रूस पर गाज गिरने से पहले ही भारत ने कर लिया इंतजाम… यह बदलाव क्‍या दे रहा है संकेत?

नई दिल्‍ली:

अमेरिका की ओर से रूस पर नए प्रतिबंध लगाए जाने की खबरें हैं। इससे भारतीय तेल कंपनियों में हड़कंप मच गया है। इन प्रतिबंधों से रूसी तेल की सप्‍लाई में बड़ी रुकावट आ सकती है। हालांकि, दिसंबर में भारत के कच्चे तेल आयात के आंकड़े संकेत देते हैं कि इसके लिए पहले से ही इंतजाम कर लिया गया है। इस दौरान भारत के कच्चे तेल आयात में रूस, अमेरिका, वेनेजुएला और ब्राजील की हिस्सेदारी 17% कम हुई है। इस कमी की भरपाई इराक, यूएई, कुवैत, अंगोला और नाइजीरिया ने की। इन देशों की बाजार हिस्सेदारी में लगभग 19% की बढ़ोतरी हुई। यह जानकारी एनर्जी कार्गो ट्रैकर वोर्टेक्सा से मिली है। रूस दिसंबर में 33.4% हिस्सेदारी के साथ भारत का टॉप सप्‍लायर बना रहा। यह और बात है कि नवंबर में यह हिस्सेदारी 41.3% थी।

अमे‍र‍िका ग‍िराने वाला है रूस पर गाज
अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट के एक दस्तावेज के अनुसार, वह गजप्रोम नेफ्ट और सर्गुटनेफ्टेगाज नाम की दो प्रमुख तेल कंपनियों और जहाज बीमा प्रदाताओं इंगोस्त्राख और अल्फास्त्राखोवानी पर प्रतिबंध लगाएगा। ये कंपनियां रूस के सबसे बड़े तेल खरीदार भारत को सप्‍लाई करने वाले ज्‍यादातर जहाजों का बीमा करती हैं। 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस ने यूरोप के बजाय एशिया को तेल और ईंधन की सप्‍लाई को मोड़ दिया है।

ये प्रतिबंध रूस के तेल उद्योग पर अब तक के सबसे कड़े प्रतिबंधों में से एक होंगे। इस दस्तावेज में 180 जहाजों, कई व्यापारियों, दो प्रमुख तेल कंपनियों और कुछ शीर्ष रूसी तेल अधिकारियों के नाम शामिल हैं। न्‍यूज एजेंसी रॉयटर्स ने रूसी तेल व्यापार के चार सूत्रों और तीन भारतीय रिफाइनरी सूत्रों के हवाले से बताया कि यूक्रेन युद्ध के कारण रूस पर लगाए गए ये प्रतिबंध रूस के प्रमुख खरीदार भारत और चीन को होने वाले तेल निर्यात में भारी व्यवधान पैदा करेंगे।

इराक, यूएई, कुवैत और अंगोला की बढ़ी ह‍िस्‍सेदारी
दूसरी तरफ वोर्टेक्सा के विश्लेषक रोहित राठौड़ के हवाले से इकनॉमिक टाइम्‍स की एक रिपोर्ट में बताया गया कि रूसी कच्चे तेल के निर्यात में कुल मिलाकर गिरावट आई है। इसका मुख्य कारण उसकी घरेलू रिफाइनिंग मांग में बढ़ोतरी है। इस वजह से भारत को कम तेल भेजा गया। अमेरिका, वेनेजुएला और ब्राजील से कम तेल आयात का कारण अमेरिकी रिफाइनरियों की बढ़ी हुई मांग है। अमेरिकी कच्चा तेल यूरोप भी गया। इसलिए भारतीय रिफाइनरों ने इराक, यूएई, कुवैत और अंगोला से तेल खरीदा। कुल मिलाकर, दिसंबर में रूस का कच्चा तेल निर्यात लगभग 7% घटकर 4.43 mbd रह गया। चीन ने दिसंबर में 1.3 mbd रूसी कच्चा तेल प्राप्त किया, जो नवंबर के स्तर के लगभग बराबर है। यूरोपीय आयात 1.22 mbd से घटकर 1.18 mbd हो गया।

भारतीय बाजार में सप्लाई में बदलाव का सबसे ज्यादा फायदा इराक को हुआ। इसकी हिस्सेदारी 16.3% से बढ़कर 23.2% हो गई। यूएई का हिस्‍सा 7.9% से बढ़कर 10.9% हो गया। कुवैत की हिस्सेदारी 1.5% से बढ़कर 4% हो गई। अफ्रीकी देशों अंगोला और नाइजीरिया को भी फायदा हुआ। अंगोला की हिस्सेदारी 0.8% से बढ़कर 5% हो गई। वहीं, नाइजीरिया का हिस्‍सा 2.4% से बढ़कर 4.6% हो गया।

रूस अब भी भारत का सबसे बड़ा तेल सप्‍लायर बना हुआ है। लेकिन, उसकी सप्‍लाई में कमी आई है। इस कमी की भरपाई अन्य देशों ने की है। इससे पता चलता है कि भारत अपने तेल आयात के स्रोतों में विविधता ला रहा है। यह भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। आने वाले समय में भारत के तेल आयात के स्रोतों में और बदलाव देखने को मिल सकते हैं। यह वैश्विक तेल बाजार की गतिशीलता पर निर्भर करेगा।

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