कोलकाता,
बांग्लादेश में छात्र आंदोलन की वजह से हो रही हिंसा के मद्देनजर भारतीय छात्रों का बांग्लादेश से पलायन कर भारत आना लगातार जारी है. बांग्लादेश में ज्यादातर भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. लेकिन अस्थिर परिस्थितियों के मद्देनजर भारतीय छात्र लगातार भारत पहुंच रहे हैं.
भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार को भी इस दौरान भारी नुकसान पहुंच रहा है. भारत और दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी लैंड पोर्ट पेट्रापोल पर व्यापारिक गतिविधियां लगभग ठप सी हो गई है. इन सारी परिस्थितियों का जायजा लेने के लिए जब आजतक की टीम पेट्रापोल और बेनेपोल बॉर्डर पर पहुंची तो हर समय व्यस्त रहने वाला यह बॉर्डर सुनसान सा नजर आया.
अभी भी फंसे हैं 250 से ज्यादा भारतीय ट्रक
इस दौरान यहां पर भारतीय व्यापारिक संगठन और क्लियरिंग व फॉरवर्डिंग एजेंट लगातार कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह से बांग्लादेश में फंसे भारतीय ड्राइवर वापस आ पाएं. संगठन की ओर से बताया गया कि अभी भी 250 से ज्यादा भारतीय ट्रक बांग्लादेश में फंसे हुए हैं. इनमें सबसे ज्यादा परेशानी दूसरे राज्यों के ड्राइवर खासतौर पर हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के ड्राइवरों को हो रही है जिनको बंगाली भाषा नहीं आती है और सुरक्षा का अभाव महसूस कर रहे हैं.
हर रोज हो रहा 150 करोड़ रुपये का नुकसान
इनको वापस लाने के लिए भारतीय पक्ष की ओर से लगातार बैठकें की जा रही हैं लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है. भारतीय पक्ष के मुताबिक हर रोज लगभग 150 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. सालाना पेट्रापोल और बेनेपोल सीमा से लगभग 30,000 करोड़ रुपये का व्यापार होता है. ऐसे में पेरिशेबल गुड्स के अलावा बाकी सभी व्यापार पिछले कई दिनों से बंद पड़ा हुआ है.
भारत लौटा 53 छात्रों का बैच
इसी दौरान 53 भारतीय छात्रों का एक बैच बांग्लादेश के खुलना से भारत में प्रवेश करने के लिए यहां आ पहुंचा. जब उनसे बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि पिछले तीन-चार दिनों से उनके परिवार के साथ कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था. ऐसे में बांग्लादेश में भारतीय दूतावास के सहयोग से और बांग्लादेश पुलिस के एस्कॉर्ट की मदद से वो यहां पहुंचे हैं.
इन छात्रों में कश्मीर, गुजरात, बिहार और दक्षिण भारत के कुछ छात्र भी मिले. दरअसल बांग्लादेश में मेडिकल की पढ़ाई का खर्च भारत के मुकाबले काफी कम है. यही वजह है कि हजारों भारतीय छात्र इस वक्त बांग्लादेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन वहां के हालातों के मद्देनजर लगातार भारत में वापसी की कोशिश हो रही है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 14 जुलाई को कह दिया था कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को कोटे का फायदा ना मिले, तो क्या ‘रजाकारों’ के पोते-पोतियों को मिलना चाहिए? इस बयान के बाद युवाओं में आक्रोश फैल गया. कोटा सिस्टम हटाने की युवाओं की मांग ने और जोर पकड़ लिया. प्रदर्शनकारी उस कोटा प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे थे, जिसके तहत बांग्लादेश के 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाले दिग्गजों के रिश्तेदारों के लिए 30% सरकारी नौकरियां आरक्षित की गई थीं.
30 फीसदी आरक्षण के खिलाफ हो रहा आंदोलन
इनमें से 30 प्रतिशत 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए, 10 प्रतिशत पिछड़े प्रशासनिक जिलों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं के लिए, पांच प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लिए और एक प्रतिशत विकलांग लोगों के लिए आरक्षित हैं. आंदोलन स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को मिलने वाले 30 फीसदी आरक्षण के खिलाफ चलाया जा रहा है. प्रदर्शनकारी छात्रों ने दावा किया कि यह नीति भेदभावपूर्ण है और तर्क दिया कि यह प्रणाली देश की सत्तारूढ़ पार्टी के सहयोगियों को फायदा पहुंचाती है जिसने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कोटा प्रणाली को वापस लिया
हालांकि बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने कई दिनों तक चले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद सरकारी नौकरियों के लिए कोटा प्रणाली को वापस ले लिया है. कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें आरक्षण को बहाल कर दिया गया था. नौकरियों में कमी और कोटा सिस्टम खत्म करने की मांग को लेकर देश के अधिकांश प्रमुख शहरों में छात्रों और पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों के बीच हिंसक झड़पें हुईं थी जिसमें में 130 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जबकि हजारों लोग घायल हुए थे.