नई दिल्ली:
भारत की ओर से ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के साथ सहमति हासिल करने में किसी किसी तीसरे देश की भूमिका नहीं थी. नीदरलैंड्स में एक इंटरव्यू के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि अमेरिका और बाकी दूसरे देश भारत और पाकिस्तान के साथ संपर्क में थे, लेकिन सैन्य ऑपरेशन को रोकने की सहमति दोनों देशों के बीच सीधे तौर पर बनी थी । भारत ने शांति बनाने की प्रक्रिया की कोशिश कर रहे देशों से साफ कहा था कि अगर पाकिस्तान को फायरिंग रोकना चाहते हैं तो हमें बताना होगा, और ऐसा ही हुआ। जयशंकर ने ये भी कहा कि अमेरिका अकेला बात नहीं कर रहा था, दूसरे भी कुछ देश थे। इस इंटरव्यू में जयशंकर ने कई अहम सवालों के भी जवाब दिए।
अमेरिका के रोल पर क्या बोले विदेश मंत्री?
विदेश मंत्री ने कहा कि जब भारत पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष कैसे हुआ, ये समझना जरूरी है। संघर्ष हुआ था। ये शुरू हुआ क्योंकि अमानवीय आतंकी हमले में 26 टूरिस्टों की उनके परिवार के सामने बर्बर तरीके से हत्या की गई, इस दौरान उनसे उनका धर्म भी पूछा गया। ये टूरिज्म को नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया, जो कि कश्मीर की इकोनॉमी की रीढ़ है। इसके साथ साथ मकसद धार्मिक सद्भाव को बिगाड़ना भी था। जानबूझकर इसमें धर्म के तत्व को डाला गया । पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर गहरे धार्मिक दृष्टिकोण से प्रेरित हैं, ऐसे में जिस तरह के विचार वहां से जाहिर किए गए और जिस तरह का व्यवहार दिखाया गया, उसमें एक संबंध तो था।
जयशंकर ने कहा कि हमले के जिम्मेदार आतंकियों की पहचान हो गई थी । टीआरएफ नाम के एक आतंकी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी ली थी और ये संगठन भारत के हमारे राडार पर कई सालों से है। साल 2023 से लेकर 2025 तक हम यूएन की 1267 सैंक्शंस कमेटी का ध्यान इसकी ओर आकर्षित कराते रहे हैं। इस संगठन का लश्कर से भी संबंध है और 22 अप्रैल के हमले से पहले ही हम इसके बारे में यूएन को जानकारी दे चुके थे। जयशंकर ने कहा कि भारत को इन आतंकी संगठनों के कमांड सेंटर्स के बारे में जानकारी थी। जयशंकर ने यूएन की एक लिस्ट भी दिखाई और कहा कि इसमें उन जगहों का नाम है, जहां से आतंकी ऑपरेट करते हैं। यही वो जगहें जिन पर हमने 7 मई को एक्शन किया।
अमेरिका अकेला देश नहीं था संपर्क में
दोनों देशों की सेनाओं के संपर्क पर पूछे गए सवाल को लेकर जयशंकर ने कहा कि हमारे पास एक हॉटलाइन का मैकेनिज्म है। उसी का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तानी पक्ष ने संदेश दिया कि वो फायरिंग रोकने के लिए सहमत हैं और हमने उसके अनुसार ही रिस्पॉन्ड किया। ये पूछे जाने पर कि इस सब में अमेरिका कहां था, इस पर विदेश मंत्री ने कहा अमेरिका तो अमेरिका में ही था। इस पर विदेश मंत्री ने कहा कि विदेश मंत्री रूबियो ने उनसे और राष्ट्रपति वैंस ने पीएम मोदी से बात की थी। वो हमसें और पाकिस्तानी पक्ष, दोनों से बात कर रहे थे।
लेकिन इसमें गल्फ के देशों के अलावा दूसरे देश भी थे और अमेरिका इस प्रक्रिया में अकेला नहीं था। जब दो देशों में संघर्ष होता है तो कई देश इस तरह की आउटरीच करते हैं। लेकिन फायरिंग रोकने को लेकर नेगोशिएशन सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच ही हुई थी। विदेश मंत्री ने कहा कि हमने सब से कहा था कि अगर पाकिस्तानी फायरिंग रोकना चाहते हैं तो उन्हें हमें बताना होगा। उनके जनरल को हमारे जनरल को फोन कर ये बताना होगा, और ऐसा ही हुआ।
द्विपक्षीय तरीके से ही बातचीत होगी
कश्मीर में ट्रंप की मध्यस्थता के सवाल पर जयशंकर ने कहा कि पाकिस्तान के साथ मुश्किल संबंधों का एक जटिल इतिहास रहा है। 1947 के वक्त के पाकिस्तान ने प्रॉक्सी लोगों को कश्मीर भेजा और भेजा और उन्हें नॉन स्टेट एक्टर बताया। पाकिस्तानी पक्ष ने कट्टरपंथी धार्मिक एजेंडा हमेशा ही चलाया है। लेकिन भारत और पाकिस्तान इन मु्द्दों पर द्विपक्षीय तरीके से ही चर्चा करेंगे। हम इस बात को लेकर साफ है कि आतंकवाद को खत्म करने को लेकर हम उनसे बात करने को राजी हैं । । कश्मीर भारत का हिस्सा है और कोई देश उस क्षेत्र को लेकर नेगोशिएट नहीं करता जो उसका हिस्सा है।
हालांकि एक हिस्सा पाकिस्तान ने 1947-28 से अवैध तौर पर कब्जाया हुआ है। हम उनसे बात करने को तैयार हैं अगर वो इस पर अवैध कब्जा छोड़ दें। जयशंकर ने ट्रंप की मध्यस्थता को खारिज करते हुए कहा कि ये द्विपक्षीय मामला है । जयशंकर ने कहा कि भारत के पास पाकिस्तान और चीन जैसे मुश्किल पड़ोसी हैं और हम लगातार आतंकवाद से पीड़ितरहे हैं। ऐसे में हमें जिन सच्चाइयों से बीते 8 दशकों से जूझ रहे हैं जबकि यूरोप को इस रियलिटी चेक का अब सामना करना पड़ रहा है।
‘ऑपरेशन सिंदूरजारी है’
इस सवाल के जवाब में कि क्या अब दोनों देशों के बीच कैसे हालात हैं और क्या ऑपरेशन सिंदूर जारी है, इस पर जयशंकर ने कहा कि आतंकियों के हमले के बाद ये स्वाभाविक था कि भारत प्रतिक्रिया देगा । क्योंकि ऐसे में रिस्पॉन्स ना देना असंभव होता। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि ये पहले की सरकार की नीति ना रही हो लेकिन ये उनकी सरकार की नीति है कि अगर इस तरह का अटैक होगा तो उसका रिस्पॉंस भी होगा इस रिस्पॉन्स में 9 आतंकी संगठनों पर एक्शन किया गया। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने हम पर फायरिंग का विकल्प चुना और हमने भी प्रतिक्रिया दी। ये चार दिन तक चलता रहा। 10 मई को निर्णायक दिन था।
पाकिस्तान के अटैक का जवाब देते हुए , हमने उनके 8 एरबेसों को एक्शन के बाद बेकार और नॉन ऑपरेशनल कर दिया। इसके बाद पाकिस्तानी पक्ष मजबूर हो गया फायरिंग रोकने के लिए । मौजूदा हालात में कोई फायरिंग नहीं है। सेनाओं की री- पोजिशनिंग हो रही है। ऑपरेशन जारी इसलिए है क्योंकि ये एक मैसेज है कि अगर ऐसी घटनाएं होंगी तो हम आतंकियों पर एक्शन करेंगे। अगर वो पाकिस्तान में हैं तो हम वहीं उन पर एक्शन करेंगे जहां वो हैं ।
अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को लेकर जयशंकर ने क्या कहा ?
इस सवाल के जवाब में कि क्या ईयू और भारत असुरक्षा की वजह से करीब आना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उथलपुथल के दौर में सबको साथ आने की जरूरत है। भारत की स्वतंत्र विदेश नीति रही है। यूरोप साझेदारों की संस्कृति के ज्यादा करीब रहा है लेकिन आजादी के बाद भारत गठबंधन संस्कृति से थोड़ा दूर रहा है। हम कई विकल्पों और कई संबंधों के साथ आगे बढ़े हैं। हम जानते हैं कि हमें अपने हितों के लिए कब खड़ा होना है। आजकल के मौजूदा हालात में यूरोप भी अपने हितों के लिए ऐसे ही नीति को खुद के ज्यादा करीब पाता है। अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर कि क्या यूएस भारत की विदेश नीति को पूरी तरह समझता है। कितना समझता है, इस सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि हर देशअपने इतिहास, राष्ट्रीय हितों की पृष्ठभूमि के साथ आता है।