉक्टर ये टेस्ट करवाने को कहते हैं. ये अक्सर उम्रदराज मरीज होते हैं. 60 के बाद कॉग्निटिव दिक्कतें बढ़ जाती हैं, और 75 के बाद डर सबसे ज्यादा रहता है. इस लिहाज से देखा जाए तो बाइडेन रिस्क ग्रुप में हैं. हालांकि उन्हें ऐसा कोई टेस्ट करवाने और जांच रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया.

वाइट हाउस की मेडिकल यूनिट ने निकाली चिट्ठी
बाइडेन की जांच की बात इतनी ज्यादा खिंच गई कि खुद वाइट हाइस के डॉक्टर को इसपर बात करनी पड़ी. सोमवार को जारी एक लेटर में उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति का लगातार मेडिकल टेस्ट होता है और इसमें न्यूरोलॉजिकल स्पेशलिस्ट भी रहते हैं, जो देखते हैं कि अमेरिका के लीडर में डिमेंशिया या पर्किंसन्स जैसे लक्षण तो नहीं. मेडिकल यूनिट के पत्र के अनुसार, बाइडेन बिल्कुल सेहतमंद हैं.

वाइट हाउस में बीमारियां छिपाने का इतिहास
पहले भी ऐसे कई मामले आ चुके, जब पद पर बने रहने के लिए राष्ट्रपति जानलेवा बीमारियां छिपाते रहे. दो कार्यकाल पूरा कर चुके ग्रोवर क्लीवलैंड ने बीमारी छिपाने की सारी हदें पार कर दीं. मुंह के कैंसर की तीसरी स्टेज में उन्होंने जहाज में सर्जरी करवाई और बहाना बनाया गया कि वे छुट्टियां मना रहे हैं. समुद्र की उछलती लहरों के बीच हो रही सर्जरी में डॉक्टरों के हाथ कांपने का खतरा था, जिससे मामला बिगड़ सकता था, लेकिन रिस्क लिया गया. उस समय क्लीवलैंड ठीक होकर लौटे लेकिन जल्दी ही उनकी मौत हो गई. माना जाता है कि ये समुद्री सर्जरी का नतीजा था, जिसकी वजह से कैंसर खत्म नहीं हो सका. इस बारे में आम जनता को जानकारी काफी देर से मिली.

राष्ट्रपतियों के बीमारी छिपाने की आदत पर अमेरिकी इतिहासकार मैथ्यू एल्जिओ ने एक किताब भी लिखी. ‘द प्रेसिडेंट इज अ सिक मैन’ नाम की किताब में शारीरिक के साथ-साथ मानसिक बीमारियों का भी जिक्र है, जिनका असर देश पर भी पड़ा.

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