लालू की सियासी प्लानिंग में फिट बैठे पशुपति पारस! कुशवाहा और दलित वोटों को लेकर तनाव में नीतीश

पटना

राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति पारस के महागठबंधन में जाने के अटकलों के बीच भले एनडीए नेताओं को मलाल नहीं रहा। लालू यादव से पशुपति पारस की हुईं मुलाकात और ये कहना कि वे महागठबंधन में शामिल होंगे, उसका भी कोई विशेष असर नहीं हुआ। राजनीतिक महकमे में फूंक चुके कारतूस से उनकी तुलना की जा रही थी। जिस मुद्दे को लेकर पशुपति पारस चले हैं। वह मुद्दा एनडीए के लिए कहीं घातक न हो जाए। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं और मोहरे बिठाना वो जानते हैं।

दफादार- चौकीदार मामला
दलित सेना और बिहार राज्य दफादार चौकीदार पंचायत के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेताओं के साथ धरना पर बैठना एक राजनीतिक अस्त्र साबित हो सकता है। ऐसा इसलिए कि ये मुद्दा सीधे- सीधे जीवन से जुड़ा है। जहां पूरा परिवार प्रभावित हो रहा है। पशुपति पारस ने जो आंकड़ा दिया है कि 90 प्रतिशत चौकीदार दफादार पद पर दलित कार्य कर रहे हैं। और इसमें भी ज्यादा संख्या पासवान जाति के हैं। एक विज्ञापन से प्रभावित यह समाज आज एनडीए सरकार के विरुद्ध धरना पर बैठा हुआ है।

धरना स्थल से उठे सवाल
धरना स्थल पर कई तरह के सवाल उठाए गए। जिसमें ये कहा गया कि नीतीश जी आश्वासन दे कर छीन रहे हैं। इस समस्या के चिराग ही जड़ हैं। पासवान के साथ इस सरकार ने छलावा किया है। चिराग अपने को दलित मानते नहीं हैं। ये दलित के नेता नहीं है। आमरण अनशन तुड़वा कर चिराग ने पासवान समाज को धोखा दिया। 2025 के चुनाव में अपनी ताकत दिखाएंगे। अंग्रेज के जमाने से अधिकार मिला हुआ था। इसे जनरल कैसे कर देंगे?

चिराग पासवान की चुप्पी
दफादार चौकीदार मामले में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की चुप्पी कहीं अभिशाप न बन जाए। दफादार चौकीदार का पद पासवान जाति की आर्थिक रीढ़ है। चिराग इस मसले पर चुप्पी साधे रहते हैं तो जिस छः से सात प्रतिशत की राजनीति करते हैं। वह पासवान दुसाध जाति इनके विरुद्ध चली गई तो उनका बना बनाया खेल बिगड़ सकता है। गत विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी से मात्र एक विधायक ने जीत दर्ज की थी। वह भी बाद में जेडीयू की सदस्यता ग्रहण कर ली। ऐसे में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ मिलकर पशुपति पारस कोई गुल खिला जाएं तो यह असंभव भी नहीं।

दलित महादलित मुद्दा भी उठा
पशुपति पारस के विरोध में नीतीश कुमार हैं। इस मकसद के साथ उन्होंने नीतीश कुमार को पासवान का दुश्मन बना डाला। दलित महादलित की चर्चा छेड़ते ही पशुपति पारस ने याद दिलाया कि यही नीतीश कुमार ने पासवान को अन्य दलित से अलग कर दिया था। ये तो रामविलास पासवान की जिद्द के बाद यह विभाजन खत्म हुआ और फिर दलित एक साथ मिल कर सत्ता की ताकत बने।

माजरा क्या है ?
दरअसल ये राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का दूसरी बड़ी चाल है। कुशवाहा जाति के बाद अब दलित वोट में सेंधमारी की तैयारी है। एनडीए अभी छह प्रतिशत चिराग और ढेड़ प्रतिशत मांझी यानी कुल साढ़े सात प्रतिशत की राजनीति करती है। शेष 12 प्रतिशत की राजनीति में नीतीश कुमार, भाजपा और राजद करते हैं ऐसे में पासवान जाति के साथ खड़ा हो कर दलित बाजी को अपने साथ महागठबंधन ले जाए तो यह अविश्वसनीय भी नहीं।

दलित वोटों का यू टर्न
वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने बताया कि दफादार चौकीदार मामले को ले कर उड़ चले पशुपति पारस महागठबंधन के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। एक तरह से ये पासवान जाति के रोजगार पर हमला है। बीपीएससी में ऐसे ही सरकार बैकफुट पर है और अब ये मामला एनडीए के लिए कम नुकसानदायक नहीं। अगर पासवान जाति नीतीश कुमार को विरोधी मान लेती है। इसे रोटी से जोड़ती है तो नीतीश कुमार को व्यक्तिगत नुकसान नहीं। एनडीए का नुकसान कर सकती है। चिराग पासवान ने ये साबित भी किया है कि जीते भले नहीं, पर टारगेट कर लिया तो हरा जरूर देंगे। और लालू प्रसाद यादव को चाहिए क्या?

About bheldn

Check Also

‘अमित शाह मेरा भविष्य तय नहीं कर सकते…’ उद्धव ठाकरे ने गृह मंत्री पर किया जोरदार हमला

मुंबई, शिवसेना यूबीटी के मुखिया उद्धव ठाकरे ने गुरुवार को अंधेरी के छत्रपति शिवाजी महाराज …