कुमार विश्‍वास और योगेंद्र यादव को केजरीवाल का घर-वापसी का ऑफर कितना गंभीर?

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 5 फरवरी को वोटिंग होनी है. चुनाव प्रचार अपने पूरे शबाब पर है.इस बीच राजनीतिक दलों को खूब नए यार मिल रहे हैं और पुराने दोस्त बिछड़ भी रहे हैं. पर राजनीति हो या प्रोफेशनल लाइफ के शुरूआती दोस्त हमेशा एक टीस की तरह याद आते हैं. उसमें भी जहां दोस्ती -दुश्मनी में बदल चुकी होती है वहां मिलन का रोमांच कुछ ज्यादा ही होता है. ऐसी ही कुछ कहानी है अरविंद केजरीवाल और उनसे बिछड़े दोस्तों की. एक टीवी चैनल से इंटरव्यू के दौरान दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल यह कहते हुए सुने गए कि, पुराने दोस्त जो पार्टी छोड़कर चले गए उनका पार्टी में स्वागत है. दरअसल अरविंद केजरीवाल से सवाल किया गया कि कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, किरण बेदी और योगेंद्र यादव में दोस्त कौन हैं? इस सवाल पर उन्होंने कहा, सभी मेरे दोस्त हैं. सभी के लिए मेरे दरवाजे खुले हैं. जाहिर है कि उनके इस जवाब पर कई तरह के सवाल उठेंगे? कुछ लोग ये भी कहेंगे कि यह तो पत्रकार ने जबरन मुंह से निकलवाई हुई बात है. पर राजनीति इन बातों का ही तो खेल है.गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में आंबेडकर के बारे में जो कुछ नहीं कहा उसके लिए भी बात का बतंगड़ बन गया. जब देश के गृह मंत्री की बात को तोड़ मरोड़ कर राजनीति हो सकती है तो विपक्ष के नेताओं की तो होगी ही.

क्या केवल झेंप मिटाने के लिए कहा?
पहली बात तो सीधे यही समझ में आती है कि यह बात अरविंद केजरीवाल ने यूं ही स्क्रीन पर अपनी झेंप मिटाने के लिए कह दी होगी. क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने कभी भी उन लोगों की चर्चा नहीं की जो लोग उन्हें छोड़कर चले गए या जिन लोगों को उन्होंने खुद बाहर का रास्ता दिखा दिया. उसमें भी कुमार विश्वास और प्रशांत भूषण जैसों को तो वह शायद ही कभी बात भी करें. कुमार विश्वास ने तो खुलकर उनके खिलाफ मोर्चा ही खोला हुआ है. सोशल मीडिया से लेकर सार्वजनिक कार्यक्रमों में कुमार विश्वास उनके खिलाफ लगातार बोलते रहे हैं. कुमार विश्वास ने अरविंद केजरीवाल का बहुत अपमानजनक छद्म नामकरण किया हुआ है. कुछ दिनों पहले तक वो उस छद्म नाम से ही केजरीवाल पर टिप्पणियां किया करते थे. हालांकि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है. पीएम मोदी को भला बुरा कहने वाले कितने ही लोग आज बीजेपी में इंजॉय कर रहे हैं.

क्या आम आदमी पार्टी में कद वाले चेहरों की कमी हो गई है?
आम आदमी पार्टी में लगातार मजबूत लोगों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया. आज स्थिति यह है कि पार्टी में गिने चुने चेहरे ही रह गए हैं. पिछले साल ही अरविद केजरीवाल का साथ छोड़ने वाले करीबी लोगों में स्वाति मालिवाल, कैलाश गहलोत, राजकुमार आनंद,राजेंद्र पाल गौतम आदि जैसे दर्जनों लोग हैं. पर जो लोग गए वो दिल्ली के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं पर उनकी भरपाई कांग्रेस और बीजेपी जैसी पार्टियों से आए लोगों के जरिए हो गया. पर राष्ट्रीय स्तर पर उपस्थिति के लिए केजरीवाल को कुछ भरोसे के लोगों की जरूरत है. उन्हें ऐसे लोगों की जरूरत है जिनका राजनीतिक कद भी ऊंचा हो. ऐसे लोग साथ न होने के चलते ऐसा लगता है कि देश की सबसे ब़ड़ी कुर्सी पर बैठने की अरविंद केजरीवाल की तमन्ना धरी की धरी रह जाएगी. यही कारण है कि नैशनल फेम रखने वाले, बेहतर संगठनकर्ता और देश की सुप्रीम कोर्ट में धमक रखने वाले कुमार विश्वास , प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को वापस लाने की बात आम आदमी पार्टी सोच सकती है.

क्या अरविंद केजरीवाल इन बड़े नामों को दिल खोलकर तवज्जो दे सकेंगे?
पर दिक्कत यह है कि आम आदमी आज पूर्ण केंद्रीकृत पार्टी में बदल चुकी है. यहां हर फैसले अरविंद केजरीवाल ही लेते हैं. जिन लोगों ने पार्टी छोड़ी उनकी माने तो पार्टी में अरविंद केजरीवाल की तूती बोलती है. हाल ही में अरविंद केजरीवाल से दूरी बना चुकीं स्वाति मालीवाल ने भी ऐसे कई बयान दिए हैं जो साबित करते हैं कि अरविंद केजरीवाल के बिना पार्टी में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है. ऐसी स्थिति में योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास और प्रशांत भूषण जैसे लोगों को पार्टी कैसे एडजेस्ट कर सकेगी. इसके साथ ही इन लोगों का भी व्यक्तित्व भी ऐसा नहीं है कि ये लोग किसी की हां में हां मिलाकर पार्टी में सर्वाइव कर सकें. यही कारण है कि इन तीनों लोगों का राजनीतिक वनवास आज तकक खत्म नहीं हुआ है. योगेंद्र यादव ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को सफल बनाने का श्रेय जाता है पर वो कांग्रेस में शामिल नहीं हो सके. इसी तरह कुमार विश्वास बीजेपी नहीं जॉइन कर सके. प्रशांत भूषण का भी आम आदमी पार्टी छोड़ने के बाद पुनर्वास नहीं हो सका.

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