मछली प्रेमियों के लिए खुशखबरी भोपाल में खुलेगा मध्य प्रदेश का पहला महासिर कैफे,मध्य प्रदेश के मछली प्रेमियों के लिए एक अच्छी खबर है, क्योंकि मोहन सरकार अब ‘महासिर कैफे’ खोलने जा रही है. यह जानकारी कैबिनेट मंत्री नारायण सिंह पवार ने दी. उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश का पहला महासिर कैफे राजधानी भोपाल में ही खोला जाएगा, जो न केवल मछुआरा समुदाय को एक व्यावसायिक मंच प्रदान करेगा, बल्कि रोजगार के नए साधन भी उपलब्ध कराएगा और स्वाद के शौकीनों के लिए फायदेमंद होगा.
\महासिर मछली की एक विशेष प्रजाति है जो मध्य प्रदेश में पाई जाती है और मछली प्रेमियों के लिए खास मानी जाती है. बताया जा रहा है कि कैफे की शुरुआत भोपाल से होगी और फिर इसे अन्य शहरों में भी खोला जाएगा.
भोपाल में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर होगी शुरुआत
मंत्री नारायण सिंह पवार ने बताया कि मध्य प्रदेश का पहला ‘महासिर कैफे’ भोपाल में एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर खोला जाएगा, जहां लोगों को कैफे में हाई प्रोटीन सी-फूड, रेडी-टू-ईट फिश और सजावटी मछलियां परोसी जाएंगी. उन्होंने कहा कि यह काम मुख्यमंत्री मोहन यादव की पहल पर शुरू किया जा रहा है, जिससे महासिर मछली पालने वाले मछुआरों को भी फायदा होगा. चूंकि महासिर मध्य प्रदेश की राजकीय मछली है, यह अब युवाओं के लिए रोजगार का भी एक नया स्रोत बनेगी. उन्होंने बताया कि भोपाल में महासिर कैफे और रेस्टोरेंट हाउस को इंडियन कॉफी हाउस और अमूल मॉडल की तर्ज पर चलाया जाएगा.
मध्य प्रदेश सरकार इस कैफे को सहकारी मॉडल पर आधारित रखेगी, जिसमें मछुआरा समुदाय की सुरक्षा और विकास को पहली प्राथमिकता दी जाएगी. इसके अलावा, जलाशयों में अवैध मछली पकड़ने पर रोक लगाने के लिए एक मजबूत प्रणाली बनाई जाएगी. साथ ही, FIDF योजना के तहत भदभदा में डिफ्यूजन टेक्नोलॉजी सेंटर को मंजूरी दी गई है, जबकि इंदिरा सागर जलाशय में ड्रोन, GPS और कंट्रोल रूम की सुविधा होगी ताकि मछुआरों को लाभ मिल सके.
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महासिर: मध्य प्रदेश की राजकीय मछली
महासिर को मध्य प्रदेश की राजकीय मछली माना जाता है. यह विशेष रूप से मध्य प्रदेश की चंबल, नर्मदा और ताप्ती नदियों में पाई जाती है. इसे एक महत्वपूर्ण मछली माना जाता है, जो सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से मध्य प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण है. इस मछली का वजन 20 से 60 किलोग्राम तक होता है, और यह केवल स्वच्छ पानी में रहना पसंद करती है. कई जगहों पर यह मछली अब विलुप्त मानी जाती है, लेकिन इसका प्रभाव मध्य प्रदेश में अभी भी बरकरार है. मध्य प्रदेश सरकार इसके पालन पर सब्सिडी भी देती है, जिससे इसके संरक्षण और उत्पादन को बढ़ावा मिल सके.