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इंसानों ने मंगल ग्रह पर भी फैलाई गंदगी, सतह पर 7119 KG कचरा मिला

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ह्यूस्टन,

भारत सरकार के शहरी मामलों के मंत्रालय के डेटा के मुताबिक एक इंसान अमूमन हर दिन आधा किलोग्राम कचरा निकालता है. यानी सालभर में करीब 180 किलोग्राम. अगर परिवार में 5 लोगों का है तो साल में 900 किलोग्राम. लेकिन इंसानों ने मंगल ग्रह (Mars) पर पिछले 50 सालों में 7119 किलोग्राम कचरा छोड़ा है. घर का कचरा तो साफ कर देते हैं लोग लेकिन मंगल ग्रह का कचरा कौन साफ करेगा.

यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर आउटर स्पेस अफेयर्स (UNOOSA) के मुताबिक दुनिया भर के 18 देशों ने इंसानों द्वारा निर्मित 18 ऑब्जेक्ट्स मंगल ग्रह पर भेजे हैं. ये सभी 18 वस्तुएं 14 अलग-अलग मिशन में भेजे गए हैं. इनमें से कई मिशन तो अब भी काम कर रहे हैं. दशकों से मंगल ग्रह की खोजबीन कर रहे हैं. लेकिन इन वैज्ञानिक अभियानों में लाल ग्रह की सतह पर बहुत सारा कचरा छोड़ चुके हैं इंसान.

इन कचरों में इतनी प्रकार की वस्तुएं हैं कि आप जानकर हैरान हो जाएंगे. बड़े धातु के टुकड़े. जालियां. विशेष प्रकार के कपड़े. चमकते हुए कांच के टुकड़े. कवर. फिलामेंट. स्प्रिंग, नट-बोल्ट आदि. ऐसा नहीं है कि वैज्ञानिकों ने पहली बार मंगल ग्रह पर कचरा खोजा है. हर मिशन के बाद वो चिंता जरूर जताते हैं कि वहां पर कचरा फैल रहा है. अब लोग सोच रहे हैं कि मंगल पर कोई रहता तो है नहीं. फिर ये कचरा कहां से आता है?

मंगल पर कचरा फैलने के तीन प्रमुख कारण
मंगल ग्रह पर कचरे के तीन प्रमुख कारण हैं- फेंके गए या खुद से बेकार हुए हार्डवेयर, बेकार स्पेसक्राफ्ट या फिर वो अंतरिक्षयान जो चक्कर लगाते-लगाते किसी वजह से मंगल ग्रह से जाकर टकरा गया. मंगल ग्रह पर जाने वाले हर मिशन के ऊपर एक मॉड्यूल होता है, जो उसे वहां के वातावरण में उतरते समय सुरक्षित रखता है. ये मॉड्यूल भी तो कचरा ही बन जाता है. इसमें हीट शील्ड, पैराशूट और लैंडिंग क्राफ्ट होता है. जो अंतरिक्षयान को मंगल के वायुमंडल से पार कराते हैं. तीनों हिस्से हर मिशन के बाद वहीं छूट जाते हैं.

सभी रोवर जो जा रहे हैं वो कचरा ही छोड़ रहे हैं
जब भी ये कचरे मंगल की सतह पर गिरते हैं. वो तेजी से टकराव की वजह से कई टुकड़ों में टूट जाते हैं. ये सतह पर चारों तरफ बिखर जाते हैं. ठीक यही हाल नासा द्वारा भेजे गए मार्स पर्सिवरेंस रोवर (Mars Perseverance Rover) के समय हुआ था. उसका हीट शील्ड, पैराशूट और लैंडिंग मॉड्यूल अलग-अलग जगहों पर गिरकर बिखर गए थे. टूटे भी. इसके अलावा कई छोटे टुकड़े भी फैल जाते हैं. सालों से फैल ही रहे हैं. जैसे नेटिंग मटेरियल. यानी खास तरह से बनी जालियां.

 

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