नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अदालतों को ‘लापरवाही’ से जमानत आदेश पर रोक नहीं लगानी चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति की आजादी प्रभावित होती है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा एक साल से ज्यादा समय तक जमानत आदेश पर रोक लगाए रखने पर नाराजगी जताई, जिस दौरान आरोपी जेल में रहा।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच ने हैरानी जताई कि हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एक आरोपी को जमानत देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और मामले को एक साल तक लंबित रखा। इससे आरोपी को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। बेंच ने ED के वकील जोहेब हुसैन से कहा, ‘क्या हो रहा है? यह चौंकाने वाला है। कृपया हमारे सवाल का जवाब दें। क्या जमानत पर रोक इस तरह लगाई जा सकती है? जब तक कि वह आतंकवादी न हो, रोक लगाने का क्या कारण है? क्या आप बचाव कर सकते हैं? हम इसे रद कर देंगे… हाई कोर्ट ने कितनी लापरवाही से जमानत पर रोक लगा दी। क्या हाई कोर्ट बिना किसी तर्कपूर्ण आदेश के रोक लगा सकता था? हमें जवाब दें, हम क्या संदेश दे रहे हैं? हम खुद को भी दोषी ठहरा रहे हैं।’
बेंच ने कहा कि इस तरह की प्रथा की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है। बेंच ने कहा, ‘हाई कोर्ट ने बहुत ही लापरवाही से आदेश पारित किया। उसने जमानत आदेश पर रोक लगा दी और उसके बाद एक साल बाद मामले की सुनवाई हुई। अदालत ने इस दौरान मामले को देखने की जहमत नहीं उठाई और वह जेल में सड़ता रहा।’
पीठ ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया लेकिन हुसैन ने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें शुक्रवार को ED की ओर से मामले पर बहस करने के लिए कम से कम 10 मिनट का समय दिया जाए क्योंकि शीर्ष अदालत द्वारा पारित किसी भी आदेश का असर अन्य मामलों पर भी पड़ेगा। उन्होंने कहा कि देरी के लिए अभियोजन पक्ष दोषी नहीं था।
जमानत मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम स्वतंत्रता के पहलू को लेकर चिंतित हैं। एक व्यक्ति को जमानत मिलने के बाद एक साल तक जेल में सड़ना पड़ता है।’ पीठ ने हुसैन को इस मुद्दे पर केस लॉ रखने की अनुमति दी।
अदालत परविंदर खुराना नाम के शख्स की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे पिछले साल 17 जून को ट्रायल कोर्ट ने PMLA मामले में जमानत दे दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून को हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और खुराना की जमानत बहाल कर दी।