पटना
केंद्रीय मंत्री और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के संरक्षक जीतन राम मांझी की नाराजगी समय-समय पर सामने आती रही है। कई दरवाजे घूमने के बाद फिलवक्त वे एनडीए में हैं। पर, कई बार उनका गुस्सा ऐसा ऐसा होता है कि एनडीए के घटक दल भी असहज हो जाते हैं। बिहार की राजनीति में रहते वे नीतीश कुमार से नाराज होते हैं, तो केंद्र की पॉलिटिक्स में जाने के बाद वे एनडीए से फरियाने की बात कहने में संकोच नहीं करते। उनकी पीड़ा क्या है, यह जानने की इस रिपोर्ट में हम कोशिश करेंगे…
झारखंड में ‘हम’ को सीट न मिलने से नाराजगी?
जीतन राम मांझी की अभी की नाराजगी को समझने की कोशिश करें तो एक बात साफ है कि उन्हें झारखंड विधानसभा के बाद दिल्ली में विधानसभा की सीट न मिलना है। उनकी जितनी पीड़ा सीट न मिलने से है, उससे अधिक इस बात से है कि पीएम मोदी के ‘हनुमान’ चिराग पासवान की पार्टी लोजपा-आर को कैसे झारखंड और दिल्ली में एक-एक सीट मिल गई। इसे वे अपनी औकात को कम आंकने का नतीजा मानते हैं। वे चिराग पासवान से अपने को किसी भी मामले में कम नहीं समझते। शायद उन्हें लगता है कि चिराग पासवान के पास 5 सांसद हैं तो उनके पास बिहार विधानमंडल पांच सदस्यों के अलावा एक सांसद भी है।
बिहार में दो दलित नेता हैं
बिहार में दलित नेता की पहचान के साथ फिलवक्त दो लोग हैं और दोनों एनडीए का हिस्सा हैं। यह अलग बात है कि दोनों दलित नेता तो हैं, लेकिन दलितों के नेता नहीं बन पाए हैं। इनमें एक दलित नेता जीतन राम मांझी की मुसहर समुदाय पर पकड़ है, पर इसकी आबादी बहुत कम है। बिहार में मुसहर समाज की जनसंख्या 40 लाख है। यह कुल जनसंख्या का तीन प्रतिशत है। इसमें भी मांझी की पार्टी को दो प्रतिशत से भी कम वोट मिलते हैं।
दूसरे नेता दलित नेता हैं लोजपा- आर के चिराग पासवान। चिराग की पकड़ पासवान समाज पर है। बिहार में पासवान की आबादी 69 लाख 43 हजार है। यह कुल आबादी का 5.311 प्रतिशत है। चिराग पासवान अपने वोटरों पर पूरी पकड़ बनाए हुए हैं। उनकी पार्टी को हर चुनाव में तकरीबन छह प्रतिशत वोट मिलते हैं।
चिराग से जीतन राम मांझी की खुन्नस क्यों?
चिराग से जीतन राम मांझी की खुन्नस नई नहीं है। दोनों के बीच टकराव तब भी हुआ था, जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (SC) के आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर बनाने की राय दी थी। तब चिराग पासवान सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने तो ऐसा तेवर अपना लिया था कि एनडीए में टूट की आशंका जाहिर की जाने लगी थी। भाजपा विरोधियों के सुर में सुर वे मिलाने लगे थे। तब जीतन राम मांझी ने उनके स्टैंड का खुल कर विरोध किया था।
मांझी की चिराग से नाराजगी का दूसरा मौका तब आया, जब उनकी बहू दीपा मांझी उपचुनाव लड़ रही थीं। एनडीए के दूसरे नेता तो उनके प्रचार में गए, लेकिन चिराग ने दूरी बना ली। यह तीसरा मौका है, जब चिराग को एनडीए में मिल रही अधिक तवज्जो से जीतन राम मांझी नाराज हुए हैं।
बिहार में दलितों की आबादी कितनी?
बिहार में दलितों की आबादी 19 प्रतिशत है। जीतन राम मांझी और चिराग पासवान दलित नेता होने का दावा करते हैं। पर, आश्चर्यजनक ढंग से दोनों की पार्टियां 7-8 प्रतिशत से अधिक वोट कभी ला पातीं। मांझी की पार्टी को करीब दो प्रतिशत वोट मिलते हैं, जबकि चिराग पासवान की पार्टी छह प्रतिशत से कम ही वोट पाती है।