भोपाल ,
मध्य प्रदेश में बेरोजगार युवाओं की संख्या लाखों में है, और हर साल सरकार खुद इसकी पुष्टि आंकड़ों के जरिए करती रही है. लेकिन इन बेरोजगारों से सरकारी भर्ती परीक्षाएं आयोजित करने वाली संस्था, मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल (जिसे पहले व्यापमं के नाम से जाना जाता था), ने पिछले 8 सालों में 500 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई कर ली है. यह खुलासा सरकारी आंकड़ों से हुआ है. इतना ही नहीं, इस कमाई का एक बड़ा हिस्सा सरकार ने अपनी मुफ्त योजनाओं को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया है. बेरोजगार युवा अब सवाल उठा रहे हैं कि जब उनकी जेब से ही परीक्षा शुल्क लिया जा रहा है, तो सरकार उनके लिए राहत क्यों नहीं दे रही? युवाओं की मांग है कि या तो परीक्षा शुल्क माफ किया जाए या वन टाइम एग्जाम फीस की व्यवस्था लागू की जाए.
सरकारी आंकड़ों में खुलासा: 500 करोड़ से ज्यादा की कमाई
धार जिले की सरदारपुर विधानसभा से विधायक प्रताप ग्रेवाल ने विधानसभा के मौजूदा सत्र में कर्मचारी चयन मंडल की परीक्षा फीस और फिक्स्ड डिपॉजिट को लेकर सवाल उठाया था. उन्होंने पूछा कि 2016 से 2024 तक कितने परीक्षार्थियों ने सरकारी भर्ती परीक्षाएं दीं और इनसे कितनी फीस ली गई. जवाब में सरकार ने बताया कि कर्मचारी चयन मंडल ने 2016 से 2024 तक 112 परीक्षाएं आयोजित कीं, जिनमें 105.8 लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया. इन अभ्यर्थियों से परीक्षा शुल्क के रूप में मंडल को 530 करोड़ रुपए की आय हुई.
इसके अलावा, सरकार ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया. विधायक प्रताप ग्रेवाल ने पूछा था कि कर्मचारी चयन मंडल के फिक्स्ड डिपॉजिट का स्टेटस क्या है और क्या भर्ती परीक्षाएं निशुल्क आयोजित की जाएंगी? जवाब में सरकार ने बताया कि प्रतिभाशाली विद्यार्थी प्रोत्साहन योजना के लिए पिछले दो सालों में 297 करोड़ रुपए लोक शिक्षण संचालनालय को दिए गए, जिससे मंडल की जमा राशि में कमी आई है. सरकार ने यह भी साफ कर दिया कि वर्तमान में भर्ती परीक्षाओं को निशुल्क करने का कोई प्रस्ताव नहीं है, क्योंकि मंडल एक स्वपोषित संस्था है और इसका खर्च परीक्षा शुल्क से ही पूरा होता है.
बेरोजगारों की जेब से सरकारी योजनाओं का खर्च
यह खुलासा बेरोजगार युवाओं के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा है. कर्मचारी चयन मंडल ने बेरोजगारों से ली गई फीस से न केवल अपनी संस्था चलाई, बल्कि 297 करोड़ रुपए सरकार की स्कूटी और लैपटॉप जैसी योजनाओं के लिए ट्रांसफर कर दिए. इसका मतलब है कि बेरोजगार युवा न केवल अपनी परीक्षा के लिए शुल्क दे रहे हैं, बल्कि सरकार की मुफ्त योजनाओं को चलाने का खर्च भी उनकी जेब से ही निकाला जा रहा है.
बेरोजगारों का दर्द: सीमित संसाधनों में भारी बोझ
भोपाल में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बेरोजगार युवाओं ने अपनी परेशानियां साझा कीं. राजगढ़ से भोपाल आई स्मिता ने बताया, “पहले से ही बेरोजगार हूं, कमाई का इकलौता जरिया घर से मिलने वाली पॉकेटमनी है. बार-बार परीक्षा शुल्क देना बड़ी समस्या बन जाता है. या तो फीस माफ हो, या वन टाइम एग्जाम फीस की व्यवस्था हो.”
बैतूल से आए आयुष ने कहा, “मुझे हर महीने घर से 5 हजार रुपए मिलते हैं, जिसमें रहना, खाना, लाइब्रेरी फीस और किताबों का खर्च शामिल है. एग्जाम फीस का बोझ बहुत ज्यादा लगता है. कई बार पैसे नहीं बचते, तो दोस्तों से उधार लेना पड़ता है. दोस्त जन्मदिन की पार्टी मांग लें, तो उसे भी ठीक से सेलिब्रेट करने के पैसे नहीं होते.”
पन्ना की मुस्कान ने बताया, “महीने के खर्च के लिए सीमित पॉकेटमनी मिलती है. बार-बार घर से ज्यादा पैसे मांगना अजीब लगता है. एग्जाम फीस तो बार-बार देना पड़ता है. कई बार छुट्टियों में घर इसलिए नहीं जाती, ताकि पैसे ज्यादा खर्च न हों.”
शिवराज का वादा अधूरा
साल 2023 में विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बेरोजगार युवाओं से वादा किया था कि भर्ती परीक्षाओं का बोझ कम करने के लिए वन टाइम एग्जाम फीस की व्यवस्था की जाएगी. लेकिन डेढ़ साल बाद भी यह वादा पूरा नहीं हुआ है. बेरोजगार युवा अब इस वादे को लेकर सवाल उठा रहे हैं.
विपक्ष का सरकार पर हमला
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए ट्वीट किया, “क्या अब प्रदेश के बेरोजगार युवा भाजपा सरकार की ‘ठगनीति’ का अगला शिकार हैं? ESB ने खुद बताया कि सरकार की स्कूटी और लैपटॉप योजना के लिए उन्होंने 297 करोड़ रुपए दिए, वो भी युवाओं की परीक्षा फीस से. शिवराज सरकार ने 2023 में ‘वन टाइम एग्जाम फीस’ का ऐलान किया था, फिर मोहन सरकार हर परीक्षा के लिए अलग-अलग फीस क्यों वसूल रही है? क्या 4 लाख करोड़ का कर्ज भी सरकार को कम पड़ रहा है, जो युवाओं की फीस से योजनाएं चला रही है? युवाओं के साथ इस बेरुखी पर सरकार को जवाब देना होगा.”