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Wednesday, July 2, 2025
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PM मोदी बोले- बचपन जीना चाहता था, दोस्तों को बुलाया… लेकिन ‘तू’ कहने वाला कोई नहीं!

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किसी के बात करने के लहजे से पता चलता है कि करीबियां कितनी ज्यादा है। एक-एक शब्द बताता है कि दोस्ती कितने साल पुरानी है। हालांकि जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश में कई दफा रिश्ते पीछे छूट जाते हैं, एहसास तब होता है जब बात करने के ढंग में बदलवा महसूस होता है। शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कुछ ऐसा ही महसूस करते हैं।

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पॉडकास्ट में अपने बचपन और बचपन के दोस्तों की बातें शेयर की हैं। साल 2025 के पहले पॉडकास्ट में पीएम मोदी ने बहुत ही गहराई से बात की। यह भी बताया कि इतने बड़े मुकाम पर पहुंचने के बाद उन्हें किस चीज की कमी खलती है। कहा- अब कोई तू कहने वाला नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या रिश्ते में यह जरूरी है।

ऊंचाई पर पहुंचने पर भी नहीं बदला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंटरव्यू में कहा कि जब मैं मुख्यमंत्री बना तो मेरे मन में इच्छाएं जगीं। इनमें एक इच्छा यह थी कि मेरे जितने भी दोस्त थे सभी को सीएम हाउस बुलाउंगा। मैं सोचता था कि कोई यह ना सोचे की बड़ा तीसमारखाँ बन गया है। क्योंकि मैं वही हूं जो पहले था, मुझमें कोई बदलवा नहीं आया है। इसलिए मैं सबसे साथ मिलकर पहले की तरह बैठना चाहता था। हालांकि ऊंचाई पर पहुंचने के बाद अक्सर कहा जाता है कि बदल गए लेकिन खुद को पहले की तरह बनाए रखना हर किसी के लिए आसान नहीं होता है।

अब कोई तू कहने वाला बचा नहीं-PM
पीएम मोदी ने बताया कि जब मैं उनसे मिला तो कुछ को चेहरे से भी नहीं पहचान पाता था, लंबा वक्त बीतने से बहुत कुछ बदल गया था। हालांकि सभी लोग मिले तो गपशप मारकर बचपन की यादें भी ताजा कीं। लेकिन बहुत आनंद नहीं आया, क्योंकि मैं दोस्त खोज रहा था और उन्हें मुख्यमंत्री नजर आ रहा था। तो खाई पटी नहीं और मेरी जिंदगी में कोई तू कहने वाला बचा नहीं। दोस्त आज भी संपर्क में है लेकिन सम्मान से बात करते हैं।

रिश्तों में क्यों आती हैं दूरियां
जैसे-जैसे एक शख्स आगे बढ़ता जाता है रिश्ते आपने आप पीछे छूटते जाते हैं। और, जब बात किसी बड़े पद की होती है तब कई दफा अपने ही लोग समझदारी में भी दूर हो जाते हैं। ताकि उनकी वजह से ऊंचे पद पर बैठे इंसान पर किसी तरह की ऊंगली ना उठे। दोस्ती यारी में की गई बातों का कुछ और मतलब ना निकाल लिया जाए, इसलिए दोनों ही पक्ष एक बाउंड्री बना लेते हैं। और, ऐसा सिर्फ दोस्ती ही नहीं बल्कि हर एक रिश्ते में देखने को मिलता है।

क्या तू कहने से मिलता अपनापन
अब अगर, बात तू कहने वाले की हो तो अक्सर हम उन लोगों से खुलकर और सहज होकर बात करते हैं जिनके साथ कंफर्टेबल होते हैं। यहां हमें किसी भी बात की चिंता नहीं होती है कि कैसे बात करना, कौनसा शब्द कहना चाहिए और नहीं। तभी बिंदास होकर तू कहकर भी बात कर पाते हैं। सम्मान करने के बारे में सोचना ही नहीं पड़ता। और, जहां बिना-सोचे समझने बात की जाती है वह रिश्ते बहुत ही अनमोल माने जाते हैं। तभी, शायद पीएम को इस बात का अफसास है।

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